विवाह के बाद क्रूरता महिलाओं की गरिमा छीनती है, घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
29 Sept 2025 12:08 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक घरों में क्रूरता महिलाओं की गरिमा को छीनती है। साथ ही इस बात पर ज़ोर दिया कि दहेज और घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।
जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा,
"यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी कई महिलाओं को अपने वैवाहिक घरों में दहेज की मांग के कारण क्रूरता का सामना करना पड़ता है। ऐसी क्रूरता न केवल महिलाओं की गरिमा को छीनती है, बल्कि कई दुखद मामलों में उनकी जान भी ले लेती है। ये घटनाएं इस बात की कड़ी याद दिलाती हैं कि दहेज और घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।”
अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला के ससुर और देवर को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार करते हुए की, जिसने कथित तौर पर अपने पति, ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों द्वारा लगातार दहेज की मांग और क्रूरता के कारण अपने मायके में आत्महत्या कर ली थी।
कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ। मृतका के परिवार के सदस्यों के बयान दर्ज किए गए। आरोप लगाया गया कि मृतका का पति उसके माता-पिता, भाई और उनकी पत्नियां लगातार सामान की मांग कर रहे थे और मांग पूरी न होने पर उसे पीटते और प्रताड़ित करते थे।
आरोप लगाया गया कि मृतका को यह चेतावनी देकर ससुराल से निकाल दिया गया कि उसे तभी वापस आने दिया जाएगा, जब उसका परिवार स्कॉर्पियो कार की मांग पूरी कर देगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि ससुराल वालों ने उसका मोबाइल फोन भी छीन लिया था।
अदालत ने मृतका के ससुर और देवर को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार करते हुए उसकी ननद को राहत प्रदान की। ऐसा करते समय जस्टिस शर्मा ने मृतका के परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए बयानों पर ध्यानपूर्वक ध्यान दिया।
अदालत ने कहा कि मृतका की अपनी मां के साथ बातचीत से प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि उसकी मृत्यु के समय के आसपास उसके साथ गंभीर क्रूरता और उत्पीड़न किया गया था।
यह तर्क दिया गया कि ससुर घर के ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे, जबकि देवर दूसरी मंजिल पर रहता था और मृतका अपने पति के साथ तीसरी मंजिल पर रहती थी।
इस पर अदालत ने कहा कि केवल इस तथ्य का कि वे एक ही घर की अलग-अलग मंजिलों पर रह रहे थे, यह अर्थ नहीं है कि वे मृतका के संपर्क में नहीं थे या उन्होंने उसके साथ क्रूरता नहीं की होगी।
अदालत ने कहा,
"स्पष्ट रूप से, पूरा परिवार एक ही घर में अलग-अलग मंजिलों पर रह रहा था। इस प्रकार केवल इसी आधार पर उनके खिलाफ आरोपों को असंभव या झूठा नहीं माना जा सकता।"
अदालत ने आगे कहा,
"यह अदालत इस तथ्य को भी ध्यान में रखता है कि आवेदकों को कई नोटिस दिए जाने के बावजूद वे अभी तक जांच में शामिल नहीं हुए। इसके अलावा, जैसा कि जांच अधिकारी के निर्देश पर राज्य के अतिरिक्त अभियोजक द्वारा सूचित किया गया है उनके मोबाइल फोन बंद पाए गए।"

