वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत संक्षिप्त निष्कासन कार्यवाही के आधार पर महिलाओं के 'साझा परिवार' में रहने के अधिकार को पराजित नहीं किया जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

19 Jan 2022 2:55 PM GMT

  • वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत संक्षिप्त निष्कासन कार्यवाही के आधार पर महिलाओं के  साझा परिवार में रहने के अधिकार को पराजित नहीं किया जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना है कि एक साझेघर के संबंध में निवास का आदेश प्राप्त करने के एक महिला के अधिकार को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के तहत संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाते हुए बेदखली का आदेश प्राप्त करने के सरल उपाय द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता ह।

    डॉ. जस्टिस अशोककुमार सी. जोशी की खंडपीठ ने एस वनिथा बनाम उपायुक्त, बेंगलुरु शहरी जिले के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि एक साझेघर के संबंध में निवास का आदेश प्राप्त करने के एक महिला के अधिकार को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के तहत सारांश प्रक्रिया अपनाते हुए बेदखली का आदेश प्राप्त करने के सरल उपाय द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है।

    संक्षेप में तथ्य

    याचिकाकर्ता, जगदीपभाई चंदूलाल पटेल (एक वरिष्ठ नागरिक) इस मामले में प्रतिवादी नंबर 1, रेशमा रुचिन पटेल के ससुर और प्रतिवादी नंबर 2 के पिता हैं, जो वर्तमान में यूएसए में रह रहा है।

    कथित तौर पर, उनकी बहू, प्रतिवादी नंबर 1, ने उनके घर में अवैध रूप से प्रवेश किया,इसलिए याचिकाकर्ता को अपने घर से बाहर जाकर एक अन्य स्थान पर रहना पड़ा। तदनुसार, उसने अहमदाबाद में फैमिली कोर्ट के समक्ष एक अंतरिम निषेधाज्ञा आवेदन के साथ एक मुकदमा दायर किया।

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की थी कि प्रतिवादी नंबर 1 को निर्देश दिया जाए कि वह अपनी नाबालिग बेटी काशवी के साथ उसके घर से चली जाए। साथ ही उनको निर्देश दिया जाए कि वह उक्त संपत्ति को अपने निवास स्थान के तौर पर उपयोग न करें।

    उक्त आवेदन को मार्च 2021 में फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ता के लिखित बयान-सह-उत्तर-सह-निषेध आवेदन को भी आक्षेपित आदेश के माध्यम से खारिज कर दिया गया था। इसलिए, याचिकाकर्ता ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

    उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष दावा किया कि वह उक्त आवास में रहने का हकदार है और इस प्रकार, उनकी बहू (प्रतिवादी नंबर 1) को वहां से बेदखल करने का आदेश जारी किया जाए।

    वहीं, प्रतिवादी नंबर 1 ने कहा कि याचिकाकर्ता की बहू होने के नाते, वह अपने सुसराल के साझा घर में रहने की हकदार है और उसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत इससे बेदखल नहीं किया जा सकता है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि याचिका में मुख्य रूप से शामिल मुद्दा, मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की प्रयोज्यता और इसके परस्पर अधिभावी प्रभाव का है।

    एस वनिथा बनाम उपायुक्त, बेंगलुरु शहरी जिले के मामले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 का घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के तहत एक साझा घर में एक महिला के निवास के अधिकार पर कोई अधिभावी प्रभाव नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 को सभी स्थितियों में एक अधिभावी बल और प्रभाव की अनुमति देना, (पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम 2005 के अर्थ के भीतर एक साझा घर में रहने के एक महिला के अधिकार के लिए प्रतिस्पर्धात्मक पात्रताओं के बावजूद), उस लक्ष्य और उद्देश्य को विफल कर देगा जो संसद इस कानून को अधिनियमित करके हासिल करना चाहता था। वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा करने वाले कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे बेसहारा न रहें, या अपने बच्चों या रिश्तेदारों की दया पर न रहें। समान रूप से, पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम 2005 के उद्देश्य को वैधानिक व्याख्या की छल-कपट से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। विधान के दोनों सेट को सामंजस्यपूर्ण ढंग से समझा जाना चाहिए। इसलिए एक साझेघर के संबंध में निवास का आदेश प्राप्त करने के एक महिला के अधिकार को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के तहत सारांश प्रक्रिया अपनाते हुए बेदखली का आदेश प्राप्त करने के सरल उपाय द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि साझा घर में रहने का अधिकार तब तक जारी रहता है जब तक कि पीड़िता यह साबित नहीं कर देती कि वह घरेलू हिंसा की शिकार है। तदनुसार, न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रतिवादी नंबर 1, को एक साझा परिवार में रहने का अधिकार है।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि केवल एक अन्य उपयुक्त आवास प्रदान करने के लिए एक प्रस्ताव दिया जा रहा है, जो साझा परिवार के प्रतिवादी नंबर 1 के वैध अधिकार को छीन नहीं सकता है।

    इसके साथ ही कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट ने कोई गलती नहीं की है और इसलिए याचिका को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - जगदीपभाई चंदूलाल पटेल बनाम रेशमा रुचिन पटेल

    केस का उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (गुजरात) 2

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