दहेज उत्पीड़न से निपटने और निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन ज़रूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

30 Sept 2025 1:08 PM IST

  • दहेज उत्पीड़न से निपटने और निर्दोषों के अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन ज़रूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने समाज में दहेज उत्पीड़न और क्रूरता से निपटने और अभियुक्तों से दूर के रिश्ते के कारण ऐसे मामलों में फंसे निर्दोष व्यक्तियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने का आह्वान किया।

    जस्टिस अजय दिगपॉल ने कहा,

    "दहेज उत्पीड़न और क्रूरता जैसी बुराइयां विवाह के पवित्र स्थान के लिए एक महामारी हैं। निस्संदेह, इनसे अत्यंत गंभीरता से निपटा जाना चाहिए। हालांकि, समाज को इन बुराइयों से मुक्त करने के प्रयास को उन निर्दोष व्यक्तियों के अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए, जो केवल अभियुक्तों से रक्त संबंधों के माध्यम से दूर के रिश्ते के कारण इस विवाद मेंंफँस सकते हैं।"

    अदालत एक भतीजी द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जो उन छह व्यक्तियों में से एक है, जिनके खिलाफ दुर्व्यवहार उत्पीड़न क्रूरता और दहेज की मांग का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज की गई। उसने FIR रद्द करने की माxग की।

    उनका कहना था कि उनके ख़िलाफ़ सिर्फ़ यही आरोप लगाए गए कि वे शिकायतकर्ता के वैवाहिक घर में सीसीटीवी कैमरे तोड़ने और शिकायतकर्ता को असुविधा पहुंचाने के इरादे से फ़र्नीचर में ताला लगाने में शामिल थीं।

    शिकायतकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता ने भतीजी के ख़िलाफ़ दर्ज FIR रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

    यह दलील दी गई कि शिकायतकर्ता अपनी भतीजी के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों पर ज़ोर नहीं देना चाहती, क्योंकि FIR में दर्ज घटनाओं के समय उसकी उम्र लगभग 18 साल थी और वह अभी भी स्कूल में पढ़ती थी। वह अपने पिता को खोने के दर्दनाक अनुभव से गुज़र रही थी।

    केवल भतीजी के संबंध में दर्ज FIR रद्द करते हुए अदालत ने कहा,

    “वर्तमान याचिका में निहित प्रार्थनाओं पर शिकायतकर्ता की ओर से कोई आपत्ति न उठाए जाने, FIR में वर्णित घटना के समय याचिकाकर्ता की आयु और परिस्थितियों उसके विरुद्ध लगाए गए महत्वपूर्ण आरोपों के अभाव तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के आलोक में यह अदालत IPC की धारा 498ए/406/34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए FIR और उससे उत्पन्न सभी कार्यवाहियों को केवल वर्तमान याचिकाकर्ता की संलिप्तता की सीमा तक रद्द करना उचित समझता है।”

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