IPC की धारा 498 | झूठे आरोप समाज में निराशा फैलाते हैं, असली पीड़ितों के प्रति भी संदेह उत्पन्न करते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

24 May 2025 3:56 PM IST

  • IPC की धारा 498 | झूठे आरोप समाज में निराशा फैलाते हैं, असली पीड़ितों के प्रति भी संदेह उत्पन्न करते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC) की धारा 498A से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में झूठे आरोप समाज पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, क्योंकि वे समाज में निराशा (Cynicism) फैलाते हैं और यहां तक कि असली पीड़ितों के प्रति भी संदेह उत्पन्न कर देते हैं।

    जस्टिस गिरीश कठपालिया उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जो एक पति और उसके परिवार वालों द्वारा उनके खिलाफ पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई FIR रद्द करने के लिए दायर की गई।

    यह FIR पिछले वर्ष IPC की धारा 498ए (क्रूरता) 406 (आपराधिक विश्वासघात), और 34 (सामूहिक मंशा) के तहत दर्ज की गई थी।

    FIR रद्द करने की मांग इस आधार पर की गई कि दोनों पक्षों ने आपसी विवादों को सुलझा लिया। याचिकाकर्ता और पत्नी दोनों स्वयं अदालत में उपस्थित हुए।

    अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह साधारण याचिका प्रतीत होती है, परंतु FIR के विवरण को पढ़ने पर ऐसा नहीं लगता।

    FIR में यह आरोप था कि याचिकाकर्ताओं ने पत्नी की जानकारी के बिना उसकी तस्वीरें और वीडियो लिए और फिर उसे मौखिक (Oral) और गुदा मैथुन (Anal Sex) के लिए मजबूर किया अन्यथा वे फोटो और वीडियो सार्वजनिक कर देंगे। पत्नी ने दबाव में आकर यह सब सहा।

    यह भी आरोप लगाया गया कि पति ने धमकी दी थी कि वह ये वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा।

    अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके ससुर और दोनों देवरों ने जब भी मौका मिला उसके साथ छेड़छाड़ की।

    सुनवाई के दौरान पत्नी ने अदालत से कहा कि FIR में लगाए गए सभी आरोप सही हैं।

    इस पर न्यायालय ने टिप्पणी की कि इन आरोपों की सत्यता या असत्यता का निर्धारण केवल मुकदमे (Trial) के जरिए ही किया जा सकता है। यदि आरोप सही साबित होते हैं तो याचिकाकर्ता कानून के अनुसार दंड के पात्र होंगे। लेकिन यदि आरोप झूठे साबित होते हैं तो पत्नी को भी राज्य की कठोर कार्रवाई का सामना करना होगा।

    न्यायालय ने कहा,

    “यदि ऐसे आरोप झूठे होते हैं तो उनका समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है; वे समाज में निराशा फैलाते हैं और असली पीड़ितों के प्रति भी अविश्वास और संदेह उत्पन्न करते हैं। इस तरह की कार्यवाही में इन आरोपों की सत्यता का परीक्षण नहीं किया जा सकता, यह कार्य तो पूर्ण सुनवाई (फुल ट्रायल) में ही संभव है।”

    केस टाइटल: नितिन कुमार एवं अन्य बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) एवं अन्य

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