दिल्ली हाइकोर्ट ने VC के माध्यम से चैट बॉक्स में 'अवमाननापूर्ण टिप्पणी' पोस्ट करने वाले वकील को कारण बताओ नोटिस जारी किया
Amir Ahmad
15 May 2024 12:38 PM IST
दिल्ली हाइकोर्ट ने वकील को कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसमें पूछा गया कि कार्यवाही के दौरान वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश होने के दौरान चैट बॉक्स में "स्पष्ट रूप से अवमाननापूर्ण" टिप्पणी पोस्ट करने के लिए उसके खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।
जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि टिप्पणियां न्यायालय को बदनाम करने के इरादे से सार्वजनिक डोमेन में रखी गई थीं, वे स्पष्ट रूप से अवमाननापूर्ण थीं और न्यायिक कार्यवाही के उचित क्रम में हस्तक्षेप करती थीं।
अदालत ने कहा,
"टिप्पणियां आम जनता की धारणा में न्यायालय के अधिकार को कमज़ोर करने के लिए रखी गई। इसलिए वे न्यायालय की अवमानना अधिनियम 1971 (Contempt of Courts Act 1971) की धारा 14 के तहत आपराधिक अवमानना के दायरे में आती हैं।"
वकील ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिसे 23 जनवरी को खारिज कर दिया गया। दिल्ली हाइकोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास 25,000 रुपये जमा करने का आदेश दिया गया था।
हालांकि, वकील द्वारा दायर की गई बर्खास्तगी के खिलाफ पुनर्विचार याचिका 22 अगस्त को सूचीबद्ध की गई, लेकिन अंतरिम में उनके द्वारा एक आवेदन दायर किया गया।
06 मई को मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया। लेकिन वीसी के माध्यम से सुनवाई के दौरान वकील द्वारा चैट बॉक्स में विभिन्न टिप्पणियां पोस्ट की गईं। उन्हें कोर्ट स्टाफ द्वारा रिकॉर्ड पर रखा गया।
टिप्पणियां थीं-
“उम्मीद है कि यह अदालत बार सदस्यों की पुनर्विचार नंबर 120/2024 के दबाव के बिना योग्यता के आधार पर आदेश पारित करेगी, जो डरता है वो कभी न्याय नहीं कर पाएगा। जानबूझकर धीमी सुनवाई करती है”, “गलत आदेश पास करती है, पंडित की तरह भविष्य की वाणी करती है बिना योग्यता के आदेश पास करती है”, “मेरे मामले न सुनने के लिए बार सदस्यों का दबाव।”
जस्टिस मेंदीरत्ता ने कहा कि वकील ने पूछताछ पर कोई पछतावा नहीं जताया और अपनी टिप्पणियों पर कायम है।
अदालत ने कहा,
“याचिकाकर्ता को यह बताने का निर्देश दिया जाता है कि अवमानना का नोटिस क्यों न जारी किया जाए और उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए और कानून के अनुसार विचार के लिए संबंधित रोस्टर बेंच/डिवीजन बेंच को क्यों न भेजा जाए। यदि कोई जवाब हो तो तीन कार्य दिवसों के भीतर दाखिल किया जाए।”
इसके बाद वकील ने चैट बॉक्स में टिप्पणी पोस्ट की कि वह पुनर्विचार याचिका वापस लेना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एसएलपी दाखिल करना चाहता है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि वकील हमेशा कानून के अनुसार अपने पास उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन इससे उसे अवमाननापूर्ण आरोप लगाने और न्यायालय के अधिकार को कमतर आंकने की स्वतंत्रता नहीं मिलती।
अब मामले की सुनवाई 15 मई को होगी।
केस टाइटल- संजीव कुमार बनाम दिल्ली राज्य और अन्य