पति द्वारा वित्तीय सहायता में देरी पत्नी और बच्चे की गरिमा का अपमान: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
2 July 2025 4:37 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब पति अपनी निर्भर पत्नी और बच्चे को वित्तीय सहायता देने में देरी करता है तो उनकी गरिमा का हनन होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य तभी पूरा होता है जब यह समय पर दिया जाए, क्योंकि एक दिन की देरी भी इस अधिकार को व्यर्थ कर देती है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा,
"वित्तीय सहायता में देरी का मतलब है गरिमा से इनकार। यह कोर्ट इस सच्चाई से अवगत है कि समय पर भरण-पोषण न केवल जीविका बल्कि उन लोगों की बुनियादी गरिमा की रक्षा के लिए अनिवार्य है जो इसके कानूनी रूप से हकदार हैं।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि भरण-पोषण केवल मौद्रिक जिम्मेदारी नहीं बल्कि एक कानूनी और नैतिक कर्तव्य है जो निर्भर पत्नी और बच्चे की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है।
कोर्ट ने कहा,
"भरण-पोषण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्भर पत्नी और बच्चे को वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा का अहसास हो। यह कोई दया या कृपा नहीं है, जिसे कमाने वाले पति की सुविधा पर टाला जा सके।”
यह टिप्पणी न्यायालय ने उस याचिका पर की, जिसमें पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को प्रति माह 45,000 देने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट ने पाया कि पति यह साबित करने में विफल रहा कि पत्नी के पास अपनी कोई स्वतंत्र आमदनी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पति के माता-पिता उस पर निर्भर हैं। इसका कोई सबूत पेश नहीं किया गया।
पति की ओर से अपने पुश्तैनी घर की EMI का हवाला देने पर कोर्ट ने कहा कि पत्नी और बच्चे को भरण-पोषण देने का उनका कानूनी अधिकार किसी भी संपत्ति की EMI के बहाने से रोका नहीं जा सकता।
अंततः कोर्ट ने आदेश में आंशिक संशोधन करते हुए कहा कि पत्नी को 22,500 और बच्चे को 17,500 प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण मिलेगा।
केस टाइटल: X बनाम Y

