'बंदरों को खिलाने से उन्हें किस तरह से लाभ नहीं हो रहा': दिल्ली हाईकोर्ट ने नागरिकों को यह बताने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने का आह्वान किया
Amir Ahmad
4 Oct 2024 3:28 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में नागरिक एजेंसियों को बताया कि उन्हें नागरिकों को यह बताने के लिए क्या करना चाहिए कि बंदरों को खिलाने से उन्हें किस तरह से लाभ नहीं हो रहा है।
चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि खिलाने से जानवरों को कई तरह से नुकसान पहुंचता है, क्योंकि इससे उनकी मनुष्यों पर निर्भरता बढ़ती है। जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच प्राकृतिक दूरी कम होती है।
अदालत ने कहा,
"हमारा मानना है कि दिल्ली के लोगों में जन्मजात बुद्धि है। अगर उन्हें एहसास होगा कि जंगली जानवरों को खिलाना जानवरों के कल्याण के साथ-साथ मानव कल्याण के लिए भी हानिकारक है तो वे अपना व्यवहार बदल देंगे।"
इसमें कहा गया कि नागरिक एजेंसियों को दिल्ली के लोगों को यह बताने के लिए एक साल तक लगातार जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए कि उनके भोजन से बंदरों को कोई लाभ नहीं हो रहा है।
कचरा प्रबंधन पर पीठ ने कहा कि सार्वजनिक पार्कों, फूड हब, ढाबा और कैंटीन आदि में खुले में कूड़ा फेंकने से बंदरों की आबादी आकर्षित होती है जिससे मानव-पशु संघर्ष बढ़ता है।
पीठ ने कहा,
"अगर दिल्ली के नागरिक सुरक्षित वातावरण में रहना चाहते हैं तो उन्हें भोजन को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए और इसे अपनाना चाहिए। इस पहलू को भी जन जागरूकता अभियान में उजागर करने की जरूरत है, जिसे नागरिक एजेंसियों द्वारा चलाया जाना चाहिए।"
इसने दिल्ली नगर निगम (MCD) और उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NDMC) को राष्ट्रीय राजधानी में बंदरों के खतरे से निपटने के लिए कार्यक्रम तैयार करने और उसे लागू करने का निर्देश दिया।
उन्होंने कहा,
“MCD और NDMC यह भी सुनिश्चित करेंगे कि बंदरों को सार्वजनिक पार्कों, अस्पतालों, सरकारी कार्यालयों और आवासीय क्षेत्रों से हटाकर असोला-भट्टी वन्यजीव अभयारण्य, नई दिल्ली में पुनर्वासित किया जाए।"
न्यायालय 2015 में दो गैर सरकारी संगठनों- न्याय भूमि और सोसाइटी फॉर पब्लिक कॉज द्वारा इस मुद्दे के संबंध में दायर दो जनहित याचिकाओं पर विचार कर रहा था।
इस मामले की सुनवाई अब 25 अक्टूबर को होगी।
केस टाइटल: न्याय भूमि बनाम दिल्ली सरकार और अन्य तथा अन्य संबंधित मामले