लास्ट सीन थ्योरी पर आधारित दोषसिद्धि के लिए पुष्टिकारक साक्ष्य आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बलात्कार-हत्या की सजा पलटी
Amir Ahmad
12 April 2025 8:29 AM

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया है कि किसी आरोपी की दोषसिद्धि केवल इस आधार पर नहीं की जा सकती कि वह मृतक के साथ अंतिम बार देखा गया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब दोषसिद्धि लास्ट सीन थ्योरी पर आधारित हो तो अन्य परिस्थितियों और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से समर्थन प्राप्त करना अधिक सुरक्षित होता है।
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने आगे कहा,
“केवल एक साथ आखिरी बार देखे जाने की परिस्थिति के आधार पर दोषसिद्धि नहीं दी जा सकती और सामान्यतः न्यायालय को अन्य पुष्टिकारक साक्ष्य की तलाश करनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लास्ट सीन का सिद्धांत तब लागू होता है, जब आरोपी और मृतक को आखिरी बार एक साथ जीवित देखने और मृतक के मृत पाए जाने के समय के बीच का अंतर इतना कम हो कि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपराध किए जाने की संभावना असंभव हो जाए।”
मामले के तथ्य:
यह निर्णय एडिशनल सेशन जज (फास्ट ट्रैक कोर्ट) धमतरी, जिला धमतरी (छत्तीसगढ़) द्वारा दिए गए दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ दायर अपील से संबंधित है। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 376 और 201 के तहत दोषी ठहराया था।
आरोपी को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और 500 जुर्माना, तथा धारा 376 और 201 के तहत 7-7 वर्ष के कठोर कारावास और 500-500 का जुर्माना दिया गया।
जांच के दौरान यह आरोप लगाया गया कि आरोपी ने दुष्कर्म की नीयत से मृतका के साथ शारीरिक संबंध बनाए और जब उसने विरोध किया तो आरोपी ने चादर से उसकी नाक और मुंह दबा दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
यह भी आरोप है कि आरोपी ने मृतका के पर्स से 1650 निकाले, उसे खाने-पीने में खर्च किया और उसका मोबाइल व सिम तोड़कर एक व्यक्ति (लक्ष्मीनाथ) के आंगन में फेंक दिया।
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी मानते हुए सजा दी, जिसे चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की।
अपील में आरोपी ने तर्क दिया कि उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और न ही किसी गवाह ने अपराध होते देखा है। दोषसिद्धि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। दोष सिद्ध करने के लिए जो परिस्थितियाँ थीं, उन्हें संदेह से परे साबित नहीं किया गया। इसके अलावा, लास्ट सीन के गवाह (PW3, PW7, और PW9) की गवाही विश्वसनीय नहीं थी, क्योंकि इनमें से किसी ने भी आरोपी और मृतका को एक साथ नहीं देखा।
जबकि अभियोजन पक्ष ने ट्रायल कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों का सही तरीके से मूल्यांकन किया और आरोपी को सही ढंग से दोषी ठहराया।
कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने सबसे पहले सभी साक्ष्यों की गहन जांच कर यह पाया कि रिकॉर्ड में कोई निर्णायक साक्ष्य मौजूद नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी ने ही अपराध किया। दोषसिद्धि केवल PW3, PW7 और PW9 की गवाही पर आधारित थी जो कथित तौर पर लास्ट सीन के गवाह थे।
कोर्ट ने कहा कि PW3, PW7 और PW9 की गवाही जिसमें बताया गया कि आरोपी को मृतका के साथ अपराध के दिन देखा गया, आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं था।
कोर्ट ने यह भी कहा,
“हमें इन गवाहों की गवाही से बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया गया, क्योंकि (PW3 और PW9) ने केवल यह कहा कि उन्होंने आरोपी को मृतका के साथ देखा और मृतका की मृत्यु और लास्ट सीन के बीच काफी समय का अंतर है। इसलिए इन गवाहों को लास्ट सीन के गवाह नहीं माना जा सकता। ट्रायल कोर्ट ने केवल इस आधार पर कि घटना से एक दिन पहले आरोपी को मृतका के साथ देखा गया और उसने यह नहीं बताया कि वह कब मृतका से अलग हुआ उसे दोषी ठहरा दिया, लेकिन आरोपी का नाम न तो देहाती मर्ग इंटिमेशन (प्रद.प.24) में है और न ही FIR (प्रद.प.34) में। FIR 31.07.2018 को दर्ज की गई और गवाहों के बयान काफी बाद में रिकॉर्ड किए गए, जिससे स्पष्ट है कि लास्ट सीन थ्योरी FIR के एक महीने बाद सामने आई। इसलिए, ट्रायल कोर्ट द्वारा इन गवाहों की गवाही को लास्ट सीन के लिए स्वीकार करना उचित नहीं था।”
इसके अतिरिक्त कोर्ट ने कहा कि यद्यपि जांच अधिकारी ने आईडिया मोबाइल कंपनी से कॉल डिटेल मंगवाए लेकिन अभियोजन पक्ष ने मोबाइल कंपनी के किसी अधिकारी को कोर्ट में पेश नहीं किया और न ही यह साबित किया कि बरामद सिम मृतका के मोबाइल का था। यहां तक कि घटनास्थल से मिले ताले और चाबी भी अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के कब्जे से प्राप्त होने की पुष्टि नहीं की गई।
कोर्ट ने यह भी माना कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों और साक्ष्यों से आरोपी की संलिप्तता को लेकर संदेह जरूर उत्पन्न होता है, लेकिन ऐसा कोई भी संदेह चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता।
अतः कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी की दोषसिद्धि रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के उचित मूल्यांकन पर आधारित नहीं थी और इसलिए वह संदेह का लाभ पाने का हकदार है। ट्रायल कोर्ट की सजा को पलटते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
टाइटल: काविलास बनाम छत्तीसगढ़ राज्य