'क्यों दूसरे राज्यों को मांग की तुलना में अधिक ऑक्सीजन प्राप्त हुआ, लेकिन दिल्ली को कम मिला': दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

29 April 2021 11:36 AM GMT

  • क्यों दूसरे राज्यों को मांग की तुलना में अधिक ऑक्सीजन प्राप्त हुआ, लेकिन दिल्ली को कम मिला: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को विभिन्न राज्यों द्वारा ऑक्सीजन की मांग और आवंटन में अंतर के संबंध में दिल्ली सरकार की ओर से किए गए सबमिशन के संबंध में केंद्र से जवाब मांगा है। कोर्ट ने एसजी मेहता को जवाब देने और उसे रिकॉर्ड पर रखने के लिए एक दिन का समय दिया है।

    कोर्ट के समक्ष दिल्ली सरकार ने कहा कि दिल्ली को आवंटित की ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं की जा रही है जबकि मध्य प्रेदश और महाराष्ट्र को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो रही है। इसका जवाब केंद्र को देना चाहिए।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने विभिन्न राज्यों की ऑक्सीजन की मांग और आवंटित मात्रा में अंतर के संबंध में सीनियर एडवोकेट राहुल मेहरा की प्रस्तुतियं रिकॉर्ड कीं।

    एसजी तुषार मेहता ने सबमिशन की रिकॉर्डिंग पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इन्हें रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे घबराहट बढ़ेगी। हालांकि कोर्ट ने मेहता को हलफनामे दायर कर जवाब देने को कहा।

    बेंच ने कहा कि,

    "यदि आपको अपने जवाब में विश्वास है तो इसे आत्मविश्वास के साथ रिकॉर्ड पर रखें।"

    मेहता ने आगे आपत्ति जताते हुए कहा कि गुजरात जैसे ऐसे राज्य भी हैं, जिन्होंने 1000 मीट्रिक टन की मांग की थी। मांग की तुलना में उन्हें कम ऑक्सीजन प्राप्त हुआ है। उन्हें लगभग 975 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्राप्त हुआ है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वे इसे केवल मेहरा की प्रस्तुतियां के रूप में दर्ज कर रहे हैं और केंद्र को जवाब देने के लिए एक दिन का समय दिया जा रहा है। यह नोट किया गया कि 21 अप्रैल तक के सभी आंकड़े सरकारी आंकड़े हैं।

    बेंच ने कहा कि,

    "किसी भी तरह से हम दिल्ली के लिए किसी अन्य राज्य की कीमत पर आवश्यकता से अधिक पाने में रुचि नहीं रखते हैं। हालांकि यदि मेहरा की प्रस्तुतियां स्वीकार की जा रही हैं तो केंद्र को चार्ट के द्वारा सबकुछ बताने की जरूरत है।"

    एमिकस क्यूरी राजशेखर राव ने प्रस्तुत किया कि एक चीज जिसे हरी झंडी दिखाने की जरूरत है, वह यह कि राउरकेला से मिलने के बजाय मध्यप्रदेश के कुछ संयंत्रों से ऑक्सीजन आवंटन को दिल्ली की ओऱ डायवर्ट करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की ओर से की गई ऑक्सीजन की मांग की तुलना में अधिक आपूर्ति की जा रही है।

    राव ने कहा कि,

    "बेशक महाराष्ट्र को जरूरत हो सकता है क्योंकि इसमें सबसे अधिक संख्या में मामले हैं। इसके अलावा आप बेड की संख्या बढ़ा रहे हैं, लेकिन ऑक्सीजन के बिना वे बेकार हैं।"

    कोर्ट ने मेहता से कहा कि उन्हें एमिकस द्वारा उल्लिखित मध्य प्रदेश की स्थिति को स्पष्ट करने की आवश्यकता है, जहां उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश को किए गए आवंटन से अधिक आपूर्ति की जा रही है।

    बेंच ने केंद्र से पूछा,

    "आपको यह समझाना होगा कि अगर एक राज्य ने एक्स और दूसरे ने वाई की मांग की है, लेकिन दूसरे को अधिक मिल रहा है आपको समझाने की आवश्यकता है ऐसा क्यों?"

    मेहता ने जवाब दिया कि अगर उन्हें अधिक दिया जा रहा है तो यह तेजी से बढ़ते कोरोना के मामलों के कारण है। इसके अलावा हम जितनी मदद दिल्ली की कर सकते हैं कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली आवंटित ऑक्सीजन नहीं ले पा रहे हैं और केंद्र राज्य की मदद कर रहा है।

    मेहता ने आगे कहा कि,

    "यह न माना जाए कि एनडीए (NDA) आप (AAP) की मदद नहीं कर रहा है बल्कि केंद्र राज्य की मदद कर रहा है। हमारा 90% समय दिल्ली की स्थिति को सुधारने में लग रहा है।"

    कोर्ट ने फिर से मेहता से पूछा कि दिल्ली को आपूर्ति अभी भी 490 मीट्रिक टन क्यों अटकी हुई है। एस जी मेहता ने कहा कि यह 480 मीट्रिक टन पर अटका हुआ नहीं है बल्कि यह हमेशा बदल रहा है।

    मेहता ने कहा कि दिल्ली में 480 मीट्रिक टन की आपूर्ति बढ़ जाएगी और घबराने की जरूरत नहीं है। न्यायालय ने कहा कि घबराहट जमीन पर संसाधनों की कमी के कारण है।

