छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कर्मचारी की पिछली मजदूरी की मांग खारिज की, कहा- अपील में बरी होना पिछली स्थिति को नहीं बदलता
Amir Ahmad
18 April 2025 5:47 AM

एक कर्मचारी द्वारा दायर की गई याचिका खारिज करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि बाद में हुआ बरी होना पिछली स्थिति को पूर्व प्रभाव से समाप्त नहीं करता, इसलिए कर्मचारी को बकाया वेतन पाने का अधिकार नहीं है।
इस कर्मचारी को एक अपराध में दोषी ठहराया गया था लेकिन बाद में दायर अपील में बरी कर दिया गया। बरी होने के बाद उसने अपने बकाया वेतन (Back Wages) की मांग को लेकर वर्तमान याचिका दायर की थी।
जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने कहा,
“यह याचिकाकर्ता का मामला नहीं है कि उसे निलंबित किया गया और बाद में निलंबन रद्द करके पुनः नियुक्त किया गया, क्योंकि उसे आपराधिक आरोपों में दोषसिद्धि के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। अतः मूल नियम 54-बी (Rule 54-B) इस पर लागू नहीं होगा।”
मामला
याचिकाकर्ता छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड में सिविल सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत था। उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धाराओं 7, 13(1(d) और 13(2) के तहत FIR दर्ज की गई, जिसके बाद उसे निलंबित कर दिया गया। हालांकि, तीन वर्षों तक मुकदमा पूरा न होने पर उसका निलंबन रद्द कर दिया गया।
बाद में स्पेशल कोर्ट (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) रायपुर द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और नौकरी से बर्खास्त कर दिया। याचिकाकर्ता ने इस फैसले को अपील में चुनौती दी और बाद में बरी हो गया। इस बीच वह रिटायर हो गया।
बरी होने के बाद उसने अधिकारियों से बकाया वेतन की मांग की लेकिन विभाग ने यह कहते हुए बकाया वेतन का भुगतान करने से इनकार कर दिया कि चूंकि वह दोषसिद्धि के कारण काम नहीं करा सका था, इसलिए उसे भुगतान नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे मूल नियम 54-बी के तहत बकाया वेतन मिलना चाहिए। इस पर विभाग ने कहा कि यह नियम तभी लागू होता है, जब कोई कर्मचारी निलंबन के बाद पुनः नियुक्त हो। हालांकि, याचिकाकर्ता को नौकरी से बर्खास्त किया गया था।
मूल नियम 54-बी के अनुसार जब कोई सरकारी कर्मचारी निलंबित होता है और बाद में पुनः नियुक्त होता है या अगर वह निलंबन की अवधि के दौरान रिटायर हो गया हो तो उसकी वेतन और भत्ते के बारे में निर्णय लिया जा सकता है लेकिन यह स्थिति केवल निलंबन की दशा में लागू होती है।
कोर्ट ने 'नो वर्क, नो पे' के सिद्धांत को अपनाते हुए मुन्नालाल मिश्रा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [2005] के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि यदि कोई कर्मचारी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के आधार पर बर्खास्त किया गया हो, तो नियम 54, 54-A, और 54-B लागू नहीं होते।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को निलंबित नहीं किया गया बल्कि दोषसिद्धि के आधार पर सेवा से हटाया गया था। इसलिए नियम 54-B लागू नहीं होगा।
कोर्ट ने रंछोड़जी ठाकोर बनाम गुजरात विद्युत बोर्ड [(1996) 11 SCC 603], यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जयपाल सिंह [(2004) 1 SCC 121] और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम मोहम्मद अब्दुल रहीम [(2013) 11 SCC 67] मामलों का हवाला देते हुए कहा कि बाद में हुआ बरी होना, पूर्व प्रभाव से दोषसिद्धि के प्रभाव को समाप्त नहीं करता।
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
“निष्कर्षतः यह माना जाता है कि मूल नियम 54-बी इस मामले में याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होता। अतः उन्हें बकाया वेतन का हकदार नहीं माना जा सकता।”