पीड़ित को मुकदमे में भाग लेने का अधिकार, आपराधिक पुनर्विचार में पक्षकार बनने का अधिकार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट
Amir Ahmad
25 May 2024 5:41 PM IST
दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में पीड़ित या शिकायतकर्ता को सुनवाई का अधिकार दिया जाता है लेकिन उसे आपराधिक पुनर्विचार में पक्षकार बनने के अधिकार में नहीं बदला जा सकता।
जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि पीड़ित को मुकदमे और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार ऐसी स्थिति में नहीं है, जहां पीड़ित लोक अभियोजक की जगह ले ले।
अदालत ने कहा,
"यह अधिकार लोक अभियोजक के अधिकार के अधीन रहेगा। इसलिए जहां पीड़ित पुनर्विचार याचिका में सुनवाई के लिए आवेदन करता है, जबकि पीड़ित को सुना जाना चाहिए, पीड़ित को पक्षकार बनाने का कानून में कोई आदेश नहीं है।"
इसमें आगे कहा गया,
"इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या राज्य के मामले में पीड़ित/शिकायतकर्ता को दिए गए सुनवाई के अधिकार को आपराधिक पुनर्विचार में पक्षकार बनने के अधिकार में बदला जा सकता है। यदि शिकायतकर्ता/पीड़ित इसके लिए आवेदन करता है। मेरी राय में इसका उत्तर नकारात्मक होना चाहिए।”
अदालत ने कहा कि हालांकि पीड़ित या शिकायतकर्ता को पुनर्विचार कार्यवाही में सुनवाई का अधिकार है लेकिन ऐसा अधिकार खुद को उक्त आपराधिक पुनर्विचार में पक्षकार बनने के अधिकार में नहीं बदल देता।
अदालत ने कहा,
“शिकायतकर्ता/पीड़ित को सुनवाई का अधिकार देते हुए प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर इसे विनियमित करेगी। अदालत को यह ध्यान में रखना चाहिए कि आपराधिक अभियोजन दो निजी युद्धरत पक्षों के बीच लड़ाई में न बदल जाए।”
इसमें आगे कहा गया,
“हालांकि साथ ही अदालत को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि आखिरकार पीड़ित ही पीड़ित होता है और अपने खिलाफ किए गए कथित अपराध के खिलाफ न्याय पाने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली का दरवाजा खटखटाता है।”
जस्टिस चावला ने कहा कि समाज की ओर से आपराधिक अभियोजन चलाने के लिए राज्य के कर्तव्य या जिम्मेदारी तथा पीड़ित या शिकायतकर्ता के अपने साथ हुए अन्याय के लिए न्याय मांगने के अधिकार के बीच संतुलन बनाना होगा।
न्यायालय ने कहा,
"इस संतुलन को प्राप्त करने में हालांकि पीड़ित/शिकायतकर्ता की सुनवाई हो सकती है लेकिन उसे पक्षकार बनने का अधिकार नहीं होगा। ऐसी सुनवाई प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय द्वारा विनियमित की जाएगी।"
न्यायालय वीएलएस फाइनेंस लिमिटेड नामक संस्था द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें धोखाधड़ी के मामले से संबंधित सभी लंबित पुनर्विचार याचिकाओं में पक्षकार बनने तथा सुनवाई की मांग करने वाले उसके आवेदनों को खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई।
आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ आरोपी व्यक्तियों द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं।
याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस चावला ने विवादित आदेश बरकरार रखा, क्योंकि इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता संस्था को पुनर्विचार याचिकाओं में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि विवादित आदेश इस हद तक रद्द किया जाए कि इसमें याचिकाकर्ता इकाई के अधिकार को केवल एपीपी के माध्यम से न्यायालय की सहायता करने या केवल एपीपी के माध्यम से अपना मामला प्रस्तुत करने तक सीमित कर दिया गया।
न्यायालय ने कहा,
"एएसजे अपने समक्ष लंबित उपर्युक्त पुनर्विचार याचिकाओं में याचिकाकर्ता को सुनवाई का उचित और उचित अवसर प्रदान करेगा। याचिकाकर्ता उक्त पुनर्विचार याचिकाओं में लिखित प्रस्तुतियाँ दाखिल करने का भी हकदार होगा।"
केस टाइटल- वीएलएस फाइनेंस लिमिटेड बनाम राज्य एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य