वर्दीधारी अधिकारी का विवाहित होते हुए दूसरी महिला को अश्लील मैसेज भेजना अस्वीकार्य: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 Oct 2025 11:59 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया कि एक वर्दीधारी सेवा का विवाहित अधिकारी अगर किसी अन्य महिला को अश्लील मैसेज भेजता है, तो उसका यह कृत्य अस्वीकार्य है।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने CISF (केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) के एक सब-इंस्पेक्टर (कार्यकारी) पर लगाए गए दंडादेश को सही ठहराया।
बता दें उक्त अधिकारी पर आरोप है कि उसने अपनी ही यूनिट की एक महिला अधिकारी को व्हाट्सएप पर अश्लील मैसेज भेजकर और मोबाइल कॉल के जरिए परेशान करके उसका यौन उत्पीड़न किया।
कोर्ट ने कहा,
"जैसा कि जांच कार्यवाही और पुनर्विचार प्राधिकरण में सही ढंग से बताया गया, याचिकाकर्ता एक वर्दीधारी सेवा का सदस्य है और विवाहित है, उसे किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाने और अश्लील मैसेज भेजने का कोई अधिकार नहीं है। यह आचरण निश्चित रूप से एक वर्दीधारी बल के अधिकारी के लिए अशोभनीय है।"
अधिकारी पर जो दंड लगाया गया वह दो साल के लिए वेतन में कटौती इस निर्देश के साथ कि कटौती की अवधि के दौरान वह वेतन वृद्धि अर्जित नहीं करेगा। साथ ही इस अवधि की समाप्ति पर कटौती का प्रभाव उसकी भविष्य की वेतन वृद्धि को भी स्थगित करेगा।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सामान्य बातचीत के दौरान अधिकारी आई लव यू , डार्लिंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता था और दुर्भावनापूर्ण इरादे से उसके घर में घुसने का प्रबंध किया। शिकायत पर विभागीय जांच की गई अधिकारी के खिलाफ आरोप तय किए गए और जांच समिति द्वारा दंड लगाया गया।
पुनर्विचार प्राधिकरण ने अधिकारी की याचिका यह मानते हुए खारिज कर दिया कि उसका बचाव पक्ष पर विचार न करने का आरोप किसी विशिष्ट विवरण से समर्थित नहीं था और ऐसे अस्पष्ट और असार तर्कों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने अधिकारी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि विभागीय जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए आयोजित की गई और यह नहीं कहा जा सकता कि अधिकारी को खुद का बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया।
खंडपीठ ने जोड़ा कि जांच प्राधिकरण ने अधिकारी को शिकायतकर्ता को परेशान करने का दोषी ठहराने से पहले सभी प्रासंगिक सामग्री पर विचार किया था और मैसेज की प्रकृति ऐसी थी, जिसे वर्दीधारी बल के सदस्य से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला,
"निर्णयों की श्रृंखला में प्रतिपादित कानून को लागू करते हुए यह न्यायालय जांच कार्यवाही में कोई दुर्बलता नहीं पाता है। यह नहीं कहा जा सकता कि जांच समिति द्वारा किसी बाहरी सामग्री पर विचार किया गया या किसी प्रासंगिक सामग्री पर विचार करना छोड़ दिया गया। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया।"

