दिल्ली हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार को अध्यक्ष चुनने वाली JDU के आंतरिक चुनावों को चुनौती देने वाले आदेश के खिलाफ अपील खारिज की
Amir Ahmad
3 March 2025 3:53 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने जनता दल यूनाइटेड (JDU) के निष्कासित सदस्य गोविंद यादव द्वारा एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज की, जिसमें 2016 में JDU द्वारा आयोजित आंतरिक पार्टी चुनावों को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई, जिसमें नीतीश कुमार को राजनीतिक दल का अध्यक्ष चुना गया।
यादव ने 2016, 2019 और 2022 में आयोजित आंतरिक पार्टी चुनावों को इस आधार पर चुनौती दी थी कि वे पार्टी के संविधान का उल्लंघन करते हैं। वह 2016 से 2021 तक पत्राचार की श्रृंखला के माध्यम से अपने पदाधिकारियों की सूची में संशोधन के संबंध में JDU द्वारा ECI को अधिसूचित परिवर्तनों से व्यथित थे। उनका मामला यह था कि ये परिवर्तन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) की धारा 29 (ए) (9) का उल्लंघन करते हुए किए गए।
उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मंच से नीतीश कुमार के चुनाव, उसके बाद के अनुसमर्थन और 2016 में जेडीयू द्वारा ईसीआई को सौंपे गए पत्र को चुनौती दी थी।
एकल पीठ ने पाया कि याचिका में कोई दम नहीं है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अपील में अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यदि चुनाव या किसी अन्य महत्वपूर्ण मामले के बारे में ECI को दी गई जानकारी पर आपत्ति की जाती है तो ECI का कर्तव्य है कि वह जांच करे। उन्होंने तर्क दिया कि ECI को न केवल धारा 29ए (9) के तहत ऐसी जांच करने की शक्ति प्राप्त है बल्कि किसी भी आपत्ति के मामले में ECI के लिए जांच करना अनिवार्य है।
संदर्भ के लिए RP Act की धारा 29ए (9) में प्रावधान है कि किसी संघ या निकाय के राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत होने के बाद उसके नाम, मुख्यालय पदाधिकारियों, पते या किसी अन्य महत्वपूर्ण मामले में किसी भी बदलाव की सूचना बिना देरी के ईसीआई को दी जानी चाहिए।
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ अपीलकर्ता की दलील से सहमत नहीं थी। उन्होंने कहा कि विधायिका द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए (9) के तहत चुनाव आयोग को कोई न्यायिक प्राधिकरण प्रदान करने का इरादा नहीं था।
अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए (9) के तहत नाम और पदाधिकारियों में परिवर्तन से संबंधित जानकारी प्रस्तुत करने को अनिवार्य बनाने का विधायी इरादा चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दल का उचित और अपडेट रिकॉर्ड बनाए रखना है।
इसमें कहा गया,
"जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए को सरलता से पढ़ने पर पता चलता है कि इसमें प्रदान की गई विधायी योजना किसी संघ या निकाय को राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड करने के उद्देश्य से है। हमारी सुविचारित राय में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए की उप-धारा 9 को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए की व्यापक विधायी योजना के भीतर समझा जाना चाहिए। चूंकि आरपी अधिनियम की धारा 29ए किसी संघ या निकाय को राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड करने का प्रावधान करती है। इसलिए हमारा स्पष्ट मत है कि आरपी अधिनियम की धारा 29ए की उपधारा 9 में उल्लिखित नाम और पदाधिकारियों आदि में परिवर्तन से संबंधित सूचना प्रस्तुत करने की आवश्यकता ECI द्वारा रजिस्टर्ड राजनीतिक दल का उचित और अद्यतन रिकॉर्ड बनाए रखने के उद्देश्य से है।”
न्यायालय ने टिप्पणी की कि अपीलकर्ता के तर्क में न्यायालय से 'कुछ ऐसे शब्द और वाक्यांश उपलब्ध कराने की मांग की गई, जो अन्यथा उक्त प्रावधान में अनुपस्थित हैं। इसने कहा कि अपीलकर्ता ने ऐसी व्याख्या देने की मांग की, जो धारा 29ए(9) में स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है, यानी अपीलकर्ता ने व्याख्या के स्वर्णिम नियम को अपनाने की मांग की। न्यायालय का विचार था कि चूंकि धारा 29ए(9) में प्रयुक्त भाषा और शब्द स्पष्ट और सरल हैं, इसलिए व्याख्या के स्वर्णिम नियम को लागू करने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के आदेश से सहमति व्यक्त की कि मांगी गई राहत की प्रकृति जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए (9) के दायरे से बाहर है। इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।

