कैश फॉर क्वेरी मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने महुआ मोइत्रा की अर्जी पर तत्काल आदेश देने से किया इनकार

Amir Ahmad

26 Sept 2025 5:19 PM IST

  • कैश फॉर क्वेरी मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने महुआ मोइत्रा की अर्जी पर तत्काल आदेश देने से किया इनकार

    दिल्ली हाईकोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा की उस अर्जी पर कोई तत्काल आदेश पारित करने से इनकार किया, जिसमें उन्होंने मांग की कि लोकपाल में उनके खिलाफ लंबित कार्यवाही के दौरान भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को छह अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में न सुना जाए।

    मोइत्रा ने यह प्रार्थना इस आधार पर की कि दुबे ने लोकपाल की कार्यवाही से संबंधित गोपनीय सूचनाएं और दस्तावेज़ मीडिया में लीक किए।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि इस स्तर पर मोइत्रा की अर्जी पर कोई आदेश देना उपयुक्त नहीं होगा। अदालत ने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस सांसद अपनी अर्जी लोकपाल के समक्ष रख सकती हैं।

    मोइत्रा की ओर से एडवोकेट समुद्र सारंगी ने दलील दी कि दुबे गोपनीय जानकारी लीक करने के दोषी हैं। इसीलिए उन्हें अगली सुनवाई में नहीं सुना जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह याचिका मामले के गुण-दोष पर नहीं बल्कि केवल गोपनीयता भंग होने के मुद्दे पर है।

    सारंगी ने बताया कि 16 जुलाई को लोकपाल ने CBI की जांच रिपोर्ट के बाद मोइत्रा से जवाब मांगा था। किंतु इससे पहले ही दुबे ने गोपनीय दस्तावेज़ लीक कर दिए। अगस्त में सिंगल बेंच ने आदेश दिया कि इस मामले में गोपनीयता का कड़ाई से पालन किया जाएगा, इसके बावजूद सितंबर में टाइम्स नाउ चैनल पर कार्यवाही से जुड़े गोपनीय दस्तावेज़ प्रसारित हुए।

    मोइत्रा की ओर से कहा गया कि इस तरह की लीक से उनकी छवि धूमिल हुई, क्योंकि वह मीडिया में अपना बचाव नहीं कर सकतीं।

    सारंगी ने अदालत से कहा,

    “मैं मीडिया में अपना बचाव नहीं कर सकती। गोपनीय दस्तावेज़ हूबहू मीडिया में पढ़े गए, जिससे मैं दोषी नज़र आती हूं। मैं अभी पूर्व स्वीकृति (प्री-सैंक्शन) चरण में हूं। सुनवाई छह अक्टूबर को है उस दिन उन्हें उपस्थित न होने दिया जाए।”

    इस पर अदालत ने टिप्पणी की,

    “आपने स्वयं पहले कहा कि आपको कोई आपत्ति नहीं है। अब आप कैसे कह सकते हैं कि हाईकोर्ट कहे कि नहीं, नहीं… इसका मतलब होगा कि हमें यह मानना पड़ेगा कि शिकायतकर्ता ने लीक किया और वह दोषी है। क्या हम ऐसा निष्कर्ष निकाल सकते हैं? क्या हम यह रिकॉर्ड कर सकते हैं कि वह दोषी है? आपको कम से कम अनुच्छेद 226 के अंतर्गत संवैधानिक न्यायालय की सीमाओं का एहसास होना चाहिए।”

    अदालत ने कहा कि सिंगल बेंच पहले ही गोपनीयता पर आदेश पारित कर चुकी है। लोकपाल इस मामले में विचार कर रहा है। मोइत्रा की प्रार्थना वहीं परखी जाएगी और लोकपाल उपयुक्त आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र है।

    ज्ञात हो कि मोइत्रा पर आरोप है कि उन्होंने व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछे। एक इंटरव्यू में उन्होंने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने हीरानंदानी को अपना संसद लॉगिन और पासवर्ड दिया था। हालांकि नकद लेने से उन्होंने इनकार किया। विवाद तब शुरू हुआ जब निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मोइत्रा पर आरोप लगाए। दुबे का दावा था कि इन आरोपों की नींव एडवोकेट जय अनंत देहद्रई के पत्र पर आधारित है। इसके बाद मोइत्रा ने दुबे, देहद्रई और कुछ मीडिया संस्थानों को कानूनी नोटिस भेजकर सभी आरोपों से इनकार किया।

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