'दोबारा यह नहीं करूंगा': जज को धमकी भरे पत्र लिखकर कोर्ट की अवमानना के आरोपी ने कर्नाटक हाईकोर्ट से माफी मांगी
LiveLaw News Network
23 March 2021 10:45 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने (सोमवार) एक 72 वर्षीय व्यक्ति के बिना शर्त माफी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, इसमें आरोपी ने रजिस्ट्री को एक पत्र लिखकर न्यायाधीशों को धमकी दी थी इसके बाद कोर्ट ने स्वत: संज्ञान आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू की है।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने कहा कि,
"माफी को स्वीकार करने का फैसला करने से पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आरोपी इसी तरह के दूसरे किसी निंदनीय आरोप में लिप्त न हो। उसे कोर्ट के समक्ष अंडरटेकिंग देना होगा कि अब से उस पर इस तरह के आरोप न लगें और हम उसे ऐसा करने के लिए उसे मजबूर नहीं कर रहे हैं।"
आगे कहा गया कि, आरोपी द्वारा मांगी गई माफी वास्तविक है कि नहीं, यह आरोपी के आचरण पर निर्भर करेगा।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अदालत ने कथित कंटेमनर एसवीएस राव को याद दिलाते हुए कहा कि इसने पहले भी माफी मांगने के बावजूद इसी तरह के आरोप दोहराए हैं।
पीठ ने कहा कि,
"इससे पहले आपने कोर्ट के समक्ष माफी भी मांगी थी, फिर से कुछ वर्षों के बाद वही आरोप लगे हैं।"
राव ने जवाब दिया कि,
"यह वास्तविक है मिलॉर्ड। यह मेरा वचन है कि मैं इसे दोबारा नहीं दोहराऊंगा। मैं अदालत को यह आश्वासन देता हूं कि मैं इसका पालन करूंगा। माननीय मुख्य न्यायाधीश, मैं अपनी कही हुई बातों का पालन करूंगा। यदि मैं दोहराता हूं, तो आप मुझे किसी भी तरह की सजा दे सकते हैं। मैं अपने बातों पर कायम हूं मैं कभी इस पर पीछे नहीं हटूंगा।"
आगे कहा कि, "पिछली बार इस अदालत ने मुझे कानूनी सलाह लेने के लिए कहा था। मैंने 50 से अधिक वकीलों से सलाह ली है।" बेंच ने इस बात पर चुटकी लेते हुए कहा कि "वेरी गुड।"
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि "आरोपी ने 3 मार्च को एक हलफनामा दायर किया और पैरा 7 में अरोपी ने बिना शर्त माफी मांगने की बात कही है। उसने कहा है कि उसने 26 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और 16 सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और डीआरटी, डीआरएटी और बार के सदस्यों के खिलाफ लगाए गए सभी निंदनीय आरोपों को वापस लेने का फैसला किया है।"
आरोपी ने आगे कहा कि, "उसने (आरोपी) ने 3 मार्च को आवेदन दायर किया है, जिसमें पुलिस द्वारा उसके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है। इस प्रार्थना को अवमानना याचिका में स्वीकार नहीं किया जा सकता है और इसके लिए आरोपी को उचित कार्यवाही फाइल करनी होगी।"
आरोपी ने उसकी याचिका पर सुनवाई के लिए पांच या सात या नौ न्यायाधीशों वाली एक बड़ी बेंच के गठन की मांग की थी। इसके साथ ही यह भी मांग की थी कि ये न्यायाधीश कड़क होने चाहिए, इन पर किसी का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
पीठ ने कहा कि अवमानना याचिका में इस तरह की प्रार्थना गलत है और इसे खारिज कर दिया गया।
पीठ ने कहा कि,
"आरोपी ने अदालत को आश्वासन दिया है कि वह इस तरह की गतिविधियों में लिप्त नहीं होगा। हालांकि उसने इस आशय का लिखित अंडरटेकिंग नहीं दिया है कि वह इस अदालत के न्यायाधीशों, अपीलीय अदालत और इस अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के खिलाफ निंदनीय प्रकृति का कोई आरोप नहीं लगाएगा।"
कोर्ट ने अंत में कहा कि,
"यह उसके (आरोपी) ऊपर है कि वह इस अदालत को इस तरह के आरोप न लगाने का अंडरटेकिंग दे, हम ऐसा करने के लिए उसे मजबूर नहीं कर रहे हैं।"
कोर्ट ने 22 अप्रैल को मामले की आगे की सुनवाई के लिए स्थगित करते हुए कहा कि आरोपी द्वारा मांगी गई माफी वास्तविक है कि नहीं, यह आरोपी के आचरण पर निर्भर करेगा।
पीठ ने खंडपीठ द्वारा 6 नवंबर, 2020 को पारित आदेश के आधार पर आरोपी के खिलाफ स्वत: कार्यवाही शुरू की थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि "किसी भी व्यक्ति को निंदनीय, अनुचित और आधारहीन आरोप लगाकर न्यायाधीशों को डराने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"