दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व JNU प्रोफेसर की मानहानि याचिका में 'द वायर' के समन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
Amir Ahmad
7 May 2025 1:11 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (7 मई) को द वायर चलाने वाले फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म और उसके संपादक अजय आशीर्वाद महाप्रस्थ द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। इस याचिका में पूर्व जेएनयू प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में जारी समन आदेश को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट शदान फरासत ने तर्क दिया कि यह समन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका है। मुख्य आधार यह है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 223 के तहत अब मानहानि मामलों में समन जारी करने से पहले आरोपी को नोटिस देना अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं किया गया।
BNSS की धारा 223 के अनुसार मजिस्ट्रेट को शिकायत पर संज्ञान लेते समय शिकायतकर्ता और गवाहों का शपथ पर बयान लेना होता है। पहली व्याख्या में यह स्पष्ट है कि आरोपी को सुने बिना संज्ञान नहीं लिया जा सकता।
फरासत ने कहा कि पहले CrPC में स्थिति अलग थी लेकिन अब BNSS के तहत समन से पहले नोटिस देना जरूरी है।
कोर्ट ने मौखिक रूप से पूछा,
“आपका मुख्य तर्क है कि नोटिस नहीं दिया गया, इसलिए समन आदेश...?”
फरासत ने पुष्टि की कि यह प्राथमिक आधार है। उन्होंने यह भी कहा कि द वायर कोई वैधानिक इकाई नहीं है। फिर भी नोटिस उसे मुख्य संपादक के माध्यम से' भेजा गया जबकि मुख्य संपादक को सीधे पक्ष बनाया जाना चाहिए था।
दूसरी ओर, अमिता सिंह की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि विभिन्न हाईकोर्ट के निर्णयों के अनुसार एक बार जांच शुरू हो जाने पर वह आगे भावी तरीके से चलती है।
फरासत ने तर्क दिया कि BNSS की धारा 531 का इस मामले में कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जबकि सिंह के वकील ने BNSS की धारा 531(2) का हवाला दिया, जो कहती है कि यदि BNSS लागू होने से पहले कोई कार्यवाही लंबित हो, तो वह CrPC के प्रावधानों के अनुसार ही जारी रहेगी।
सिंह के वकील ने कहा कि 2016 में CrPC की धारा 202 के तहत जांच पूरी हो चुकी थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और फिर समन की स्थिति पर लौटाया गया।
फरासत ने कहा कि जब पहली बार याचिकाकर्ता हाईकोर्ट आए तो मार्च 2023 में हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2024 में इस आदेश को रद्द कर दिया और मामले को मजिस्ट्रेट के पास दोबारा भेजा ताकि वह समन के मुद्दे पर नया निर्णय ले।
फरासत ने कहा,
“BNSS 1 जुलाई, 2024 को लागू हुआ और सुप्रीम कोर्ट का आदेश 24 जुलाई को आया। यानी 30 जून तक कोई कार्यवाही मेरे खिलाफ लंबित नहीं थी। इसलिए धारा 531 लागू नहीं होती। अगर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जून को आदेश दिया होता तो शायद उनके पास तर्क होता कि कार्यवाही लंबित थी। लेकिन ऐसा नहीं है।”
सिंह के वकील ने जवाब में कहा कि SLP कार्यवाही का ही विस्तार होती है और यह स्थापित कानून है।
बहस सुनने के बाद जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने मौखिक रूप से कहा,
“आपका मुख्य तर्क यह है कि कुछ भी लंबित नहीं था। प्रतिवादी यह कह रहे हैं कि अपील कार्यवाही का हिस्सा है। यही मूल प्रश्न है...दलीलें सुनी गईं। आदेश चैंबर में सुनाया जाएगा।”
मामले की पृष्ठभूमि:
यह शिकायत 2016 में JNU की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा दायर की गई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि 'द वायर' के डिप्टी एडिटर अजय आशीर्वाद द्वारा अप्रैल, 2016 में लिखे गए लेख में यह कहा गया था कि उन्होंने एक डॉसियर तैयार किया, जिसमें जेएनयू को संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा कहा गया। सिंह ने आरोप लगाया कि यह रिपोर्ट बिना सत्यापन के प्रकाशित की गई और उससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया गया। दिल्ली की एक मेट्रोपॉलिटन अदालत ने 2017 में अजय आशीर्वाद और संपादक सिद्धार्थ भाटिया को समन जारी किया था।
केस टाइटल: FOUNDATION FOR INDEPENDENT JOURNALISM बनाम अमिता सिंह और अन्य

