हाईकोर्ट ने 14 वर्षीय बलात्कार पीड़िता का नाम उजागर करने के लिए स्वाति मालीवाल के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से किया इनकार
Amir Ahmad
20 Feb 2025 10:54 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में 14 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोप में राज्यसभा सांसद और दिल्ली महिला आयोग (NCW) की पूर्व प्रमुख के खिलाफ 2016 में दर्ज FIR रद्द करने से इनकार किया।
2016 में शहर के बुराड़ी इलाके में पड़ोसी द्वारा कथित तौर पर बार-बार बलात्कार किए जाने के बाद नाबालिग लड़की की यहां अस्पताल में मौत हो गई। FIR के अनुसार नाबालिग के गले में एक संक्षारक पदार्थ जबरन डाला गया, जिससे उसके आंतरिक अंग क्षतिग्रस्त हो गए।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 228a के तहत अपराध के लिए शुरू में दर्ज FIR रद्द करने से इनकार किया, जो बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़िता की पहचान प्रकाशित करने पर रोक लगाती है।
बाद में इस प्रावधान को हटा दिया गया और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 74 के साथ धारा 86 को जोड़ा गया। मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया गया।
कोर्ट ने धारा 74 का हवाला दिया, जो बच्चों की पहचान के खुलासे पर रोक लगाती है और कहा कि अगर कोई समाचार पत्र, पत्रिका, समाचार-पत्र या ऑडियो-विजुअल मीडिया या अन्य माध्यमों से नाम या कोई विवरण प्रकट किया जाता है, जिससे कानून के साथ संघर्षरत बच्चे या देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चे की पहचान हो सकती है तो यह दंडनीय अपराध होगा।
कोर्ट ने कहा कि संबंधित SHO को एक नोटिस जारी किया गया, जिसे DCW के व्हाट्सएप ग्रुप पर प्रकाशित किया गया, जिसे समाचार चैनलों पर प्रसारित किया गया, जिसमें अभियोक्ता का नाम बताया गया।
कोर्ट ने कहा,
"प्रथम दृष्टया, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 86 के साथ धारा 74 के तहत अपराध स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।"
जस्टिस कृष्णा ने नाबालिग पीड़िता के बलात्कार मामले में SIT द्वारा फिर से जांच करने और मालीवाल के खिलाफ दर्ज FIR, जिसमें आरोपपत्र और अन्य कार्यवाही शामिल है, को रद्द करने की मांग करने वाली DCW की याचिका का निपटारा कर दिया। याचिका में पीड़िता की मां और उसके परिवार के लिए मुआवजे की भी मांग की गई।
जस्टिस कृष्णा ने कहा कि हालांकि मालीवाल ने बलात्कार मामले में SIT द्वारा जांच की मांग की। साथ ही पीड़िता के लापता होने के बाद उसके अपहरण पर दर्ज FIR की भी मांग की लेकिन 2016 में दोनों मामलों में आरोपपत्र दायर किए गए और दोनों मामलों में सुनवाई लंबित है।
न्यायालय ने कहा कि SIT के गठन की राहत निरर्थक हो गई, क्योंकि इस पर विचार करना ट्रायल कोर्ट का काम है। साथ ही कहा कि SIT को आगे की जांच सौंपने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
जस्टिस कृष्णा ने मालीवाल की इस आपत्ति को भी खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ FIR में आरोपपत्र पर संज्ञान लेना कानून की दृष्टि से गलत है। मुआवजे की प्रार्थना के संबंध में न्यायालय ने कहा कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पीड़िता के माता-पिता को 50,000 रुपये पहले ही वितरित किए जा चुके हैं।
न्यायालय ने कहा,
"माता-पिता ट्रायल कोर्ट के समक्ष उचित आवेदन प्रस्तुत करके दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना, 2018 के तहत भी मुआवजे का दावा कर सकते हैं।"
केस टाइटल: दिल्ली महिला आयोग बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य और अन्य।