छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में कार्यरत कर्मचारी को राहत दी
Amir Ahmad
28 April 2025 4:01 PM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में दो दशकों से दैनिक वेतन पर कार्यरत कर्मचारी को राहत देते हुए उसकी सेवाओं को नियमित करने की मांग वाली याचिका स्वीकार की।
कर्मचारी के मामले और अभिलेखों का उचित मूल्यांकन करने का आदेश देते हुए जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
“मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए याचिका स्वीकार की जाती है। प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अन्य समान स्थिति वाले कर्मचारियों के अभिलेखों का निरीक्षण करें, जब उनकी सेवाओं को नियमित किया गया। यदि याचिकाकर्ता का मामला भी उन दैनिक वेतन भोगियों के समान पाया जाता है, जिनकी सेवाएं नियमित की गई थीं तो उनकी सेवाओं को भी उसी तिथि से नियमित किया जाए।”
पूरा मामला
याचिकाकर्ता दो दशकों से अधिक समय से दैनिक वेतनभोगी के रूप में औषधालय सेवक के पद पर काम कर रहा है। उसके पास स्थायी रूप से पद धारण करने के लिए सभी आवश्यक योग्यताएं हैं। इसके बदले में उसने औषधालय सेवक के पद पर नियमित नियुक्ति के लिए विचार करने के लिए प्रतिवादी अधिकारियों को विस्तृत अभ्यावेदन भी प्रस्तुत किया।
याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने दिनांक 05/03/2008 के सर्कुलर के आधार पर समान स्थिति वाले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित किया। इस प्रकार याचिकाकर्ता को सेवा के नियमितीकरण से वंचित करना न केवल अवैध, मनमाना और भेदभावपूर्ण प्रकृति का था बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी था, जितना कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
न्यायालय ने नरेंद्र कुमार तिवारी एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य [सिविल अपील नंबर 7423-7429/2018 (01/08/2018 को निर्णीत)] के मामले पर भरोसा किया, जिसमें अपीलकर्ता ने 10 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद सेवा नियमित करने की मांग की और सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नियमितीकरण नियमों की व्यावहारिक रूप से व्याख्या की जानी चाहिए। यदि अपीलकर्ता ने 10 वर्ष तक सेवा की है, तो उसे सेवा नियमितीकरण का लाभ दिया जाना चाहिए, जब तक कि उनके नियमितीकरण पर कुछ वैध आपत्तियां जैसे कदाचार आदि मौजूद न हों।
तदनुसार, हाईकोर्ट ने याचिका को अनुमति दी और प्रतिवादियों को समान स्थिति वाले उन कर्मचारियों के रिकॉर्ड का आकलन करने के बाद याचिकाकर्ता की सेवाओं को नियमित करने का निर्देश दिया, जिनकी सेवाओं को नियमित किया गया था।
केस टाइटल: जगरनाथ राम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

