प्रक्रिया पेटेंट विवाद में शुरुआती चरण में भी प्रतिवादी से निर्माण प्रक्रिया का खुलासा मांगा जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
4 Aug 2025 2:47 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 104A को वाद के प्रारंभिक चरण में भी लागू किया जा सकता है, जब पेटेंटधारी यह मांग करता है कि प्रतिवादी अपनी निर्माण प्रक्रिया का खुलासा करे। कोर्ट ने कहा कि इस धारा के प्रयोग को केवल मुकदमे के अंतिम निर्णय तक सीमित नहीं किया जा सकता, खासकर जब वादी एक अंतरिम आवेदन के माध्यम से यह जानकारी मांग रहा हो।
मामले में एफ. हॉफमैन-ला रोश एजी और अन्य, जो रोश समूह का हिस्सा हैं, ने ब्रेस्ट कैंसर के उपचार में प्रयुक्त अपनी पेटेंट दवा 'पर्टुज़ुमैब' से मिलती-जुलती दवा बनाने वाली कंपनी ज़ाइडस लाइफसाइंसेज़ लिमिटेड के खिलाफ मुकदमा दायर किया। वादी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी की दवा उनकी पेटेंट प्रक्रिया के समान उत्पाद है। उन्होंने प्रतिवादी से उसकी निर्माण प्रक्रिया का खुलासा मांगा। प्रतिवादी ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि जब तक वादी यह साबित न कर दे कि दोनों उत्पाद एक जैसे हैं, तब तक धारा 104A के अंतर्गत यह खुलासा नहीं मांगा जा सकता।
वादियों ने यह भी तर्क दिया कि धारा 104A केवल मुकदमे के अंतिम चरण में लागू होती है। अंतरिम अवस्था में प्रतिवादी से जानकारी नहीं मांगी जा सकती।
जस्टिस अमित बंसल ने हालांकि इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि धारा 104A की भाषा में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है जो इसके शुरुआती उपयोग को रोकता हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान सामान्य साक्ष्य सिद्धांत से एक विशेष अपवाद है, जो इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए बना है कि निर्माण प्रक्रिया की जानकारी केवल प्रतिवादी के पास होती है और वादी के लिए उसे प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता है।
कोर्ट ने माना कि धारा 104A का प्रयोग स्वत: नहीं होता, बल्कि वादी को कुछ बुनियादी शर्तें पूरी करनी होती हैं। उसे यह दिखाना होता है कि प्रतिवादी का उत्पाद उसकी पेटेंट प्रक्रिया से सीधे प्राप्त उत्पाद के समान है और यह साबित करना कठिन है कि प्रतिवादी ने कौन-सी प्रक्रिया अपनाई है। यदि यह शर्तें पूरी होती हैं तो अदालत अपने विवेक से प्रतिवादी को अपनी प्रक्रिया अलग होने का प्रमाण देने का निर्देश दे सकती है।
कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि प्रतिवादी की वाणिज्यिक और व्यापारिक गोपनीयता की रक्षा के लिए अधिनियम की धारा 104A(2) में यह प्रावधान है कि यदि अदालत को लगे कि कोई जानकारी देना प्रतिवादी के लिए अनुचित होगा, तो उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
वादी ने जैविक दवाओं के मामलों में धारा 104A के प्रयोग को असंगत बताया और कहा कि जैविक दवाएं वैज्ञानिक रूप से बिल्कुल समान नहीं हो सकतीं, इसलिए 'Identical' शब्द का प्रयोग यहां लागू नहीं होता। अदालत ने इस तर्क को भी खारिज करते हुए केंद्र सरकार की 2016 की 'Similar Biologics Guidelines' का हवाला दिया, जिसमें 'समान' शब्द का प्रयोग नियामक स्वीकृति के लिए किया गया है, लेकिन कानूनी दृष्टिकोण से उत्पाद की संरचना और प्रभाव में एकरूपता होना आवश्यक है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैज्ञानिक कठिनाइयों के आधार पर कानून में किए गए शब्द 'Identical' की व्याख्या कमजोर नहीं की जा सकती। अदालत ने यह कहते हुए वादी का आवेदन खारिज कर दिया कि खुलासे की मांग धारा 104A के दायरे में आती है और इसे मुकदमे के शुरुआती चरण में भी लागू किया जा सकता है।
केस टाइटल :एफ. हॉफमैन-ला रोश एजी एवं अन्य बनाम ज़ाइडस लाइफसाइंसेज़ लिमिटेड

