Hindu Marriage Act | केवल सप्तपदी का प्रत्यक्ष प्रमाण न होने से वैध विवाह की धारणा हमेशा कम नहीं होती: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
9 Sept 2025 4:03 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि केवल इसलिए वैध विवाह की धारणा कम नहीं होती, क्योंकि पक्षों के बीच सप्तपदी समारोह होने का कोई प्रत्यक्ष या सकारात्मक प्रमाण नहीं है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि यदि इस बात के भी प्रमाण हों कि पक्षकारों ने विवाह के किसी रूप से गुज़रा है, तो यह धारणा और भी मज़बूत हो जाती है।
अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 7(2) का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रावधान में यह प्रावधान है कि जहां संस्कारों और समारोहों में सप्तपदी शामिल है, पवित्र अग्नि के समक्ष वर और वधू द्वारा संयुक्त रूप से सात पग उठाना, वहां विवाह सातवें पग के साथ पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है।
अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 7(1) पक्षकारों को किसी विशेष समारोह की अनिवार्यता के बिना दोनों पक्षों के रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार विवाह संपन्न करने का विवेकाधिकार प्रदान करती है।
अदालत ने कहा,
"वैध विवाह स्थापित करने के लिए हर मामले में सप्तपदी करना अनिवार्य नहीं है। उप-धारा (2) केवल यह स्पष्ट करती है कि जहां सप्तपदी प्रथागत अनुष्ठानों का एक हिस्सा है, वहां विवाह सातवें चरण के साथ पूर्णता और बाध्यकारी शक्ति प्राप्त करता है।"
अदालत एक पति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें उसने अपनी पत्नी के साथ विवाह को शून्य और अमान्य घोषित करने के उसके मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उनके बीच सप्तपदी नहीं की गई।
पति की अपील खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यह स्वीकार किया जाता है कि दोनों पक्ष एक साथ रह रहे थे अलगाव की तारीख विवादित थी। दोनों पक्षकारों के एक बच्चे का जन्म हुआ था।
अदालत ने कहा कि यदि ऐसे दंपत्ति के यहां एक बच्चा पैदा होता है तो यह प्रबल धारणा बनती है कि विवाह वैध है।
अदालत ने पति की अपील खारिज की।
अदालत ने कहा कि पति ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह अपनी पत्नी के साथ एक जोड़े के रूप में रह रहा था और उसने सहवास तभी बंद किया, जब उसे पता चला कि उनके बीच सप्तपदी नहीं हुई थी।
खंडपीठ ने कहा कि चूंकि यह साबित करने का दायित्व पति पर है कि सप्तपदी नहीं हुई थी, इसलिए पत्नी द्वारा विवाह समारोहों को दर्शाने वाली कोई भी पत्रावली प्रस्तुत न करने के लिए कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।
अदालत ने कहा,
"यह मानते हुए भी कि ऐसी कोई पत्रावली प्रस्तुत की गई, यह निर्णायक रूप से स्थापित नहीं किया जा सकता कि सप्तपदी हुई थी या नहीं।"
अदालत ने आगे कहा,
"उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर हमें विवादित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता, क्योंकि फैमिली कोर्ट का निष्कर्ष प्रशंसनीय और संभव है। अपील खारिज की जाती है।"
केस टाइटल: X बनाम Y

