HIV पॉजिटिव होने के आधार पर कर्मचारी की सेवा समाप्त करना मनमाना और गैरकानूनी: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

22 Dec 2025 3:47 PM IST

  • HIV पॉजिटिव होने के आधार पर कर्मचारी की सेवा समाप्त करना मनमाना और गैरकानूनी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी को केवल HIV पॉजिटिव होने के आधार पर सेवा से हटाना न केवल मनमाना है, बल्कि कानून के भी खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि मानव प्रतिरक्षा अपूर्णता विषाणु एवं उपार्जित प्रतिरक्षा अपूर्णता सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 में निर्धारित सुरक्षा उपायों का पालन किए बिना की गई ऐसी कार्रवाई अवैध है।

    जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक कांस्टेबल को सेवा से हटाए जाने का आदेश रद्द करते हुए उसे सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि HIV पॉजिटिव होना अपने आप में यह निष्कर्ष निकालने का आधार नहीं हो सकता कि कर्मचारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में अक्षम है।

    मामले के अनुसार याचिकाकर्ता की नियुक्ति अप्रैल, 2017 में BSF में कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी) के पद पर हुई। बाद में वह HIV पॉजिटिव पाया गया और उसने 2018 तक उपचार कराया। एक मेडिकल बोर्ड ने उसे स्थायी रूप से सेवा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया, जिसके बाद BSF ने उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति का प्रस्ताव रखा। 9 अप्रैल, 2019 को उसे शारीरिक रूप से अयोग्य बताते हुए सेवा से हटा दिया गया। उसकी अपील भी खारिज कर दी गई, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का रुख किया।

    याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि BSF ने HIV Act के प्रावधानों का पालन नहीं किया। अधिनियम के अनुसार किसी HIV पॉजिटिव कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले एक स्वतंत्र और योग्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से लिखित मूल्यांकन लेना आवश्यक है, जिससे यह साबित हो कि कर्मचारी से संक्रमण का गंभीर खतरा है या वह कार्य के लिए अयोग्य है। इसके अलावा, नियोक्ता को यह भी लिखित रूप से बताना होता है कि उचित समायोजन (रीज़नेबल अकॉमोडेशन) न देने से उसे क्या प्रशासनिक या वित्तीय कठिनाई होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि इन दोनों अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं किया गया।

    वहीं BSF ने तर्क दिया कि कर्मचारी को लागू नियमों के अनुसार मेडिकल आधार पर सेवा से हटाया गया, क्योंकि उसे ड्यूटी के लिए अयोग्य पाया गया।

    हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि HIV Act की धारा 3 रोजगार से बर्खास्तगी सहित किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस धारा के तहत निर्धारित दोनों शर्तों का पालन अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में कानून यह मानने का निर्देश देता है कि कर्मचारी से कोई गंभीर संक्रमण का खतरा नहीं है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि HIV पॉजिटिव व्यक्ति, जो दीर्घकालिक शारीरिक बाधा से ग्रस्त है, वह दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत “दिव्यांग व्यक्ति” की श्रेणी में आता है। यह अधिनियम सरकारी प्रतिष्ठानों को सेवा के दौरान दिव्यांगता प्राप्त करने वाले कर्मचारी को हटाने से रोकता है और उचित समायोजन प्रदान करने का प्रावधान करता है।

    इन आधारों पर हाईकोर्ट ने कर्मचारी की सेवा समाप्ति और अपील खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने उसे सेवा की निरंतरता और सभी संबंधित लाभों के साथ पुनः बहाल करने का निर्देश दिया। साथ ही यह भी कहा कि यदि कर्मचारी को उसकी मूल पोस्ट पर मेडिकल कारणों से उपयुक्त नहीं पाया जाता है तो BSF को उसे किसी समकक्ष वैकल्पिक पद पर उचित समायोजन देना होगा।

    इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।

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