त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई भ्रामक सुरक्षा नहीं, MACOCA मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
21 May 2025 4:59 PM IST

l बात पर जोर देते हुए कि त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई भ्रामक सुरक्षा नहीं है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि मामला महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम 1999 (MACOCA) के अंतर्गत आता है।
जस्टिस संजीव नरूला ने कहा,
“भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र में अब दृढ़ता से समाहित त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई अमूर्त या भ्रामक सुरक्षा नहीं है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है। इसे केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि मामला MACOCA जैसे विशेष कानून के अंतर्गत आता है।”
न्ययालय ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 की धारा 3(1), 3(4) और 3(5) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत दी।
आरोपी जितेन्द्र दीक्षित, मनोज मोरखेरी सिंडिकेट का सक्रिय गिरोह सदस्य था। उस पर विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में हत्या, हत्या का प्रयास, फिरौती के लिए अपहरण और डकैती सहित कई अपराधों में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने का आरोप था।
आरोपी ने अपने लंबे कारावास, मुकदमे के समापन में अनुचित देरी और सह-आरोपियों के साथ समानता के सिद्धांत के आधार पर जमानत मांगी, जिन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है।
उन्होंने अन्य मामलों में पहले से दी गई सजा में जमानत या निलंबन की राहत का लाभ उठाने के अपने अधिकार का भी आह्वान किया।
उसे जमानत देते हुए जस्टिस नरूला ने कहा कि जहां अधिनियमों में जमानत देने के लिए सख्त शर्तें निर्धारित की गईं, यह सुनिश्चित करना राज्य की स्पष्ट जिम्मेदारी है कि ऐसे मुकदमों को प्राथमिकता दी जाए और उचित समय सीमा के भीतर समाप्त किया जाए।
न्यायालय ने दोहराया,
“मकोका की धारा 21(4) जमानत देने के लिए कठोर शर्तें लगाती है, लेकिन इन प्रावधानों को अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार निर्दोषता की धारणा और त्वरित सुनवाई के अधिकार को सुनिश्चित करने में सामाजिक हित के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने नोट किया कि अभियुक्त ने 07 मई तक पहले ही 8 वर्ष 11 महीने और 24 दिन हिरासत में बिता लिए थे और लंबे समय तक हिरासत में रहने के बावजूद मुकदमा अपने निष्कर्ष से बहुत दूर था।
न्यायालय ने कहा“यह मामला पूरी तरह से अनुच्छेद 21 के दायरे में आता है, जो त्वरित सुनवाई के अधिकार की गारंटी देता है।
केस टाइटल: जितेन्द्र दीक्षित बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली)

