दिल्ली हाइकोर्ट ने लोकपाल कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ शिबू सोरेन की अपील खारिज की

Amir Ahmad

21 Feb 2024 11:01 AM GMT

  • दिल्ली हाइकोर्ट ने लोकपाल कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ शिबू सोरेन की अपील खारिज की

    दिल्ली हाइकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में उनके खिलाफ भारत के लोकपाल द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) प्रमुख शिबू सोरेन की अपील खारिज कर दी।

    जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ को एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला, जिसमें कहा गया कि सोरेन द्वारा दायर रिट याचिका समयपूर्व है।

    अदालत ने कहा,

    "तदनुसार, अपील में कोई दम नहीं होने के कारण सभी संलग्न आवेदनों के साथ इसे खारिज किया जाता है।"

    सोरेन ने 5 अगस्त, 2020 को भाजपा के निशिकांत दुबे द्वारा दायर शिकायत के अनुसार लोकपाल द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती देते हुए एकल न्यायाधीश से संपर्क किया था। उक्त शिकायत में आरोप लगाया गया कि सोरेन ने भ्रष्ट तरीकों से भारी संपत्ति अर्जित की है। लोकपाल के समक्ष कार्यवाही पर सितंबर, 2022 में हाइकोर्ट ने रोक लगा दी।

    एकल न्यायाधीश का आदेश बरकरार रखते हुए खंडपीठ ने कहा कि शिकायत न केवल उन संपत्तियों की खरीद से संबंधित है, जिनके बारे में सोरेन का दावा है कि उन्हें 7 साल से अधिक समय पहले खरीदा गया, बल्कि उनके द्वारा सत्ता का दुरुपयोग करके धन इकट्ठा करने की चल रही घटनाओं से भी संबंधित है।

    अदालत ने कहा,

    “इन आरोपों के आलोक में हम अपीलकर्ता की इस दलील को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि यह उपयुक्त मामला है, जहां प्रतिवादी नंबर 1 किसी को पहली बार में ही शिकायत को सीमा से वर्जित मानते हुए खारिज कर देना चाहिए।''

    खंडपीठ ने कहा कि भारत के लोकपाल को अभी भी यह तय करना है कि सोरेन के खिलाफ दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान सहित किसी भी एजेंसी द्वारा जांच का निर्देश देने के लिए प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है या नहीं।

    अदालत ने कहा,

    "इस तथ्यात्मक मैट्रिक्स में हमें प्रतिवादी नंबर 1 (भारत के लोकपाल) द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण में कोई कमी नहीं दिखती।"

    इसके अलावा पीठ ने फैसला सुनाया कि जिस चरण में यह सवाल उठता है कि क्या शिकायत लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 (Lokpal and Lokayuktas Act, 2013) की धारा 53 के तहत वर्जित है।

    अदालत ने आगे कहा,

    “हमारी सुविचारित राय में धारा 20(1)(ए) के तहत प्रारंभिक जांच का आदेश देते समय इसे तय करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद निर्णय लिया जा सकता है।”

    पिछले महीने एकल न्यायाधीश ने कहा कि लोकपाल को अभी भी सीबीआई द्वारा प्रदान की गई सामग्री पर अपना विवेक लगाना बाकी है कि मामले की जांच आवश्यक है या नहीं।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह दावा करते हुए कि शिकायत झूठी तुच्छ और परेशान करने वाली है, सोरेन ने अपनी याचिका में कहा कि एक्ट की धारा 53 के अनुसार भारत के लोकपाल के खिलाफ किसी भी शिकायत की जांच कथित अपराध से सात वर्ष बाद जांच करने का अधिकार क्षेत्र मानने पर वैधानिक रोक है।

    दूसरी ओर भारत के लोकपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से गलत धारणा है। इस मामले में सोरेन के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया।

    लोकपाल ने कहा कि प्रारंभिक जांच इस मामले में कार्रवाई का उचित तरीका है, जिसमें यह पता लगाना भी शामिल है कि शिकायत में उल्लिखित संपत्ति सोरेन और उनके परिवार के पास है या नहीं।

    लोकपाल के अनुसार सोरेन को यह निर्णय लेने से पहले सुनवाई का अवसर दिया गया कि क्या उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला मौजूद है।

    प्रतिक्रिया में आगे कहा गया कि मामला अभी भी निर्णय के लिए खुला है, जिसमें सीमा का मुद्दा भी शामिल है और कोई अंतिम दृष्टिकोण नहीं बनाया गया।

    केस टाइटल- शिबू सोरेन बनाम भारत के लोकपाल एवं अन्य।

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