महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में दक्षतापूर्वक दायित्व का निर्वाह कर रही हैं : हिमाचल हाईकोर्ट ने तबादला आदेश के खिलाफ महिला फॉरेस्ट गार्ड की चुनौती खारिज की

LiveLaw News Network

17 July 2020 4:15 AM GMT

  • महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में दक्षतापूर्वक दायित्व का निर्वाह कर रही हैं : हिमाचल हाईकोर्ट ने तबादला आदेश के खिलाफ महिला फॉरेस्ट गार्ड की चुनौती खारिज की

    “बड़ी तरक्की हुई है और महिलाओं ने कर वसूली से लेकर उन खतरनाक कार्यों में भी अपनी क्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन किया है, जिन पर आज तक गलत और अवैध तरीके से पुरुषों का विशेषाधिकार समझा जाता था।”

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने तबादला आदेश को चुनौती देने वाली महिला फॉरेस्ट गार्ड की रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में सभी पदों पर अपने दायित्व का निर्वहन बखूबी कर रही हैं।

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि उसने वर्तमान जगह पर तीन साल की नौकरी पूरी नहीं की है और वह 24 वर्ष की कुंवारी कन्या भी है। वह अपने परिवार के साथ रह रही है, इसलिए तबादला किये गये स्थान पर ज्वॉइन करने की स्थिति में नहीं है।

    मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उनकी मुवक्किल महिला (वीकर सेक्स) हैं। उन्होंने न्यायालय पर तबादला आदेश निरस्त करने के लिए जोर दिया, लेकिन न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना दुआ ने इस पर कहा :

    "कम से यह (वीकर सेक्स) कहना तो निरर्थक और भ्रांतिपूर्ण है और यदि इसे मान भी लिया जाये तो यह न केवल संविधान के कानूनी प्रावधानों, खासकर अनुच्छेद 14 और 16, बल्कि देश के अन्य कानूनों का भी उल्लंघन होगा। याचिकाकर्ता यह महसूस करने में विफल रही है कि अब काफी तरक्की हो चुकी है और महिलाएं कर वसूली से लेकर उन खतरनाक पदों पर भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं जिन्हें कभी गलत और अवैध तरीके से पुरुषों का विशेषाधिकार माना जाता रहा है। आज देश की महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र के सभी पदों पर दक्षता पूर्वक दायित्वों का निर्वाह कर रही हैं।"

    बेंच ने सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि वे महिलाएं ही थीं, जिन्होंने सेना में स्थायी कमीशन की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसे भारत सरकार ने देने से इनकार कर दिया था।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का उल्लेख करते हुए किसी कर्मचारी के ट्रांसफर / पोस्टिंग में कोर्ट के दखल को लेकर संबंधित कानून का भी वर्णन किया :-

    तबादला नौकरी की शर्त है। इससे कर्मचारी का दर्जा या परिलब्धियां अथवा वरिष्ठता प्रभावित नहीं होती। कर्मचारी को किसी विशेष स्थान पर पोस्टिंग हासिल करने या किसी विशेष समय के लिए खास स्थान पर नौकरी करने का कोई अधिकार नहीं है।

    किसी कर्मचारी की किस जगह और कितने समय के लिए सेवा की जरूरत है, यह तय करना नियोक्ता के विशेष अधिकार क्षेत्र में है। स्थानांतरण आदेश सार्वजनिक हित या प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार पारित किया जाना चाहिए, न कि मनमाने ढंग से या असंगत बातों के लिए या कर्मचारी के उत्पीड़न के लिए और न ही इसे राजनीतिक दबाव में जारी किया जाना चाहिए।

    तबादला आदेश के खिलाफ न्यायालयों / न्यायाधिकरणों द्वारा न्यायिक समीक्षा की बहुत कम गुंजाइश है और तबादला केवल तभी प्रतिबंधित है जब इसका आदेश वैधानिक नियमों का उल्लंघन करके जारी किया जाता है या इसके पीछे का कुत्सित इरादा स्थापित होता है।

    कुत्सित इरादे के मामले में कर्मचारी को विशिष्ट तौर पर उल्लेख करना होता है और उसे त्रुटिहीन साक्ष्य के जरिये साबित भी करना होता है। जिस व्यक्ति के खिलाफ दुर्भावना का आरोप लगाया जाता है उसे एक पक्षकार के तौर पर नामजद किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि तबादले वाले पदों पर कार्य करने वाले सरकारी कर्मचारी को एक ही स्थान पर बने रहने का कोई निहित अधिकारी नहीं है और कोर्ट को सामान्यतया तबादला आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, बजाय इसके प्रभावित पार्टी को विभाग के उच्चाधिकारियों के पास जाना चाहिए।

    केस का नाम: रीमा बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार

    केस नं. : सिविल रिट याचिका 2257/2019

    कोरम : न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान एवं ज्योत्स्ना रेवल दुआ

    आदेश की प्रति डाउनलोड करेंं



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