साइबर अपराध जांच में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की कमी पर चिंता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
Amir Ahmad
14 Oct 2025 3:59 PM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के लिए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की अनुपस्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि इस कमी के कारण कानून प्रवर्तन और न्यायिक प्राधिकरणों की साइबर अपराधों से तुरंत निपटने की क्षमता बाधित हो रही है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य के लिए पर्याप्त संख्या में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति की मांग की गई।
कोर्ट ने खेद व्यक्त करते हुए कहा,
"यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के लागू होने के बावजूद जिसे विशेष रूप से साइबर गतिविधियों को विनियमित करने और नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन किया गया, प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग के मामले लगातार सामने आ रहे हैं जो समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं।"
कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की नियुक्ति की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि यद्यपि ऐसे परीक्षकों की नियुक्ति या पदनाम के लिए कानूनी औपचारिकताएं निर्धारित हैं, इनका पालन केवल नौकरशाही औपचारिकता के रूप में नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"इन उपायों का समय पर और प्रभावी कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि साइबर अपराधों से जुड़े मामलों में न्याय प्रशासन कुशल और प्रभावी हो। नामित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षकों की भूमिका साइबर अपराधों की जांच और न्यायनिर्णयन के लिए केंद्रीय है। उनकी नियुक्ति में किसी भी देरी का सीधा असर कानून प्रवर्तन और न्यायिक प्राधिकरणों की इन अपराधों को तुरंत संबोधित करने की क्षमता पर पड़ता है।"
याचिकाकर्ता शिरिन मालेवार ने यह उजागर किया कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79-A के तहत कोई परीक्षक/विशेषज्ञ नहीं है। याचिका में हर जिले के लिए पर्याप्त संख्या में परीक्षकों/विशेषज्ञों की नियुक्ति के लिए प्रार्थना की गई।
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि नियुक्ति से संबंधित तीन चरणों में से पहला चरण पूरा हो चुका है और दूसरा चरण चल रहा है। चूंकि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कुछ प्रश्न उठाए गए जिनका समाधान तीसरे चरण से पहले आवश्यक है।
कोर्ट ने निर्देश दिया,
"इसलिए संबंधित अधिकारियों पर यह अनिवार्य है कि वे बड़ी जनहित को ध्यान में रखते हुए नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और न्याय वितरण प्रणाली में डिजिटल साक्ष्य की अखंडता बनाए रखने के व्यापक उद्देश्य को देखते हुए सभी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को अपरिहार्य देरी के बिना पूरा करें।"
मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर, 2025 को होगी।

