'आप सीमा सुरक्षा बल की ड्यूटी पर नशे में नहीं हो सकते': सुप्रीम कोर्ट ने बीएसएफ अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा
LiveLaw News Network
9 April 2022 2:05 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीमा सुरक्षा बल के एक पूर्व जवान की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। उसे ड्यूटी पर नशे में होने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने स्पष्ट किया कि अधिकारी के आचरण के मद्देनजर कोर्ट उसे बर्खास्त करने के समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जिसकी पुष्टि महानिदेशक, सीमा सुरक्षा बल, एकल न्यायाधीश और ने और मेघालय हाईकोर्ट की खंडपीठ ने की है।
मामले को सुनवाई की शुरुआत में ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "आपने अपना गुनाह कबूल कर लिया, आपने नशे में होना स्वीकार किया, हम क्या कर सकते हैं? आप सीमा सुरक्षा बल में हैं।"
अधिकारी की ओर से पेश वकील ने पीठ को अवगत कराया कि निचली अदालतों और संबंधित अधिकारियों ने आदेश पारित करते समय सीमा सुरक्षा बल नियमावली के नियम 142 और 143 को ध्यान में नहीं रखा।
ड्यूटी के दरमियान नशे में धुत रहने के अधिकारी के आचरण पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा-
"आपने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, आप ड्यूटी के दौरान नशे में थे और दलील यह है कि आप परेशान हैं, आप जाकर शराब की एक बोतल ले लीजिए। यह मामला खत्म हो गया है। हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे।"
वकील ने विरोध में कहा कि दी गई सजा कठोर है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने माना, "जाहिर है, यह कठोर होगा, आप सीमा सुरक्षा बल होने के नाते ड्यूटी पर नशे में नहीं हो सकते। कुछ अपराध हैं, जहां हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते।"
अधिकारी को दो आरोपपत्रों के आधार पर दोषी पाए जाने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था जिसमें प्रत्येक में दो आरोप थे। पहला आरोप पत्र सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 की धारा 40 और 26 के तहत, अन्य बातों के साथ, नशा करने के लिए था।
अधिकारी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। सीमा सुरक्षा अधिनियम की धारा 20 (सी) और 21 (1) के तहत दूसरे आरोप पत्र में भी उसे दोषी ठहराया गया था। नतीजतन सीमा सुरक्षा बल नियम, 1969 के नियम 142(2) के अनुपालन में, सेवा से बर्खास्तगी का आदेश 01.04.2016 को पारित किया गया था।
उक्त आदेश को महानिदेशक सीमा सुरक्षा बल के समक्ष चुनौती दी गई थी। उसी को खारिज करने पर मेघालय हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई थी। परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सजा की मात्रा आरोपों के अनुपात में थी और हस्तक्षेप के लिए कोई आधार नहीं मिला।
डिवीजन बेंच के समक्ष एक रिट अपील दायर की गई थी। अपील को पूरी तरह से निराधार और समय की पूरी बर्बादी के रूप में निंदा करते हुए, डिवीजन बेंच ने इसे खारिज कर दिया।
शीर्षक: ए. मुरली कृष्णा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। SLP (C) No. 5995 of 2022]