'गलत जाति प्रमाण पत्र वास्तविक व्यक्तियों को लाभ से वंचित करता है': बॉम्बे हाईकोर्ट ने सांसद नवनीत कौर राणा का जाति प्रमाण पत्र रद्द किया
LiveLaw News Network
9 Jun 2021 11:39 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अमरावती की सांसद नवनीत कौर राणा का जाति प्रमाण पत्र रद्द किया और इसके साथ ही जाति जांच समिति (सीएससी) 2017 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 'मोची' अनुसूचित जाति से संबंधित होने के उनके झूठे दावे को मान्य किया गया था।
न्यायमूर्ति आर डी धानुका और न्यायमूर्ति वी जी बिष्ट की पीठ ने राणा को महाराष्ट्र विधिक सेवा प्राधिकरण को जुर्माने के रूप में दो लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया और प्रमाण पत्र सरेंडर करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया।
पीठ ने आदेश में कहा कि,
"हमारे विचार में प्रति वादी संख्या 3 (सांसद नवनीत कौर राणा) ने अपने पिता की सहायता से सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र में संसद सदस्य के लिए चुनाव लड़ने में सक्षम बनाने के लिए रिकॉर्ड बनाने के लिए 'मोची' का जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित धोखाधड़ी की है और इसके साथ ही भारत के संविधान के तहत आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार और ऐसी जाति के लिए उपलब्ध अन्य लाभों के लिए का गलत तरीके से फायदा उठाया है।"
अदालत ने कहा कि इस तरह के कृत्यों से वास्तविक उम्मीदवारों जो आरक्षित वर्ग से आते हैं वे सभी इन लाभों से वंचित हो जाते हैं जो वह भारत के संविधान के तहत इसके हकदार हैं।
कोर्ट ने सीएससी के घृणित आचरण पर आगे टिप्पणी की कि जिसने राणा के दावों को उसके खिलाफ कई शिकायतों के बावजूद स्वीकार कर लिया, इससे लगता है राणा के धोखाधड़ी को स्वीकृति दी है।
पीठ ने समिति के आचरण पर कहा कि,
"प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया और जांच समिति ने सही से काम नहीं किया। हम जांच समिति के अवैधता कृत्य से अपनी नजर नहीं हटा सकते हैं।"
कोर्ट के आदेश के परिणामस्वरूप पहली बार सांसद बनी राणा अपनी सीट खो सकती है क्योंकि यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि,
"कानून के तहत प्रतिवादी संख्या 3 के धोखाधड़ी से प्राप्त जाति प्रमाण पत्र को रद्द करने और जब्त करने के आदेश का का पालन किया जाएगा।"
महाराष्ट्र के अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार राणा 2019 में एनसीपी के समर्थन से तत्कालीन शिवसेना सांसद आनंदराव अडसुल को हराकर लोकसभा सांसद चुनी गईं। उनके पति रवि राणा विधायक हैं। हालांकि 2019 के चुनाव के बाद से राणा का रुझान बीजेपी की तरफ होने की बात कही जा रही है।
पूरा मामला
पीठ ने अडसुल और अमरावती के एक सामाजिक कार्यकर्ता राजू मानकर द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना आदेश पारित किया, जिसमें राणा के जाति प्रमाण पत्र को मान्य करने वाले जाति जांच समिति (सीएससी) के आदेश को चुनौती दी गई थी। उन्होंने 30 अगस्त, 2013 को डिप्टी कलेक्टर द्वारा राणा को जारी किए गए मूल जाति प्रमाण पत्र को भी रद्द करने की मांग की।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सीएम कोर्डे ने प्रस्तुत किया कि नवनीत कौर राणा ने अपने पिता से 2014 में संसदीय चुनाव लड़ने के लिए जाति वैधता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए रिकॉर्ड बनाने के लिए कहा।
