ऑनलाइन पार्ट-टाइम जॉब घोटाला: दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार
Amir Ahmad
15 May 2025 4:51 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में 17,95,000 की ठगी के ऑनलाइन पार्ट-टाइम जॉब घोटाले में कथित रूप से शामिल फिनटेक कंपनी Rapipay के एक एजेंट को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा कि वित्तीय लेन-देन से जुड़े मामलों में हिरासत में रहकर की गई गहन पूछताछ अत्यंत आवश्यक होती है।
अदालत ने कहा,
“एक प्रथम दृष्टया मामला अपराध से अर्जित धन को छुपाने में आवेदक की भूमिका और पूरे षड्यंत्र का खुलासा करने की आवश्यकता इन सभी बातों को देखते हुए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। SFIO बनाम आदित्य सरडा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आर्थिक अपराध एक अलग श्रेणी बनाते हैं। इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में खासकर जब आरोपी कानून से बच रहे हों या जांच में बाधा डाल रहे हों, तब अग्रिम जमानत बहुत सावधानी से दी जानी चाहिए।”
शिकायतकर्ता का आरोप है कि उसे WhatsApp और Telegram के जरिए निवेश आधारित कार्यों के लिए प्रेरित किया गया। उसके बैंक खातों से पैसे ट्रांसफर कराए गए। इन पैसों का एक हिस्सा बाद में आरोपी के पास स्थित Rapipay खाते से जुड़ा पाया गया।
आवेदक (Accused) ने दावा किया कि जांच अधिकारी की रिपोर्ट में उसे मामले से जोड़ा गया, लेकिन उसकी धोखाधड़ी में कोई सीधी भूमिका या लाभ साबित नहीं होता।
राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) ने अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आवेदक सीधे उस धोखाधड़ी वाले लेन-देन से जुड़ा है, जो Rapipay खाते के जरिए किया गया, और जिसकी वह एजेंसी संभाल रहा था।
अदालत ने माना कि आरोपी पर लगे आरोप गंभीर और संगठित साइबर अपराध से संबंधित हैं।
“जांच में पता चला है कि आवेदक Rapipay एजेंट के रूप में काम कर रहा था। उसके वर्चुअल अकाउंट से 29 अलग-अलग शिकायतें जुड़ी हैं। साथ ही IP लॉग, WhatsApp चैट और फंड फ्लो के जरिए उसकी संलिप्तता सह-आरोपियों से साबित होती है, जो ठगी की रकम जमा करने का काम कर रहे थे।”
कोर्ट ने Sumitha Pradeep बनाम अरुण कुमार (2022) मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल यह तर्क कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। अग्रिम जमानत देने के लिए पर्याप्त नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया मामला अपराध की प्रकृति और सजा की गंभीरता जैसे तत्व अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए यदि हिरासत में पूछताछ आवश्यक न भी हो फिर भी अग्रिम जमानत मामले की कुल परिस्थितियों के आधार पर दी या न दी जा सकती है।
वर्तमान मामले में अदालत ने यह भी नोट किया कि हालांकि आवेदक ने समन के बाद जांच में शामिल होने का दावा किया, लेकिन जांच अधिकारी ने बताया कि उसने सहयोग नहीं किया।
“आवेदक की निर्दोषता की दलील और उसके खाते के दुरुपयोग का दावा ये सब बातें गहन जांच की मांग करती हैं। इस स्तर पर अग्रिम जमानत देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”
अतः अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: Shamikh Shahbaz Shaikh बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली सरकार)

