दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक याचिका में पत्नी के जवाब दाखिल करने के अधिकार को बंद करने वाला आदेश रद्द किया

Amir Ahmad

7 March 2025 7:12 AM

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक याचिका में पत्नी के जवाब दाखिल करने के अधिकार को बंद करने वाला आदेश रद्द किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों से निपटने के दौरान फैमिली कोर्ट को सामान्य दीवानी कार्यवाही से अलग दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

    जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा,

    "परिवार से संबंधित विवादों से निपटने के दौरान न्यायालयों को सामान्य दीवानी कार्यवाही से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।"

    न्यायालय एक पत्नी की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें जवाब दाखिल करने या लिखित बयान देने के उसके अधिकार को बंद कर दिया गया था।

    न्यायालय ने उक्त आदेश को वापस लेने के लिए उसके आवेदन को भी खारिज कर दिया था।

    पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष पत्नी के खिलाफ हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक याचिका दायर की थी।

    दिसंबर, 2023 में उस पर एकपक्षीय कार्यवाही की गई। बाद में एकपक्षीय आदेश को लागत के अधीन रद्द कर दिया गया। इसके बाद फैमिली कोर्ट ने पत्नी को लिखित बयान दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। चूंकि यह दायर नहीं किया गया, इसलिए फैमिली कोर्ट ने लिखित बयान दाखिल करने के उसके अधिकार को बंद कर दिया।

    पत्नी ने प्रस्तुत किया कि वह एकल माँ है और एक नाबालिग बेटे सहित दो बच्चों की परवरिश और देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उसी पर है। उसने प्रस्तुत किया कि उसकी बेटी जुलाई 2024 से मेडिकल ट्रीटमेंट ले रही है लेकिन फैमिली कोर्ट ने मेडिकल रिकॉर्ड पर कोई विचार नहीं किया।

    दूसरी ओर, पति ने तर्क दिया कि बेटी ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित नहीं थी कि पत्नी निर्धारित अवधि के भीतर लिखित बयान दाखिल न कर सके।

    याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने पाया कि पत्नी ने मेडिकल रिकॉर्ड रिकॉर्ड पर रखा, जिससे प्रथम दृष्टया पता चला कि उसकी बेटी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं और व्हाट्सएप पर बातचीत से पता चला कि उक्त तथ्य पति के ज्ञान में था।

    न्यायालय ने कहा,

    "याचिकाकर्ता के लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को बंद करने से उसे तलाक याचिका में अपना बचाव करने का अवसर नहीं मिलेगा। यदि उसे लिखित बयान दाखिल करने और तलाक याचिका में अपना बचाव पेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो याचिकाकर्ता को बहुत नुकसान होगा।"

    टाइटल: मीनू अग्रवाल बनाम भारत गोयल

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