सीएससी के सतर्कता सेल ने साल 2014 में मानकर और एक जयंत वंजारी की शिकायतों के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत की कि नवनीत कौर राणा द्वारा प्रस्तुत किया गया स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट, जिसमें "मोची" जाति का उल्लेख किया गया है वह जाली प्रमाण पत्र है। इसे बेंच ने अपने आदेश में नोट किया। इसके बाद जांच समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया।
नवनीत कौर राणा ने सतर्कता अधिकारी के खिलाफ शिकायत की और अपने दावों के समर्थन में अतिरिक्त दस्तावेज जमा किए और सीएससी ने अधिकारी को बदल दिया। अप्रैल में सीएससी ने एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की कि राणा के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट में प्रविष्टि "मोची" 2013 में जोड़ी गई थी।
सीएससी ने मानकर की शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एक बार जारी किया गया वैधता प्रमाण पत्र वापस नहीं लिया जा सकता है और / या रद्द नहीं किया जा सकता है। 2014 में, मानकर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसने अंततः नवनीत कौर राणा के जाति वैधता प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया और सीएससी को मामले को नए सिरे से तय करने का निर्देश दिया।
सीएससी ने 3 नवंबर, 2017 को अपने आदेश में, नवनीत कौर राणा के जाति के दावे को फिर से स्वीकार कर लिया, मुख्य रूप से दो दस्तावेजों पर यानी खालसा कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स द्वारा जारी एक वास्तविक प्रमाण पत्र जिसमें जाति का उल्लेख "सिख चमार" और एक किराए के समझौते के रूप में किया गया था। जो खालसा कॉलेज रजिस्टर के तहत आने वाले निवास के प्रमाण की पुष्टि करता है, जिसमें उसके पूर्वज का पता भी दर्ज होता है।
बहस
एडवोकेट कोर्डे ने दावा किया कि ये दस्तावेज जाली हैं। दस्तावेज पर अलग-अलग जगहों पर स्याही के अलग रंग का प्रयोग किया गया है। उन्होंने बताया कि खालसा कॉलेज के अधिकारियों ने सतर्कता सेल के अधिकारी का निरीक्षण करने से इनकार कर दिया और केवल उनके रजिस्टर की फोटोकॉपी दी।
एडवोकेट कोर्डे ने रेंट एग्रीमेंट को लेकर तर्क दिया कि यह अकल्पनीय है कि 1932 के एक दस्तावेज़ में मुआवजे और रॉयल्टी जैसे शब्दों का उल्लेख है क्योंकि इन शब्दों का उपयोग बॉम्बे रेंट्स होटल और लॉजिंग हाउस रेट्स कंट्रोल एक्ट, 1947 के बाद ही किया गया था।
नवनीत कौर राणा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रसाद के ढाकेफलकर ने तर्क दिया कि सीएससी उन दस्तावेजों पर भरोसा नहीं किया है, जिन पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि सीएससी केवल दो दस्तावेजों पर भरोसा जताया है- (i) किराए का घर का दस्तावेज और (ii) खालसा कॉलेज दस्तावेज। याचिकाकर्ताओं ने जांच समिति के समक्ष इन दस्तावेजों को चुनौती नहीं दी थी। इसलिए न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए इन अतिरिक्त दस्तावेजों का न्यायिक नोटिस नहीं ले सकता है।
एडवोकेट ढाकेफालकर ने आगे तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ सतर्कता सेल की रिपोर्ट को सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट का अवलोकन
पीठ ने खालसा कॉलेज के दस्तावेज के संबंध में कहा कि वाइस प्रिंसिपल ने शिकायतकर्ता के अनुरोध पर सीएससी के समक्ष रजिस्टर की मूल प्रति पेश की। हालांकि उन्हें न तो रिकॉर्ड का निरीक्षण करने दिया गया और न ही वाइस प्रिंसिपल से जिरह करने की अनुमति दी गई।
