'महिला को गर्भधारण नहीं करने का अधिकार है, हालांकि यह प्रतिबंधों के अधीन': तेलंगाना हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति दी

LiveLaw News Network

7 Jan 2022 4:57 PM IST

  • महिला को गर्भधारण नहीं करने का अधिकार है, हालांकि यह प्रतिबंधों के अधीन: तेलंगाना हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति दी

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि भ्रूण या जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन को महिला के जीवन से अधिक ऊंचे स्थान पर नहीं रखा जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि संवैधानिक न्यायालयों के पास गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्देश देने का अधिकार है, भले ही गर्भावस्था की अवधि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (संशोधन) अधिनियम, 2021 के अनुसार चौबीस सप्ताह की वैधानिक सीमा से अधिक हो।

    जस्टिस बी विजयसेन रेड्डी ने कहा,

    " एक महिला को गर्भधारण करने का विकल्प चुनने का अधिकार है, साथ ही, यह उसका अधिकार है कि वह गर्भधारण न करे, हालांकि, यह 1971 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत शर्तों और प्रतिबंधों के अधीन है।"

    16 साल की बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कोर्ट ने यह अवलोकन किया।

    तथ्य

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार, xxxx, जो कि 16 वर्ष की है, उसने अपनी मां और प्राकृतिक अभिभावक के माध्यम से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार, अपनी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की थी।

    याचिकाकर्ता के एक पर‌िजन ने उसकी सहमति के बिना उसका यौन शोषण किया था और फिर उसे धमकी दी कि अगर उसने हमले के बारे में कोई जानकारी दी तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। बाद में, जब उसकी तबीयत खराब होने लगी, तो उसे मेडिकल चेकअप के लिए भेजा गया, जिसमें उसे गर्भवती होने का पता चला और भ्रूण 25 सप्ताह का था।

    अस्पताल ने याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया क्योंकि भ्रूण 24 सप्ताह की गर्भधारण अवधि से परे था और अगर भ्रूण का गर्भ 24 सप्ताह से अधिक है तो गर्भावस्था को समाप्त करने पर प्रतिबंध है।

    याचिकाकर्ता के वकील, एडवोकेट सरव्या कट्टा ने प्रस्तुत किया कि एक महिला का प्रजनन विकल्प का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है।

    यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि एक महिला के पास प्रजनन करने या प्रजनन से दूर रहने का विकल्प होता है। एक महिला का अपने शरीर पर स्व-शासन है....। बलात्कार पीड़िता के जीवन के अधिकार का हनन गर्भ में पल रहे बच्चे के जीवन के अधिकार पर भारी पड़ता है।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है जो इतनी कम उम्र की है। भ्रूण का निर्माण किसी विकल्प का परिणाम नहीं है बल्कि विशुद्ध रूप से परिस्थितिजन्य है।

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2021 में संशोधन के बाद)

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 उन परिदृश्यों से संबंधित है जब पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भधारण को समाप्त किया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन की ऊपरी सीमा 20 सप्ताह के विपरीत 24 सप्ताह है जो कि संशोधन से पहले की स्थिति थी। समाप्ति तब हो सकती है जब किसी गर्भनिरोधक की विफलता के परिणामस्वरूप गर्भावस्था होती है, या जहां गर्भावस्था बलात्कार या यौन हमले के कारण हुई है, या भ्रूण की पर्याप्त असामान्यताएं हैं।

    कोर्ट का फैसला

    अदालत ने xxx बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया, 2021 एससीसी ऑनलाइन केर 808 में निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें केरल के हाईकोर्ट ने दर्दनाक अनुभव, पीड़ित और अजन्मे बच्चे के संभावित आनुवंशिक विकार को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति दी थी, भले ही गर्भधारण की अवधि 26 सप्ताह तक पहुंच गई हो।

    यह माना गया कि जब गर्भधारण की अवधि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 और 4 में निर्धारित अवधि से अधिक हो जाती है, तो अदालत के एक आदेश द्वारा चिकित्सा समाप्ति की जा सकती है।

    जस्टिस बी विजयसेन रेड्डी ने कहा कि ऐसी धारणा है कि गर्भावस्था के दौरान बलात्कार पीड़िता को होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट के रूप में माना जाएगा। हालांकि भ्रूण की गर्भकालीन आयु 26 से 27 सप्ताह है, लेकिन याचिकाकर्ता इस उम्र में शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से बच्चे को सहन करने की स्थिति में नहीं है।

    "इस न्यायालय की राय है कि भ्रूण या जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन को याचिकाकर्ता के जीवन से अधिक ऊंचे स्थान पर नहीं रखा जा सकता है। गरिमा, स्वाभिमान, स्वस्थ जीवन भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के पहलू हैं, जिसमें एक महिला को गर्भावस्था का चुनाव करने और गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार भी शामिल है, यदि, जहां गर्भावस्था बलात्कार या यौन शोषण या उस मामले में अनियोजित गर्भावस्था के कारण होती है..." "

    अदालत ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और अस्पताल को निर्देश दिया कि वह 48 घंटे के भीतर सभी एहतियाती उपायों के साथ गर्भावस्था को समाप्त कर दे।

    केस शीर्षक: xxxx बनाम तेलंगाना राज्य

    स‌िटेशन: 2022 लाइव लॉ (तेल) 2



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