आप सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते: हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों को लेकर SIT जांच और नेताओं के खिलाफ FIR की मांग करने वाले पक्षकारों से पूछा
Amir Ahmad
21 Nov 2025 1:56 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों की स्वतंत्र SIT जांच कथित हेट स्पीच के लिए नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिकाओं के एक बैच पर 11 दिसंबर को सुनवाई के लिए लिस्ट किया।
जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनोज जैन की डिवीजन बेंच ने पार्टियों से पूछा कि वे सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जा सकते और वहां पेंडिंग एक मामले में इम्पलीडमेंट एप्लीकेशन क्यों नहीं फाइल कर सकते, जो उसी मटेरियल और तथ्यों पर आधारित है।
याचिकाकर्ताओं में से एक शेख मुजतबा की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस ने कोर्ट को मांगों के बारे में बताया बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ कथित हेट स्पीच के लिए FIR दर्ज करने की मांग, जिसने दंगों को भड़काया और दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग।
दिल्ली पुलिस की ओर से SPP रजत नायर पेश हुए और बताया कि इसी तरह की मांगों वाली एक याचिका बृंदा करात ने भी दायर की, जो इस बैच में एक याचिकाकर्ता भी हैं। इसमें मजिस्ट्रेट की CrPC की धारा 156(3) के तहत एप्लीकेशन खारिज कर दी, जिसके खिलाफ हाई कोर्ट के सिंगल जज ने अपील खारिज कर दी थी।
नायर ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ SLP सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इस बैच में मांगी गई सभी मांगें वहां पेंडिंग याचिका में शामिल हैं।
इस पर बेंच ने गोंसाल्वेस को सुझाव दिया कि पार्टियों के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना और वहां इम्पलीडमेंट एप्लीकेशन फाइल करना सही रहेगा।
जस्टिस चौधरी ने टिप्पणी की,
"यह वही राहत है, जो उसी मटेरियल पर आधारित है। एक ही मामले पर दो सुनवाई क्यों? आप वहां इम्पलीड हो सकते हैं और वहां बहस कर सकते हैं और इसे उठा सकते हैं।"
जज ने आगे कहा,
“ये PIL हैं। एक ही जैसे तथ्यों और घटनाओं के बारे में अलग-अलग याचिकाओं में अलग-अलग आदेश नहीं हो सकते। अगर एक ही जैसे तथ्यों वाली याचिकाओं के एक सेट में पहले ही एक आदेश पास हो चुका है। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है तो क्या दूसरी PIL पर यहां सुनवाई होनी चाहिए। एक PIL में कोर्ट सब कुछ देखने के बाद एक आदेश पास करता है। जैसे ही यह एक PIL होती है कोर्ट अब टेक्निकल बातों से बंधा नहीं रहता। अगर कोर्ट ने आदेश पास कर दिया तो दूसरी PIL में अलग-अलग आदेश क्यों पास किए जाएं दूसरा पहलू यह है कि अगर आपको SIT के बारे में कुछ भी लगता है तो आप इस स्टेज पर उसे सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं उठा सकते। अब आप सुप्रीम कोर्ट में एप्लीकेशन फाइल कर सकते हैं।"
गोंसाल्वेस ने जवाब दिया कि चूंकि SIT जांच के लिए जो प्रार्थना की गई, उसमें राज्य के बाहर के अधिकारी शामिल हैं। इसलिए ऐसी राहत केवल संवैधानिक कोर्ट ही दे सकता है।
कोर्ट ने गोंसाल्वेस से CrPC की धारा 156(3) की कार्यवाही की डिटेल्स सहित मटेरियल फाइल करने को कहा ताकि मुकदमे के इतिहास के बारे में क्लैरिटी मिल सके।
इस बैच की सुनवाई अब 11 दिसंबर को होगी।

