ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत समाधान का लाभ उठाए बिना MSME एक्ट के तहत अवार्ड को चुनौती देने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

16 Feb 2024 9:41 AM GMT

  • ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत समाधान का लाभ उठाए बिना  MSME एक्ट के तहत अवार्ड को चुनौती देने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

    एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की दिल्ली हाइकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि कोई भी पक्ष सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (Micro, Medium, small Enterprises Devlopment Act 2006) के तहत आर्बिट्रेशन अवार्ड को चुनौती दिए बिना अनुच्छेद 226/227 के तहत रिट याचिका दायर नहीं कर सकता। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (Arbitration And Conciliation Act 1996) की धारा 34 के तहत अवार्ड को चुनौती देने के लिए वैधानिक उपाय का सहारा लिया गया। खंडपीठ ने कहा कि सहारा 2006 अधिनियम की धारा 19 के तहत अवार्ड की पूर्व-जमा की आवश्यकता के अधीन है।

    मामला

    स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (अपीलकर्ता) ने दिल्ली मध्यस्थता केंद्र द्वारा दिए गए अवार्ड के खिलाफ हाइकोर्ट की एकल पीठ द्वारा रिट याचिका खारिज करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट में लेटर्स पेटेंट अपील दायर की। एकल पीठ ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत अदालतों को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत विवाद समाधान तंत्र उपलब्ध होने पर केवल पूर्व जमा शर्तों के कारण याचिकाओं पर विचार करने से बचना चाहिए।

    अपीलकर्ता द्वारा अवार्ड को चुनौती देने के लिए रिट याचिका शुरू की गई, जिसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006 के अनुसार प्रतिवादी नंबर 2 को पेंडेंट लाइट और भविष्य के ब्याज के साथ के 7,21,10,729 रुपये दिए गए। इसके साथ ही मुकदमेबाजी लागत 50,000 रुपए भी दिए गए। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि अवार्ड में कानूनी स्थिति का अभाव है और अंतर्निहित क्षेत्राधिकार संबंधी कमियों के कारण इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी नंबर 2 1991 में अनुबंध निष्पादन या आपूर्ति निष्कर्ष के समय MSMED Act के तहत रजिस्टर्ड नहीं था, 2006 में अधिनियमित MSMED Act इसके अधिनियमन से पहले के लेनदेन/अनुबंधों पर लागू नहीं होता है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि यद्यपि वह फैसले को चुनौती देने के लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका दायर कर सकता है, लेकिन यह मामले में व्यावहारिक उपाय नहीं है।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    MSMED Act के तहत मध्यस्थ कार्यवाही से उत्पन्न अवॉर्डों की चुनौतियों के संदर्भ में हाइकोर्ट ने इंडिया ग्लाइकोल्स लिमिटेड और अन्य बनाम सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद, मेडचल - मल्काजगिरी और अन्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 992 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया। साथ ही माना कि अनुच्छेद 226/227 के तहत दायर याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    हाइकोर्ट ने माना कि MSMED Act की धारा 18 मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत वैधानिक उपाय प्रदान करती है। इसमें कहा गया कि MSMED Act की धारा 19 के तहत पूर्व-जमा आवश्यकता को दरकिनार करने के लिए ऐसी याचिकाओं पर विचार करना विशेष अधिनियम के पीछे के विधायी इरादे को विफल कर देगा।

    हाइकोर्ट ने अन्य हइकोर्ट द्वारा अपनाए गए रुख को अस्वीकार किया कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित किसी भी आदेश को अनुच्छेद 226 या 227 के तहत हाइकोर्ट द्वारा सही किया जा सकता। इसने मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान न्यायिक हस्तक्षेप को कम करने की वकालत करते हुए कहा कि पार्टियों को आम तौर पर इंतजार करना चाहिए और अवार्ड घोषित होने तक उन मामलों को छोड़कर, जहां मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील का अधिकार उपलब्ध है।

    नतीजतन इसने अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल- स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज फैसिलिटेशन काउंसिल दिल्ली और अन्य।

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