दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर कस्टम ड्यूटी, चार्ज नहीं लगाया जाएगा: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
4 March 2024 10:47 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दुर्लभ बीमारियों की दवाओं, औषधियों और उपचारों पर कस्टम ड्यूटी और चार्ज नहीं लगाया जाएगा।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (Customs Act, 1962) के तहत पिछले साल 29 मार्च को केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी गजट अधिसूचना पर ध्यान दिया, जिसमें दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली विशेष मेडिकल प्रयोजनों के लिए दवाएं या भोजन शामिल हैं।
अदालत ने कहा,
"इस प्रकार, वित्त मंत्रालय द्वारा जारी उपरोक्त प्रेस विज्ञप्ति और गजट अधिसूचना के अलावा, यह स्पष्ट किया जाता है कि दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाओं और उपचारों पर कस्टम ड्यूटी और चार्ज नहीं लगाया जाएगा।"
इसमें कहा गया कि जब भी दुर्लभ बीमारियों के संबंध में दवाएं लाई जाती हैं तो कस्टम अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें शीघ्रता से मंजूरी दे दी जाए और यह सुनिश्चित करने में कोई अनावश्यक बाधा न हो कि वे संबंधित अस्पताल तक पहुंच जाएं।
अदालत ने आदेश दिया,
“वर्तमान आदेश को रजिस्ट्री और सीजीएससी कीर्तिमान सिंह के माध्यम से अनुपालन के लिए केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और कस्टडम बोर्ड (सीबीआईसी) को सूचित किया जाए।''
अब इस मामले की सुनवाई 22 मार्च को होगी।
जस्टिस सिंह ने डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और हंटर सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों के इलाज से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
याचिकाओं में मरीजों के लिए मुफ्त इलाज की मांग की गई, जो अन्यथा बहुत महंगा है। अदालत 2020 से समय-समय पर याचिकाओं पर विभिन्न आदेश पारित करती रही है।
पिछले साल नवंबर में अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दुर्लभ बीमारियों वाले बच्चों के लिए दवाओं की खरीद की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था, जिनके लिए मूल्यांकन पूरा हो चुका है और जो फंड के अनुसार इलाज के लिए उपयुक्त हैं।
अदालत ने पहले अपने द्वारा गठित राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति को निर्देश दिया कि वह आनुवांशिक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के लिए दवाओं का निर्माण और विपणन करने वाली कंपनियों के साथ विचार-विमर्श करे, जिससे उचित मूल्य पर दवाओं की खरीद की संभावना का पता लगाया जा सके।
जस्टिस सिंह ने पिछले साल मई में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया, जिससे दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए राष्ट्रीय नीति, 2017 को कुशल तरीके से लागू किया जा सके और यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि इसका लाभ अंतिम रोगियों तक पहुंचे।
केस टाइटल: मास्टर अर्नेश शॉ बनाम भारत संघ एवं अन्य।