दिल्ली हाईकोर्ट में आवासीय और गैर-आवासीय परिसरों के बीच अंतर को लेकर DRC Act की धारा 14(1)(डी) को चुनौती देने वाली याचिका

Amir Ahmad

17 Sep 2024 10:54 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट में आवासीय और गैर-आवासीय परिसरों के बीच अंतर को लेकर DRC Act की धारा 14(1)(डी) को चुनौती देने वाली याचिका

    दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम (DRC Act) की धारा 14(1)(डी) को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई।

    धारा 14(1)(डी) किसी भी न्यायालय को किसी भी परिसर के कब्जे की वसूली के लिए मकान मालिक के पक्ष में किरायेदार के खिलाफ आदेश या डिक्री पारित करने से रोकती है। यदि परिसर को निवास के रूप में उपयोग करने के लिए किराए पर दिया गया और यदि न तो किरायेदार और न ही उसके परिवार के सदस्य कब्जे की वसूली के लिए आवेदन दाखिल करने की तारीख से ठीक पहले छह महीने की अवधि के लिए रह रहे थे।

    याचिकाकर्ता ने DRC Act की धारा 14(1)(डी) को इस आधार पर चुनौती दी कि यह आवासीय और गैर-आवासीय संपत्तियों के बीच अंतर करके संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।

    याचिकाकर्ता सत्यवती शर्मा (मृत) बाय एलआरएस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर [2008] आईएनएससी 495 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुष्टि करना चाहता है, जहां अदालत ने माना कि DRC Act की धारा 14(1)(ई) संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह आवासीय और गैर-आवासीय उद्देश्यों के लिए किराए पर दिए गए परिसर के बीच भेदभाव करती है, जब मकान मालिक या उसके परिवार के सदस्यों को कब्जे की आवश्यकता होती है।

    याचिका में कहा गया कि मामला विवाद से उत्पन्न होता है, जहां किरायेदार ने कथित तौर पर दशकों से किराया नहीं दिया और संपत्ति को बंद करके रखा है। अपने संबंधित आदेशों में किराया नियंत्रक और किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण का मानना ​​था कि DRC Act की धारा 14(1)(डी) केवल आवासीय परिसरों पर लागू होती है न कि वाणिज्यिक परिसरों पर। नियंत्रक और न्यायाधिकरण ने कहा कि सत्यवती शर्मा ने केवल धारा 14(1)(ई) के संबंध में परिसर के उपयोग में बदलाव किया, न कि धारा 14(1)(डी) के संबंध में।

    याचिका में कहा गया कि किराया नियंत्रक और किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण द्वारा लिया गया यह दृष्टिकोण सत्यवती शर्मा के विपरीत है। यह तर्क दिया गया कि क्योंकि कमर्शियल या आवासीय के रूप में परिसर के बीच अंतर को असंवैधानिक घोषित किया गया। इसलिए धारा 14(1)(डी) के तहत इस तरह के अंतर को जारी रखने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है।

    याचिका के लिए आधार इस प्रकार बताए गए कि एक बार जब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिसर के बीच अंतर को असंवैधानिक करार दिया गया तो इसे कानून के तहत जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    इसके अलावा विधायिका का यह उद्देश्य कभी नहीं रहा कि किरायेदारी अनंत काल तक जारी रहे और एक बार किराएदार को दुकान के रूप में किराए पर दी गई संपत्ति हमेशा के लिए किरायेदार के पास ही रहेगी, भले ही किरायेदार खुद उसका उपयोग न करे या फिर किरायेदार संपत्ति को बंद रखे और जमींदार के परिवार को जबरन वसूली और परेशान करने के लिए रणनीतिक मुकदमेबाजी में शामिल हो, जिसने दशकों पहले संपत्ति को किराए पर दिया था।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और भारत संघ को नोटिस जारी किया। न्यायालय ने प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- देविंदर कुमार चौधरी बनाम भारत संघ और अन्य

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