दिल्ली हाइकोर्ट ने जजों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने वाले वकील के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर आपराधिक अवमानना ​​का मामला शुरू किया

Amir Ahmad

16 May 2024 11:55 AM GMT

  • दिल्ली हाइकोर्ट ने जजों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने वाले वकील के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर आपराधिक अवमानना ​​का मामला शुरू किया

    दिल्ली हाइकोर्ट ने वकील के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर आपराधिक अवमानना ​​का मामला शुरू किया। उक्त वकील ने जजों पर व्यक्तिगत टिप्पणी की और कार्यवाही के दौरान वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश होने के दौरान चैट बॉक्स में अपमानजनक टिप्पणियां पोस्ट कीं।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने जिला न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के साथ-साथ इस न्यायालय द्वारा पारित प्रतिकूल आदेशों से व्यथित होकर कानून का गलत रास्ता अपनाया और उन्हें जजों पर व्यक्तिगत हमला करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो संस्थान की अखंडता को कमजोर करता है।"

    09 मई को वकील को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसमें पूछा गया कि उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

    जस्टिस मेंदीरत्ता ने वकील द्वारा दायर जवाब का अवलोकन किया और कहा कि यह भी घोर अवमाननापूर्ण प्रकृति का है। चैट बॉक्स में टिप्पणी डालने के लिए शायद ही कोई प्रासंगिक स्पष्टीकरण हो।

    अदालत ने कहा कि वकील के आचरण से पता चलता है कि वह जिला न्यायालयों के जजों की शिकायत करने और उन्हें बदनाम करने का आदी है, जिन्होंने उसके द्वारा की गई किसी भी कार्यवाही में कोई प्रतिकूल निर्णय दिया है।

    अदालत ने कहा,

    "जिला न्यायालयों और इस न्यायालय द्वारा की गई कार्यवाही को बदनाम करने के लिए जानबूझकर इरादे और असंयमित भाषा का इस्तेमाल किया गया। यह न्याय के अधिकार और प्रशासन का अनादर करता है और अवमानना ​​के बराबर है।"

    इसने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे न्यायिक कार्यवाही के रिकॉर्ड को एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन के समक्ष रखें जिससे मामले को आपराधिक अवमानना ​​से निपटने वाली संबंधित खंडपीठ को भेजा जा सके।

    अदालत ने अब वकील को कल खंडपीठ के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया।

    इससे पहले अदालत ने पाया कि टिप्पणियों को न्यायालय को बदनाम करने के इरादे से सार्वजनिक डोमेन में रखा गया। वे स्पष्ट रूप से अवमाननापूर्ण थीं और न्यायिक कार्यवाही के उचित क्रम में हस्तक्षेप करती थीं।

    वकील ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिसे 23 जनवरी को खारिज कर दिया गया। दिल्ली हाइकोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास 25,000 रुपये जमा करने का आदेश दिया गया था।

    हालांकि वकील द्वारा दायर की गई बर्खास्तगी के खिलाफ पुनर्विचार याचिका 22 अगस्त को सूचीबद्ध की गई, लेकिन अंतरिम में उनके द्वारा एक आवेदन दायर किया गया था।

    06 मई को हालांकि मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया, लेकिन VC के माध्यम से सुनवाई के दौरान वकील द्वारा चैट बॉक्स में विभिन्न टिप्पणियां पोस्ट की गईं। उन्हें कोर्ट स्टाफ द्वारा रिकॉर्ड पर रखा गया।

    टिप्पणियां थीं- “उम्मीद है कि यह अदालत बार सदस्यों की समीक्षा नंबर 120/2024 के दबाव के बिना योग्यता के आधार पर आदेश पारित करेगी”, “जो डरता है वो कभी न्याय नहीं कर पाएगा”, “जानबूझकर धीमी सुनवाई करती है”, “गलत आदेश पास करती है पंडित की तरह भविष्य की वाणी करती है... बिना योग्यता के आदेश पास करती है”, “मेरे मामले न सुनने के लिए बार सदस्यों का दबाव।”

    केस टाइटल- संजीव कुमार बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य एवं अन्य

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