वयस्कों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को उनकी वैवाहिक स्थिति के बावजूद गलत नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

3 May 2024 9:42 AM GMT

  • वयस्कों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को उनकी वैवाहिक स्थिति के बावजूद गलत नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि अगर दो वयस्क सहमति से यौन संबंध बनाते हैं तो उनकी वैवाहिक स्थिति के बावजूद कोई गलत काम नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस अमित महाजन ने कहा,

    "जबकि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध आदर्श रूप से विवाह के दायरे में होने चाहिए, अगर दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध बनाते हैं तो उनकी वैवाहिक स्थिति के बावजूद कोई गलत काम नहीं माना जा सकता।"

    अदालत ने कहा कि यौन दुराचार और जबरदस्ती के झूठे आरोप न केवल आरोपी की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हैं, बल्कि वास्तविक मामलों की विश्वसनीयता को भी कमजोर करते हैं।

    अदालत ने कहा,

    “अदालत के लिए यह जरूरी है कि वह प्रत्येक मामले में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोपों का मूल्यांकन करने में अत्यंत सावधानी बरते खासकर जब सहमति और इरादे के मुद्दे विवादास्पद हों।"

    जस्टिस महाजन ने बलात्कार के मामले में व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। महिला ने आरोप लगाया कि उसने कई बार उसके साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाए और उससे शादी करने का वादा किया। महिला ने आरोप लगाया कि उसे बाद में पता चला कि आरोपी शादीशुदा है और उसके दो बच्चे हैं। उसने दावा किया कि वह उससे उपहार मांगता था और उसने कथित तौर पर उसे 1.5 लाख रुपये नकद और अन्य कीमती सामान दिए।

    व्यक्ति को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि कथित घटना के समय अभियोक्ता वयस्क थी और शादी करने के वादे से उत्पन्न तथ्य की गलत धारणा से उसकी सहमति प्रभावित हुई थी या नहीं, यह जमानत के चरण में स्थापित नहीं किया जा सकता और यह ट्रायल का विषय होगा।

    अदालत ने कहा,

    "यह स्पष्ट है कि अभियोक्ता शिकायत दर्ज करने से पहले काफी समय से आवेदक से मिल रही थी और यह जानने के बाद भी कि आवेदक विवाहित व्यक्ति है, वह अपने रिश्ते को जारी रखना चाहती थी।"

    अदालत ने कहा कि अभियोक्ता ने जो कुछ हुआ, उसके बारे में सक्रिय रूप से सोचने के बाद सचेत निर्णय लिया। साथ ही कहा कि उसके कार्यों से मनोवैज्ञानिक दबाव के तहत निष्क्रिय स्वीकृति का संकेत नहीं मिलता है, बल्कि किसी भी गलतफहमी से रहित मौन सहमति का संकेत मिलता है।

    अदालत ने कहा,

    "जमानत पर विचार करने के चरण में अदालत के लिए कोई निष्कर्ष निकालना न तो उचित है और न ही व्यवहार्य है कि अभियोक्ता से किया गया विवाह का वादा झूठा था और बुरे इरादे से किया गया, जिसका पालन करने का कोई इरादा नहीं था। इस तरह के निर्धारण के लिए मुकदमे में पक्षों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्य के व्यापक मूल्यांकन और मूल्यांकन का इंतजार करना होगा।”

    केस टाइटल- सनी उर्फ ​​रवि कुमार बनाम दिल्ली राज्य

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