दिल्ली हाईकोर्ट में BNS से धारा 377 IPC को बाहर करने को चुनौती देने वाली याचिका दायर
Amir Ahmad
12 Aug 2024 8:40 AM GMT
भारतीय न्याय संहिता (BNS) से अब निरस्त भारतीय दंड संहिता 1860 (IPS) की धारा 377 को बाहर करने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया गया, जिसने कल के लिए सुनवाई की अनुमति दी।
IPC की धारा 377 किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के आदेश के विरुद्ध गैर-सहमति से शारीरिक संबंध बनाने को अपराध मानती है यानी अप्राकृतिक अपराध है।
इस प्रावधान को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के साथ 01 जुलाई से लागू हुए BNS में पूरी तरह से बदल दिया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने उल्लेख के दौरान कहा कि नए आपराधिक कानून में IPC की धारा 377 की अनुपस्थिति हर व्यक्ति, खासकर LGBTQ समुदाय के लोगों के लिए खतरा है।
उन्होंने कहा,
"IPC की धारा 377 की अनुपस्थिति हर व्यक्ति खासकर LGBTQ व्यक्तियों के लिए खतरा है।"
इसके बाद अदालत ने मामले को कल सूचीबद्ध करने की अनुमति दे दी।
पिछले साल दिसंबर में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने BNS में IPC की धारा 377 को शामिल करने की मांग की थी।
अपनी सिफारिशों में समिति ने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित प्रावधान को कमतर कर दिया हो, लेकिन IPS की धारा 377 वयस्कों के साथ गैर-सहमति वाले शारीरिक संबंध, नाबालिगों के साथ शारीरिक संबंध और पशुता के मामलों में लागू रहेगी।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि BNS, 2023 में पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर के खिलाफ गैर-सहमति वाले यौन अपराध और पशुता के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
इसलिए इसने सुझाव दिया कि BNS में बताए गए उद्देश्यों के साथ संरेखित करने के लिए, जो जेंडर-न्यूट्रल अपराधों की दिशा में कदम को उजागर करता है। IPC की धारा 377 को फिर से लागू करना और बनाए रखना अनिवार्य है।”