पति की वैधता पर सवाल उठाना और मां पर आक्षेप लगाना मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री बरकरार रखी

Amir Ahmad

24 Oct 2025 1:29 PM IST

  • पति की वैधता पर सवाल उठाना और मां पर आक्षेप लगाना मानसिक क्रूरता: दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री बरकरार रखी

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति को नाजायज़ कहकर उसकी वैधता पर सवाल उठाना और उसकी माँ पर घिनौने आरोप लगाना वैवाहिक क्रूरता है, जो तलाक का आधार बनता है।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने इसी आधार पर फैमिली कोर्ट द्वारा पति के पक्ष में दिए गए तलाक की डिक्री को बरकरार रखा।

    पत्नी के आरोप और कोर्ट का खंडन

    पत्नी (अपीलकर्ता) ने हाईकोर्ट में दावा किया कि फैमिली कोर्ट उसके साथ हुई क्रूरता पर विचार करने में विफल रहा और पति को गलत तरीके से तलाक दे दिया। उसने आरोप लगाया कि पति ने जाति-आधारित टिप्पणी करके उसे अपमानित किया, व्यावसायिक जिम्मेदारियों के बावजूद घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया और झूठे व तुच्छ मुकदमों से प्रताड़ित किया।

    हाईकोर्ट ने पत्नी के प्रति-क्रूरता का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल जवाबी क्रूरता का दावा करने से पत्नी के स्थापित क्रूरता के कार्य शून्य नहीं हो जाते।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "दो गलत मिलकर एक सही नहीं बनाते। अपीलकर्ता के क्रूरता के सिद्ध कार्य, जिनमें अपमानजनक भाषा का प्रयोग शारीरिक हिंसा और सामाजिक अलगाव शामिल है, अपने आप में इतने गंभीर हैं कि विवाह के विघटन की गारंटी देते हैं।"

    कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने पति को घिनौने अपमानजनक और निंदनीय संदेश भेजे, जिनमें उसकी वैधता पर सवाल उठाना और उसकी मां के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाना शामिल था।

    कोर्ट ने विशेष रूप से उल्लेख किया,

    "दिनांक 09.05.2011, 15.05.2011 और 27.06.2011 के विशिष्ट संदेश, जिनमें नाजायज़, कमीने का बच्चा जैसे शब्द शामिल हैं। साथ ही यह सुझाव दिया गया कि उसकी माँ को वेश्यावृत्ति के माध्यम से कमाना चाहिए, ये अपने आप में सबसे गंभीर प्रकार की मानसिक क्रूरता गठित करने के लिए पर्याप्त हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के शब्द और संचार निर्दोष नहीं होते। कानून मानता है कि लगातार और जानबूझकर की गई मौखिक गाली-गलौज और ऐसा आचरण जो जीवनसाथी को नीचा दिखाता है तथा प्रतिष्ठा व आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाता है। वह मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। संदेशों में अवैधता के आरोप, पति की मां के खिलाफ अश्लील विशेषण और अन्य अपमानजनक अभिव्यक्ति शामिल है, जिसे फैमिली कोर्ट ने पति के लिए गंभीर मानसिक पीड़ा का कारण मानने का अधिकार रखा।

    इन निष्कर्षों के आधार पर हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज की और तलाक की डिक्री बरकरार रखी।

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