पीठ ने कहा कि,
"हम यह भी निराशा के साथ नोट करते हैं कि शिकायतकर्ता को मूल रजिस्टर का निरीक्षण नहीं दिया गया था।"
पीठ ने कहा कि,
"जो बात हमें हैरान करती है वह है एक भयानक चुप्पी और जांच समिति की ओर से उक्त प्रतिनिधि द्वारा दिए गए उत्तर पर निष्कर्ष देने में विफलता। अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य का त्याग करते हुए जांच समिति ने मौन रहने का विकल्प चुना।"
पीठ ने इस प्रकार एडवोकेट ढाकेफलकर के तर्कों को खारिज कर दिया कि वह दो अतिरिक्त दस्तावेजों की जांच नहीं कर सका। यह देखते हुए कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं हुआ।
पीठ ने फैसला सुनाया कि सीएससी जाति प्रमाण पत्र अधिनियम की धारा 7 के तहत अपने अनिवार्य कार्यों को करने में विफल रहा, जिसके तहत समिति में न्यायिक कामकाज की विशेषताएं हैं और इसलिए सभी सावधानी के साथ उच्च स्तर के समझदार दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि,
"हमारा दृढ़ मत है कि जांच समिति ने अपना काम बहुत धीमी गति से किया और हम ऐसा कह सकते हैं कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत जांच समिति ने अपने कर्तव्यों का उचित तरीके से पालन नहीं किया।"
रेंट एग्रीमेंट
कोर्ट ने कहा कि 1932 के दस्तावेज़ में राणा के परदादा की जाति का उल्लेख 'सिख चमार' के रूप में किया गया है, हालांकि कानून के तहत किसी भी रेंट एग्रीमेंट में किरायेदार की जाति का उल्लेख करने की कोई आवश्यकता नहीं है और सीएससी ने दस्तावेज़ को स्वीकार कर लिया क्योंकि शिकायतकर्ता ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी।
पीठ ने कहा कि किसी भी निजी दस्तावेज में जाति का उल्लेख जैसे कि कथित रेंट एग्रीमेंट में किसी भी आवेदक की जाति को साबित करने के लिए निर्णायक नहीं हो सकता है। पीठ ने आगे कहा कि दस्तावेज में पूरा पता भी नहीं है।
अदालत ने राणा के दस्तावेजों में विरोधाभासों का उल्लेख किया, जिसके राणा ने 'सिख चमार' और 'रविदसिया मोची' होने का दावा किया है। पीठ ने कहा कि प्रतिवादी संख्या 3 (राणा) ने दो जातियों में से एक को नहीं छोड़ा है। हमारे विचार में 'चमार' और 'मोची' पर्यायवाची नहीं हैं और अलग-अलग हैं।
पीठ ने कहा कि,
"किसी को जाली जाति वैधता प्रमाण पत्र जो उस जाति से संबंधित नहीं है, जाति के ऐसे आरक्षित वर्ग से संबंधित एक वास्तविक और योग्य व्यक्ति और भारत के संविधान में निर्धारित लाभों और सभी लाभों से वंचित हो सकते हैं। हमारा विचार है कि प्रतिवादी संख्या 2 के पक्ष में समिति द्वारा पारित इन जाली और धोखाधड़ी वाले दस्तावेजों को स्वीकार करने वाला आदेश निहित असंभवता का एक स्पष्ट मामला है।"
कोर्ट ने कहा चूंकि प्रतिवादी (राणा) ने फर्जी दस्तावेज पेश करके फर्जी तरीके से जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया है और जाति जांच समिति ने फर्जी तरीके से उक्त जाति प्रमाण पत्र को मान्य किया है। ऐसे जाति प्रमाण पत्र को रद्द किया जाए और जब्त किया जाए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस तरह के धोखाधड़ी से प्राप्त प्रमाण पत्र को रद्द करने पर कानून के सभी परिणामों का पालन किया जाएगा।
पीठ ने अंत में जांच समिति से कहा कि जाति प्रमाण पत्र को मान्य करने से पहले उसे अधिक सतर्क और सावधान होना चाहिए।