दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: पिता की वसीयत न होने पर संपत्ति पर बेटे का निजी हक

Amir Ahmad

18 Sept 2025 3:29 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: पिता की वसीयत न होने पर संपत्ति पर बेटे का निजी हक

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि जिस पिता की मृत्यु बिना वसीयत बनाए होती है, उसकी संपत्ति उसके बेटे को उसकी व्यक्तिगत हैसियत से मिलती है, न कि उसके अपने परिवार के 'कर्ता' के रूप में। इस फैसले के अनुसार जब तक पिता जीवित है, तब तक उसका बेटा उस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं जता सकता।

    जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 बिना वसीयत वाले उत्तराधिकार के मामले में जन्मसिद्ध अधिकार की अवधारणा को बाहर कर देती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पोते का अधिकार उसके पिता की मृत्यु के बाद ही उत्पन्न होता है, जब उत्तराधिकार वास्तव में खुलता है।

    यह मामला संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा था, जिसे मूल रूप से राम लाल सेठी ने खरीदा था। उनके पोते ने दावा किया कि मौखिक बंटवारे से यह संपत्ति उसके पिता को मिली और दादा की मृत्यु के बाद पोते के रूप में वह भी उसका पूर्ण मालिक बन गया। उसने संपत्ति को संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बताते हुए बंटवारे की मांग की।

    याचिकाकर्ता के पिता और भाई ने याचिका खारिज करने के लिए आवेदन दिया, क्योंकि इसमें कोई कानूनी आधार नहीं है। कोर्ट ने आवेदन स्वीकार कर लिया और याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का पूरा मामला इस धारणा पर आधारित है कि यह एक पैतृक संपत्ति है, जिसमें उसका निहित अधिकार है।

    अदालत ने बताया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद कानून में बड़ा बदलाव आया। पारंपरिक हिंदू कानून के तहत एक पुरुष हिंदू को जन्म से ही अपने पिता की विरासत में मिली संपत्ति में अधिकार मिल जाता था। हालांकि, अधिनियम धारा 8 के प्रावधानों के अनुसार पोते को बाहर रखा गया और बेटा अपने बेटे को छोड़कर अकेले संपत्ति का वारिस होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "जिस पिता की मृत्यु बिना वसीयत बनाए होती है, उसकी संपत्ति उसके बेटे को उसकी व्यक्तिगत हैसियत में मिलती है।"

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता के पिता जीवित हैं और संपत्ति उन्हें बंटवारे में उनकी स्व-अर्जित संपत्ति के रूप में मिली थी।

    कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज की कि याचिकाकर्ता का कथित हिस्सा केवल 1956 से पहले की कानूनी धारणा पर आधारित है, जिसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 द्वारा समाप्त कर दिया गया।

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