पैरोल न देने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिकारियों को लताड़ा, कहा- लंबे कारावास से जेल में अराजकता फैल सकती है
Amir Ahmad
13 Oct 2025 11:55 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली जेल नियम 2018 की अवहेलना करने के लिए राज्य के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इन अधिकारियों में लंबे समय से जेल में बंद कैदियों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पैरोल और फरलो के माध्यम से बिना किसी रुकावट के लंबे समय तक कैद से जेल के अंदर अनुशासनहीनता और अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है।
कोर्ट ने कहा कि अधिकारी यह महसूस नहीं करते कि निर्धारित समय सीमा के भीतर पैरोल या फरलो न देने से केवल अशांति फैलती है। इससे उस राहत का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है, जिसका लक्ष्य कैदियों को पारिवारिक संबंध स्थापित करने और लंबे कारावास के कारण तनाव तथा अवसाद में जाने से रोकना है।
कोर्ट ने कहा,
“राज्य एजेंसियों द्वारा बार-बार प्रदर्शित ऐसे उदाहरण फरलो/पैरोल के प्रावधानों को लागू करने के उद्देश्य के प्रति उनके विरोध को दर्शाते हैं। उन्हें कैदियों तथा उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कोई सम्मान या परवाह नहीं है। यह इस बात को भी दर्शाता है कि वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि पैरोल और फरलो के बिना इतने लंबे समय तक कैद वास्तव में जेल के भीतर ही अनुशासनहीनता और अराजकता की स्थिति को जन्म दे सकती है।”
कोर्ट ने आगे कहा कि फरलो या पैरोल केवल कैदियों की देखभाल करके जेल में अनुशासन बनाए रखने को सुनिश्चित करने के लिए है।
जस्टिस कृष्णा ने नोट किया कि कोर्ट में ऐसे मामलों की बाढ़ आ गई है। बार-बार निर्देश देने के बावजूद कोई परिणाम नहीं निकला है।
उन्होंने दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) को 6 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने अधिकारी से स्पष्टीकरण देने और इस समस्या को सुव्यवस्थित करने के तरीके पर जवाब देने को कहा है।
जज हत्या के दोषी द्वारा दायर एक महीने की पैरोल याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। दोषी का कहना था कि उसने सामाजिक संबंध बनाए रखने और लंबे कारावास के कारण होने वाले आंतरिक तनाव और अवसाद को कम करने के आधार पर 22 जुलाई को पैरोल के लिए आवेदन किया था। उसने बताया कि एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया।
कोर्ट ने दोषी को राहत देते हुए पाया कि पैरोल आवेदन पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय लिया जाना था लेकिन जुलाई, 2025 से अधिकारियों द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद आवेदन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
कोर्ट ने कहा,
"यह देखते हुए कि चार सप्ताह की पैरोल न केवल याचिकाकर्ता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए मांगी गई बल्कि उनके पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण भी जो कि दिल्ली जेल नियम 2018 के तहत उनका अधिकार है। ऐसा कोई भी कारण रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया, जो उन्हें यह राहत पाने से वंचित करता हो यह न्यायालय याचिका स्वीकार करने और याचिकाकर्ता को चार सप्ताह की पैरोल देने के लिए मजबूर है।"

