दिल्ली हाईकोर्ट ने बेटी के खिलाफ POCSO मामले की रिपोर्ट न करने पर मां के खिलाफ़ लगाए गए आरोप खारिज किए

Amir Ahmad

18 Sep 2024 7:42 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने बेटी के खिलाफ POCSO मामले की रिपोर्ट न करने पर मां के खिलाफ़ लगाए गए आरोप खारिज किए

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत का आदेश खारिज किया। उक्त आदेश में मां के खिलाफ़ आरोप तय किए गए थे, क्योंकि उसने अपनी 16 वर्षीय बेटी के खिलाफ़ POCSO Act के तहत अपराधों की रिपोर्ट न करने पर आरोप तय किए थे, जिसके साथ उसके पिता ने कथित तौर पर बलात्कार किया था।

    जस्टिस अनीश दयाल ने कहा कि मां, जो खुद अपने पति द्वारा यौन शोषण की शिकार थी, POCSO Act की धारा 21 को लागू करके आरोपी बन गई, जो मामले के पृष्ठभूमि तथ्यों और परिस्थितियों से पूरी तरह अलग थी।

    अदालत ने कहा,

    "एक मां पर अपने ही पति द्वारा बच्चे पर यौन अपराध की रिपोर्ट करने में देरी के लिए मुकदमा चलाने की मांग की जा रही है, इस तथ्य के बावजूद कि मां खुद अपने वैवाहिक घर में कथित तौर पर गंभीर यौन और अन्य दुर्व्यवहार का शिकार हुई थी।”

    यह भी कहा गया कि इस बात की संभावना है कि मामले की रिपोर्ट करने में देरी केवल इसलिए हुई, क्योंकि मां और बच्चा दोनों ही बहुत अधिक आघात में जी रहे थे और वे पुलिस में रिपोर्ट करने के लिए साहस, स्थान या भावना नहीं जुटा पाए।

    अदालत ने कहा,

    "इस मामले में इस तथ्य को ध्यान में न रखना कि मां खुद यौन शोषण की शिकार थी, अपने इकलौते बच्चे की देखभाल नहीं करेगी और किसी दुर्भावनापूर्ण कारण से अपने बच्चे द्वारा बताए गए अपराधों की रिपोर्ट नहीं करेगी, सरासर अन्याय होगा।”

    एफआईआर 2021 में दर्ज की गई थी। पिता इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। याचिका में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की अनिवार्य रिपोर्टिंग (POCSO Act) की धारा 21 के तहत दंडनीय धारा 19(1) के तहत निचली अदालत द्वारा मां के खिलाफ आरोप तय करने को चुनौती दी गई।

    अभियोक्ता ने आरोप लगाया कि पिता कई मौकों पर उसका यौन शोषण करता था और उसे पीटता भी था। यह भी आरोप लगाया गया कि उसने मां को बेरहमी से पीटा था और कथित घटनाओं की रिपोर्ट करने पर उसे धमकी दी थी। अभियोक्ता के अनुसार पिता ने उसकी मां के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए थे।

    निचली अदालत के आदेश को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि कथित अपराधों की रिपोर्ट करने में मां की ओर से देरी का कारण उसकी खुद की जान को खतरा था।

    अदालत ने कहा,

    "जब बच्ची मनोचिकित्सक के सामने टूट गई और उसने अपने पिता द्वारा यौन शोषण के घिनौने विवरण सुनाए, तब याचिकाकर्ता को एहसास हुआ कि यह ऐसा मामला है, जिसकी रिपोर्ट की जानी चाहिए। पति और उसके परिवार द्वारा गंभीर धमकियों को नज़रअंदाज़ करते हुए उसने तुरंत ऐसा किया।”

    जस्टिस दयाल ने यह भी कहा कि घर के भीतर होने वाला यौन शोषण, जहां अपराधी पति या कोई पुरुष होता है, जो घर पर हावी होना चुनता है, सबसे जघन्य और पतित हो सकता है।

    अदालत ने कहा कि महिला पीड़ित तब अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए डर के साये में रहती हैं।

    रिपोर्टिंग के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्र का अध्ययन करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे प्रावधान बाल यौन शोषण के खिलाफ़ रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए, न कि पीड़ित को दंडित करने के लिए जो दुर्भाग्य से घरेलू हिंसा वाले घर में कई बार अविभाज्य होता है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला,

    "बाल यौन शोषण के संबंध में अनिवार्य रिपोर्टिंग कानून बच्चों के खिलाफ़ होने वाले शोषण को रोकने के इरादे से बनाए गए हैं। ऐसा कोई सीधा-सादा फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता, जहां जटिल भ्रष्ट आचरण शामिल हो और जैसा कि वर्तमान मामले में है, अभियोक्ता के साथ-साथ याचिकाकर्ता भी अभियुक्त व्यक्ति से ख़तरे में थी।”

    केस टाइटल- आरबी बनाम राज्य एनसीटी ऑफ़ दिल्ली

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