पति से वित्तीय सहायता के लिए पत्नी का अनुरोध क्रूरता नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट
Amir Ahmad
8 March 2024 2:42 PM IST
दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति से वित्तीय सहायता के अनुरोध को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि यद्यपि पीड़ित व्यक्ति कानूनों के तहत उपचार का लाभ उठाने का हकदार है, लेकिन जब पति-पत्नी खरगोश के बिल में फंस जाते हैं तो आपराधिक मुकदमे वापसी नहीं की सीमा को पार करना अपरिहार्य हो जाता है।
अदालत ने कहा,
"अनुचित आरोप और शिकायते ऐसे घातक घावों का कारण बनते हैं, जिससे असहनीय मानसिक और शारीरिक कटुता पैदा होती है। इससे पति-पत्नी के लिए एक साथ रहना असंभव हो जाता है।"
खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act 1955) की धारा 13 (1) (आईए) के तहत पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देते समय ये टिप्पणियां कीं।
दोनों ने तीन साल के प्रेम के बाद 2010 में शादी की थी। 46 दिन साथ रहने के बाद भारतीय सेना में तैनात पति ने कारगिल में अपनी पोस्टिंग ज्वाइन कर ली।
पत्नी ने आरोप लगाया कि पति के माता-पिता यह सोचकर दहेज की अपेक्षा करते थे कि वह पंजाबी है और उनकी शादी में बहुत सारा दहेज देने की संस्कृति है।
दूसरी ओर पति ने आरोप लगाया कि पत्नी उसे शारीरिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करती थी और उसके अड़ियल आचरण के कारण शादी को सफल बनाने के उसके सभी प्रयास व्यर्थ हो गए।
पति को राहत देते हुए अदालत ने कहा कि पत्नी की गवाही से यह सामने आया कि वह पति के माता-पिता के आचरण से नाखुश है, जिसे वह मांग करने वाला और दमनकारी भी मानती है।
अदालत ने कहा,
"हालांकि, बेबुनियाद दावों को छोड़कर उसके दावे की पुष्टि करने के लिए उसके पास कोई सबूत नहीं है।"
वहीं अदालत ने कहा कि पत्नी का यह कहना कि किसी महिला की अपना घर बनाने की महत्वाकांक्षा को पाप नहीं माना जा सकता।
इसमें कहा गया कि जब दो लोग शादी करते हैं तो वे अपना घोंसला और ऐसा जीवन बनाने का इरादा रखते हैं, जहां वे अपनी खुशियां मना सकें और दुखों को एक साथ साझा कर सकें। इसलिए प्रेमालाप के दौरान और बाद में फ्लैट खरीदने में सक्षम होने के लिए अपने पति से समर्थन की तलाश करती हैं। अनुचित नहीं कहा जा सकता।
अदालत ने कहा,
“प्रतिवादी/पत्नी की घर खरीदने की इच्छा और प्रयास, जिसके लिए उसने अपने पति से समर्थन मांगा, उसको किसी भी व्याख्या से उसके पति से लालच या अन्यायपूर्ण मांग नहीं माना जा सकता है। किसी भी तरह से अपने ही पति से वित्तीय सहायता के उसके अनुरोध को क्रूरता का कार्य नहीं कहा जा सकता है।”
खंडपीठ ने कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि पक्षों और उनके संबंधित परिवारों के बीच समायोजन की कमी के कारण असफल विवाह से असंतुष्ट पत्नी ने केवल पति को घुटनों पर लाने के लिए झूठे आरोप और शिकायतें करने जैसे सभी कृत्यों का सहारा लिया। उसका करियर बर्बाद कर दो।
अदालत ने कहा,
“पत्नी का स्पष्टीकरण कि शिकायतें वैवाहिक संबंधों की रक्षा के लिए की गईं, किसी भी मानक द्वारा पति की गरिमा को कमजोर करने के उसके लगातार प्रयासों को उचित ठहराने के लिए उचित स्पष्टीकरण नहीं माना जा सकता। ऐसी परिस्थितियों में पीड़ित पक्ष से वैवाहिक संबंध जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती और अलग होने का पर्याप्त औचित्य है।”
इसमें कहा गया कि पक्षकारों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और झूठे आरोपों पुलिस रिपोर्टों और आपराधिक शिकायतों से भरे इतने लंबे अलगाव को केवल मानसिक क्रूरता कहा जा सकता है।
अदालत ने कहा,
“यह मृत रिश्ता कटुता, अप्रासंगिक मतभेदों और लंबी मुकदमेबाजी से ग्रस्त हो गया; इस रिश्ते को जारी रखने की कोई भी जिद केवल दोनों पक्षों पर और क्रूरता को बढ़ावा देगी।”
केस टाइटल- एक्स बनाम वाई