दिल्ली हाईकोर्ट ने आईएफएस महावीर सिंघवी की ओर से हिंदुस्तान टाइम्स के खिलाफ दायर मानहानि का मुकदमा खारिज किया

LiveLaw News Network

18 Jun 2024 8:40 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने आईएफएस महावीर सिंघवी की ओर से हिंदुस्तान टाइम्स के खिलाफ दायर मानहानि का मुकदमा खारिज किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में 1999 बैच के आईएफएस महावीर सिंघवी द्वारा हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के खिलाफ दायर दो मानहानि के मुकदमों को खारिज कर दिया। इन मुकदमों में 2002 में प्रकाशित दो समाचार रिपोर्टों को लेकर अंग्रेजी और हिंदी दोनों संस्करण शामिल थे।

    जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने मुकदमों को खारिज करते हुए कहा कि दोनों अखबारों में प्रकाशित लेख अपने आप में मानहानिकारक नहीं थे। न्यायालय ने कहा, "जनता के सूचना के अधिकार को मीडिया के सत्य रिपोर्टिंग के कर्तव्य और अपनी प्रतिष्ठा की सुरक्षा के व्यक्तिगत अधिकार के साथ संतुलित करते हुए, यह माना जाता है कि दोनों मुकदमों का विषय बनने वाले लेख अपने आप में मानहानिकारक नहीं हैं।"

    सिंघवी ने अपनी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए 5-5 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगते हुए 2007 में ये मुकदमे दायर किए थे। पहले मुकदमे में, सिंघवी 19 जुलाई, 2002 को हिंदुस्तान टाइम्स (अंग्रेजी संस्करण) में प्रकाशित एक लेख से व्यथित थे, जिसका शीर्षक था "टेप से कदाचार साबित होने के बाद आईएफएस प्रोबेशनर को बर्खास्त किया गया।"

    उक्त मुकदमा क्रमशः तत्कालीन संपादक वीर सांघवी और संवाददाता सौरभ शुक्ला के खिलाफ भी दायर किया गया था। दूसरा मुकदमा हिंदुस्तान अखबार (हिंदी संस्करण) और तत्कालीन संपादक मृणाल पांडे और राकेश कुमार सिंह, तत्कालीन रिपोर्टर के खिलाफ दायर किया गया था।

    सिंघवी 21 जुलाई, 2002 को प्रकाशित लेख "शादी से इंकार करने पर अधिकारी ने युवती का जीना हराम किया" से व्यथित थे। सिंघवी का कहना था कि लेख भारतीय प्रेस परिषद द्वारा जारी पत्रकारिता आचरण के मानदंडों का घोर उल्लंघन करते हैं।

    उन्होंने कहा कि टेप पर एक महिला के साथ बातचीत और उनके द्वारा इस्तेमाल की गई कथित अपमानजनक और अपशब्दों की भाषा के संबंध में प्रकाशनों में उल्लिखित तथ्यों में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है।

    उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी बातचीत कभी भी किसी भी महिला के साथ नहीं हुई, इसके बावजूद दोनों अखबारों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करने के गुप्त उद्देश्य से उनके खिलाफ "अपमानजनक तथ्य" प्रकाशित किए।

    मुकदमों को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि आज की स्वतंत्र दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता सामाजिक और राजनीतिक संबंधों का मूल है। न्यायालय ने कहा, "प्रेस ने अब सार्वजनिक शिक्षक की भूमिका ग्रहण कर ली है, जिससे बड़े पैमाने पर औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा संभव हो रही है, खासकर विकासशील देशों में, जहां टेलीविजन और अन्य प्रकार के आधुनिक संचार अभी भी समाज के सभी वर्गों के लिए उपलब्ध नहीं हैं।"

    न्यायालय ने कहा कि प्रेस का उद्देश्य तथ्यों और विचारों को प्रकाशित करके जनहित को आगे बढ़ाना है, जिसके बिना लोकतांत्रिक मतदाता जिम्मेदार निर्णय नहीं ले सकते।

    अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित समाचार लेख पर जस्टिस कृष्णा ने कहा कि यह एक घटना की तटस्थ रिपोर्टिंग थी, जिसमें बताया गया था कि सिंघवी से संबंधित एक टेप था, जिसमें आपत्तिजनक भाषा थी, जो विदेश मंत्रालय के कार्यालय में प्राप्त हुई थी और जब जांच की जा रही थी, तो मंत्री ने बिना किसी जांच के उन्हें बर्खास्त करने का फैसला किया, क्योंकि वह एक परिवीक्षाधीन अधिकारी थे।

    कोर्ट ने कहा,

    पूरे लेख से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि वादी पर कोई दुर्भावनापूर्ण झूठे आरोप या आचरण लगाया गया था। बल्कि, जांच शुरू करने और उसके लंबित रहने के दौरान परिवीक्षा के दौरान वादी को बरी करने की सच्चाई पर कोई विवाद नहीं है। एक महिला की आपत्तिजनक बातचीत वाले टेप पर भी कोई विवाद नहीं है। अखबार के लेख में कोई अन्य तथ्य नहीं बताया गया है। यह स्पष्ट है कि रिपोर्टिंग उनके स्रोतों के आधार पर एक निष्पक्ष टिप्पणी थी और मानहानिकारक नहीं थी।"

    हिंदी दैनिक में प्रकाशित दूसरे लेख के संबंध में, अदालत ने कहा कि सूचना सत्यापित स्रोतों पर आधारित थी, और यह देखते हुए कि केंद्रीय मंत्रालय में जो कुछ भी हुआ था, उसके कारण अंततः सिंघवी को बरी किया गया।

    कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समाचार पत्रों के लेखों ने तटस्थ/सत्य तरीके से केवल सत्यापित स्रोतों से एकत्रित जानकारी के आधार पर समाचार की सूचना दी है।"

    कोर्ट ने कहा कि रिपोर्टिंग दुर्भावनापूर्ण नहीं थी और सद्भावनापूर्वक की गई थी और समाचार पत्रों ने केवल समाचार को सार्वजनिक डोमेन में लाने के अपने कर्तव्य का निर्वहन किया था, जिसके बारे में आम जनता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

    केस टाइटल: महावीर सिंघवी बनाम हिंदुस्तान टाइम्स लिमिटेड एवं अन्य।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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