दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से बिना उचित स्वास्थ्य चेतावनी के हुक्का की अवैध ऑनलाइन बिक्री के खिलाफ याचिका पर निर्णय लेने को कहा
Amir Ahmad
20 Aug 2024 3:22 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बिना किसी विशिष्ट स्वास्थ्य चेतावनी के हुक्का की अवैध ऑनलाइन बिक्री के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) को प्रतिनिधित्व के रूप में ले।
सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने केंद्र की ओर से पेश वकील से मौखिक रूप से कहा,
"वह (याचिकाकर्ता) बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रकाश डाल रहे हैं। आपको इस पर निर्णय लेना चाहिए। वह कह रहे हैं कि यह क्षेत्र वैधानिक प्रावधान द्वारा कवर किया गया। इसे लागू नहीं किया जा रहा है। कार्यान्वयन एजेंसी कौन सी है। आपको प्रक्रिया का एक मानक निर्धारित करना चाहिए।”
याचिका पर गौर करते हुए न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता-जगतमित्र फाउंडेशन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले प्रतिवादियों के समक्ष कोई अभ्यावेदन नहीं किया।
यह देखते हुए कि वह केंद्र सरकार से जनहित याचिका को अभ्यावेदन के रूप में तय करने के लिए कहेगा, पीठ ने उसके बाद आदेश दिया,
“तदनुसार वर्तमान रिट याचिका का निपटारा प्रतिवादी 1 और 2 को निर्देश के साथ किया जाता है कि वे याचिका को अभ्यावेदन के रूप में लें और तीन महीने के भीतर कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई सहित उचित आदेश पारित करें। यदि याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं है तो याचिकाकर्ता कानून के अनुसार उचित कार्यवाही दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा। सभी पक्षों के अधिकार और तर्क खुले हैं।”
जनहित याचिका में प्रतिवादियों-भारत संघ सहित स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर बिना उचित निर्दिष्ट स्वास्थ्य चेतावनी के हुक्का की अवैध ऑनलाइन बिक्री के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और आयु सत्यापन के लिए तंत्र स्थापित करने और हुक्का की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।
याचिका में कहा गया कि सार्वजनिक स्थानों पर हुक्का बेचे जाने से सेकेंड हैंड धुआं निकलता है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
इसने आगे आरोप लगाया कि हुक्के की बिक्री भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन करती है।
याचिका में आगे दावा किया गया कि विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर तम्बाकू उत्पादों की अनियंत्रित बिक्री और प्रचार विभिन्न मौजूदा ढांचे का सीधा उल्लंघन है। विशेष रूप से सिगरेट और अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम (COTPA)।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता फाउंडेशन ने गौरव अग्रवाल के माध्यम से दलील दी भले ही धूम्रपान क्षेत्र किसी अलग जगह पर हो, लेकिन फिर भी हुक्के से निकलने वाला धुआं दीवारों की सीमा को नहीं जानता और यहां तक कि परोसे जा रहे खाद्य पदार्थों में भी समा जाता है। COTPA के उल्लंघन में सभी रेस्तरां और होटल उसमें खाद्य पदार्थ परोस रहे हैं जो अधिनियम का उल्लंघन है।
इस स्तर पर उच्च न्यायालय ने अग्रवाल से मौखिक रूप से पूछा,
"क्या आपने अदालत में आने से पहले कोई प्रतिनिधित्व किया है?"
इस पर अग्रवाल ने कहा कि कुछ आरटीआई दायर की गई थीं और उन्हें अभी भी उसी के जवाब मिल रहे हैं।
अग्रवाल ने आगे कहा कि यह एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है और आम जनता को इस तरह के धुएं के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
इस स्तर पर हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा,
"आप कह रहे हैं कि वैधानिक क्षेत्र पूरी तरह से व्यस्त है। आप कह रहे हैं कि क्षेत्र पूरी तरह से कवर है। यह केवल कार्यान्वयन का सवाल है। पहले आपको अभ्यावेदन करना होगा। कृपया कुछ ऐसे उदाहरण बताएं, जहां ऐसा हो रहा है।”
अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने कुछ ऐसी वस्तुएं खरीदीं, जिनका उपयोग हुक्का बनाने में किया जा रहा है। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि छोटा बच्चा पान की दुकान से ये वस्तुएं ला रहा है, जो कानून का उल्लंघन है।
हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि वह अग्रवाल द्वारा कही गई बातों पर विवाद नहीं कर रहा है, लेकिन उसने उनसे पहले इस मुद्दे पर केंद्र को एक अभ्यावेदन लिखने के लिए कहा।
हाईकोर्ट ने मौखिक रूप से कहा,
“उन्हें इस पर निर्णय लेने दें या हम इस रिट याचिका को प्रतिवादी के लिए अभ्यावेदन के रूप में मानने का निर्देश दे सकते हैं, जिस पर याचिकाकर्ता सहमत हो गया।”
केस टाइटल- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और अन्य के माध्यम से जगतमित्र फाउंडेशन बनाम भारत संघ

