दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रोफेसर अशोक स्वैन के आपत्तिजनक ट्वीट्स पर एकल पीठ की टिप्पणियों को हटाने की मांग खारिज की
Amir Ahmad
23 April 2025 6:46 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को अकादमिक और लेखक अशोक स्वैन द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसमें उन्होंने एकल पीठ द्वारा उनके OCI कार्ड रद्द करने के मामले की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाने की मांग की थी। इन टिप्पणियों में कहा गया कि उनकी कुछ ट्वीट्स भारत की संवैधानिक व्यवस्था और वैधता को कमजोर करने वाले आपत्तिजनक संकेत देती हैं।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने कहा कि एकल जज ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि ये टिप्पणियां अशोक स्वैन के खिलाफ आरोपों के गुण-दोष पर कोई अंतिम राय नहीं हैं और न ही यह तय करती हैं कि उनके ट्वीट्स OCI कार्ड रद्द करने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं।
स्वैन ने इससे पहले एकल पीठ के समक्ष अपने OCI कार्ड रद्द करने के निर्णय को चुनौती दी थी। पिछले महीने केंद्र सरकार द्वारा उनका कार्ड रद्द करने का आदेश रद्द कर दिया गया था। एकल पीठ ने कहा था कि संबंधित प्राधिकरण स्वैन द्वारा दिए गए जवाब या स्पष्टीकरण पर विचार करने के बाद उचित आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र है।
स्वैन ने खंडपीठ से अनुरोध किया कि एकल जज द्वारा की गई उन टिप्पणियों को हटाया जाए, जिसमें कहा गया कि उनके कुछ ट्वीट्स भारतीय सशस्त्र बलों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रति अपमानजनक संदर्भ रखते हैं और भारतीय राज्य की वैधता को कमजोर करते प्रतीत होते हैं।
खंडपीठ ने कहा कि एकल पीठ का आदेश इस संबंध में स्वयं स्पष्ट है और स्वैन यदि चाहें तो एकल जज के समक्ष जाकर उन टिप्पणियों को हटवाने का अनुरोध कर सकते हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि एकल पीठ ने यह रिकॉर्ड किया है कि स्वैन के वकील ने कहा कि जिन ट्वीट्स को लेकर आपत्ति जताई गई, उन्हें हटा दिया गया है।
स्वैन के वकील ने यह चिंता जताई कि भले ही ट्वीट्स हटा दिए गए हों, लेकिन चूंकि मामला अब दोबारा अधिकारियों के पास भेजा गया, एकल पीठ की टिप्पणियों का इस्तेमाल उनके खिलाफ किया जा सकता है।
इस पर कोर्ट ने कहा कि ये टिप्पणियां तथ्यात्मक निष्कर्ष नहीं हैं बल्कि केवल प्रारंभिक दृष्टिकोण (prima facie opinion) हैं, जिन्हें जज रखने के लिए स्वतंत्र होता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,
“एकल जज ने खुद कहा है कि ये कोई अंतिम राय नहीं है। आदेश में इस्तेमाल शब्द 'प्रतीत होता है' (appears) है, न कि 'माना गया'।”
इसके बाद स्वैन के वकील ने अपील को वापस ले लिया और कोर्ट ने कहा,
“अपील को वापस ले लिया गया। इसे खारिज किया जाता है।”
एकल पीठ के समक्ष स्वैन ने तर्क दिया था कि उन्हें केवल इसलिए निशाना नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि उन्होंने वर्तमान सरकार या उसकी नीतियों के प्रति असहमति व्यक्त की है।
एकल न्यायाधीश ने यह कहा था कि भले ही उनके कुछ ट्वीट्स प्रथम दृष्टया भारत की संवैधानिक व्यवस्था और वैधता को कमजोर करते हैं, फिर भी प्राधिकरण को उन्हें जवाब देने या सुधारात्मक कदम उठाने का पूरा मौका देना चाहिए।
यह आदेश 30 जुलाई 2023 को पारित हुआ, जो कि समन्वय पीठ द्वारा 10 जुलाई 2023 को स्वैन के पहले OCI रद्द आदेश रद्द करने के बाद पारित किया गया।
कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7D(e) के तहत अपने निर्णय का स्पष्ट और कारणों सहित आदेश पारित करे।
बाद में स्वैन ने यह कहते हुए एक और याचिका दाखिल की कि कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद स्वीडन और लातविया में भारतीय दूतावास ने केवल कानून की धाराओं को दोहराते हुए लापरवाह ढंग से आदेश पारित किया।
केस टाइटल: अशोक स्वैन बनाम भारत संघ