दिल्ली सरकार लॉ रिसर्चर के मासिक पारिश्रमिक में स्वीकृत वृद्धि पर शीघ्र निर्णय ले: हाईकोर्ट
Amir Ahmad
12 July 2025 4:01 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने लॉ रिसर्चर के मासिक पारिश्रमिक को बकाया राशि सहित 65,000 रुपये से बढ़ाकर 80,000 रुपये करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस रंजीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया दिल्ली सरकार को न्यायालय द्वारा लॉ रिसर्चर के लिए स्वीकृत वृद्धि पर विचार करना चाहिए और शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।
यह तब हुआ जब याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट के जजों की समिति ने लॉ रिसर्चर के मासिक पारिश्रमिक को 65,000 रुपये से बढ़ाकर 80,000 रुपये करने को मंजूरी दी, जिसे तत्कालीन एक्टिंग चीफ जस्टिस ने मंजूरी दी थी।
यह तर्क दिया गया कि यह निर्णय सितंबर 2023 में दिल्ली सरकार को सूचित किया गया था लेकिन अभी तक कोई मंजूरी नहीं दी गई।
न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट या किसी अन्य न्यायालय के जजों से संबद्ध लॉ रिसर्चर (LR) की न्यायिक सहायता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि वे केस ब्रीफ तैयार करते हैं, शोध करते हैं और उनसे कानून के नवीनतम घटनाक्रमों से अवगत रहने की अपेक्षा की जाती है।
खंडपीठ ने कहा,
जजों को प्रतिदिन बहुत अधिक काम करना पड़ता है, इसलिए लॉ रिसर्चर को प्रतिदिन देर रात तक काम करना पड़ता है और आमतौर पर सप्ताहांत और छुट्टियों पर भी काम करना पड़ता है। प्रथम दृष्टया दिल्ली सरकार को न्यायालय द्वारा स्वीकृत वृद्धि पर विचार करना चाहिए और शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।”
न्यायालय ने भारत संघ, दिल्ली सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट के महापंजीयक से जवाब मांगा। साथ ही न्यायालय ने अधिकारियों से मामले में अपने हलफनामे दाखिल करने को कहा और मामले की सुनवाई 21 अगस्त के लिए सूचीबद्ध की।
यह याचिका 13 व्यक्तियों द्वारा दायर की गई, जो 2018 से 2025 के बीच दिल्ली हाईकोर्ट में लॉ रिसर्चर के रूप में संविदा के आधार पर कार्यरत थे, या हैं।
उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने की मांग की, जिसमें लॉ रिसर्चर का मासिक पारिश्रमिक 1 अक्टूबर, 2022 से बढ़ाकर 80,000 रुपये करने के साथ-साथ बकाया राशि और 18% वार्षिक ब्याज भी शामिल है।
याचिका में कहा गया कि 16 अगस्त, 2023 को चीफ जस्टिस ने 1 अक्टूबर, 2022 से पारिश्रमिक बढ़ाकर 80,000 रुपये करने को मंजूरी दी थी। हालाँकि, यह आरोप लगाया गया कि इस आदेश का अभी तक पालन नहीं किया गया है।
याचिका में कहा गया,
"जीएनसीटीडी को प्रस्ताव भेजे जाने के लगभग दो साल बीत चुके हैं और 07.05.2024 को स्पष्टीकरण दिए जाने के बाद भी, आदेश का क्रियान्वयन नहीं किया गया। माननीय चीफ जस्टिस के 16.08.2023 के आदेश पर कार्रवाई न करने और अनुच्छेद 229 के तहत स्पष्ट प्रशासनिक अनुमोदन और संवैधानिक स्वीकृति के बावजूद बकाया राशि को रोके रखने के कारण यह रिट याचिका दायर करना आवश्यक हो गया।"
यह कहा गया कि दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश को स्वीकृत या अस्वीकृत न करने और सिफारिश को दबाए रखने का कार्य विकृत है।
याचिका में आगे कहा गया कि इस तरह की कार्रवाई याचिकाकर्ताओं और अन्य लोगों को जजों के साथ अपने जुड़ाव के दौरान लॉ रिसर्चर द्वारा की गई कड़ी मेहनत और लंबे समय तक काम करने के बदले मिलने वाले उच्च मासिक पारिश्रमिक के लाभ से वंचित करती है।
टाइटल: रुशांत मल्होत्रा एवं अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य

