नियम पढ़ने योग्य बनाना होगा: विदेशी लॉ फर्मों के अनुशासनात्मक नियमों पर दिल्ली हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
Amir Ahmad
13 Nov 2025 3:48 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के Foreign Lawyers and Foreign Law Firms (Registration and Regulation) Rules 2022 के तहत निर्धारित अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
अदालत ने कहा कि इन नियमों में प्रारंभिक जांच और दंड प्रक्रिया की परिभाषा अस्पष्ट है तथा यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं लगती।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि यदि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य केवल आरोपों की प्रारंभिक समीक्षा है तो उसके आधार पर सीधे पंजीकरण निलंबित करने या दंड लगाने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है।
अदालत ने कहा,
“यदि नियमों में केवल एक ही प्रकार की जांच का प्रावधान है तो संबंधित विदेशी वकील या लॉ फर्म को सुनवाई और साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए। उन्हें वे दस्तावेज भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए जिनके आधार पर जांच आरंभ की गई।”
यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की गई, जिसे अविमुक्त दर और अन्य ने BCI की अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए दायर किया था।
सुनवाई के दौरान जस्टिस गेडेला ने कहा,
“सेवा संबंधी मामलों में सामान्यतः दो चरण होते हैं। प्रारंभिक जांच और उसके बाद नोटिस जारी कर मुख्य जांच। लेकिन यहां तो आप सीधे प्रारंभिक जांच के बाद ही दंड देने की बात कर रहे हैं।”
चीफ जस्टिस उपाध्याय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा,
“इन नियमों में 'प्रारंभिक जांच' जैसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। नियम त्रुटिपूर्ण हैं। यदि आरोपों का मूल्यांकन किया जा रहा है तो उसके बाद पूरी जांच की जानी चाहिए। केवल प्रारंभिक निष्कर्ष के आधार पर पंजीकरण रद्द या निलंबित नहीं किया जा सकता।”
याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट अमित सिब्बल ने दलील दी कि इन नियमों ने भारी भ्रम उत्पन्न कर दिया।
उन्होंने कहा,
“ये नियम स्पष्टता लाने के लिए बनाए गए थे लेकिन परिणाम उल्टा हो गया। कोई नहीं समझ पा रहा कि प्रक्रिया क्या है।”
अदालत ने BCI से पूछा,
“जब आप कहते हैं कि यह केवल प्रारंभिक जांच है तो यदि आरोपों में दम मिलता है आगे की प्रक्रिया क्या है? कहां लिखा है कि आगे क्या करना है ऐसे नियम कैसे चल सकते हैं।"
अदालत ने कहा कि यदि BCI की यह जांच ही एकमात्र जांच है तो न्याय के सिद्धांतों के अनुसार वह सभी दस्तावेज और सामग्री याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिन पर आरोप आधारित हैं।
चीफ जस्टिस ने कहा,
“हमें संभवतः इन नियमों को पढ़कर उनके शब्दों का पुनः अर्थ निर्धारित (रीड डाउन) करना पड़ेगा। या तो BCI इन्हें संशोधित करे या फिर न्यायालय को इन्हें पढ़ने योग्य बनाना होगा।”
अदालत ने BCI को इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने को कहा और 16 नवंबर को प्रस्तावित अनुशासनात्मक कार्यवाही को स्थगित कर दिया। साथ ही निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता BCI के नोटिस में उल्लिखित दस्तावेज जमा करें लेकिन BCI तब तक इस मामले में कोई अंतिम निर्णय न ले।
मामले की अगली सुनवाई अब 18 नवंबर को होगी।