    मेहता ने कहा कि, "यह एक गतिशील स्थिति है, चीजें बदलती रहती हैं।"

    एसजी मेहता ने केंद्र सरकार के अधिकारी गोयल को यह बताने के लिए भी कहा कि मध्य प्रदेश को अधिक आपूर्ति क्यों की गई। कोर्ट ने उनसे आंकड़े साझा करने को भी कहा।

    एमिकस राव ने अदालत को सूचित किया कि 21 अप्रैल तक मध्य प्रदेश में 440 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की थी मांग और उन्हें 545 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्राप्त हुए हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "मांग की तुलना लगभग 25% अधिक दिया गया । हम आपको वहां आपूर्ति कम करने या रोकने के लिए नहीं कह रहे हैं।"

    राव ने महाराष्ट्र के लिए भी आंकड़े साझा किए, जिसमें लगभग 1500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की गई और लगभग 1616 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्राप्त हुए।

    कोर्ट ने गोयल से सवाल किया कि दिल्ली के साथ मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की तुलना में अलग बर्ताव क्यों किया जा रहा है। एसजी मेहता ने जवाब दिया और कहा कि मध्य प्रदेश की आबादी दिल्ली की तुलना में 3 गुना अधिक है और पिछले 3 हफ्तों में वहां कोरोना मामलों में भारी वृद्धि हुई है।

    एसजी मेहता ने कहा कि,

    "गोयल कृपया मध्य प्रदेश की आपूर्ति को दिल्ली में डायवर्ट करें। मध्य प्रदेश में कुछ लोगों की जान जाएगी, लेकिन कृपया इसे डायवर्ट करें।"

    अदालत ने मेहता की सबमिशन का जवाब दिया और उन्हें भावुक नहीं होने के लिए कहा क्योंकि यहां सिर्फ तथ्यों और आंकड़ों पर चर्चा की जा रही है। न्यायालय ने आगे कहा कि स्थिति यह है कि सभी राज्यों में ऑक्सीजन की आवश्यकता लगभग 5 गुना बढ़ गई है।

    राव ने अदालत को सूचित किया कि दस्तावेजों में एक त्रुटि की वजह से दिल्ली की मांग को 470 मीट्रिक टन के रूप में दिखाया गया है, न कि 700 मीट्रिक टन। अधिकारी के दिमाग में इतना होने के बाद वे मानते हैं कि दिल्ली को 480 मीट्रिक टन मिल रहा है यानी इनकी मांग से अधिक मिल रहा है।

    मेहता ने स्पष्ट किया कि कुछ मानवीय त्रुटियां हो सकती हैं, लेकिन केंद्र और अधिकारी हर संभव तरीके से मदद करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

    कोर्ट ने डीसीपी को दिल्ली सरकार के साथ तालमेल बिठाकर ऑक्सीजन सिलिंडर के वितरण और रेमडेसिविर इंजेक्शन के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए कहा है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि इसे उन व्यक्तियों से जब्त नहीं किया जाना चाहिए जिन्हें उनके चिकित्सा उपयोग के लिए मिला है।

    कोर्ट ने यह अवलोकन ऑक्सीजन सिलेंडरों की उपलब्धता और रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति की मांग पर किया है।

    अदालत ने आगे कहा कि जब भी कोई भी सिलिंडर या दवा जब्त किया जाए तो जांच अधिकारी को तुरंत डीसीपी को सूचित करना चाहिए। इन चीजों को ठंडे वातावरण में रखा जाना चाहिए ताकि वे अनुपयोगी न हो जाएं।

    खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष और खुद से पहले COVID -19 मामले के अतिव्यापी पहलुओं की भी जांच की, जिसमें दर्ज किया गया कि अतिव्यापी मुद्दों पर आदेश से बचने के लिए एकल न्यायाधीश पीठ से कार्यवाही वापस लेने के लिए प्रार्थना की गई है।

    खंडपीठ द्वारा खंडपीठ को सूचित किए जाने के बाद यह निर्देश पारित किया गया था कि खंडपीठ सुनवाई कर रही है और ठीक वही मुद्दे हैं जो एकल पीठ द्वारा सुने जा रहे हैं।

    कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि बेहतर सुविधाओं के लिए पड़ोसी राज्यों के लोग दिल्ली में आ रहे हैं, यह एक राष्ट्रीय राजधानी है। उन्हें इस संकट के समय आने से बचना चाहिए और सोशल डेस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह संकट का समय है। लोग ऑक्सीजन के लिए कहीं भी आ रहे हैं, इसलिए ऑक्सीजन सही समय पर सही जगह उपलब्ध होना चाहिए।"

    कोर्ट ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश राहुल मेहरा से कहा कि उन आठ ऑक्सीजन प्लांट का क्या हुआ जिन्हें कार्यात्मक बनाया जाना था।

    मेहरा ने न्यायालय के कल के आदेश के माध्यम से जवाब दिया कि क्या किया जाना जा रहा है और क्या किया गया है यह कोर्ट के आदेशानसार है। अदालत ने कहा कि सारणीबद्ध प्रारूप में प्रस्तुतियां देने के लिए कहा गया था, लेकिन वैसे नहीं दिया गया।

    मेहरा ने कहा कि,

    "हां माय लॉर्ड लेकिन अगर अदालत के आदेशों को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दरकिनार किया जा सकता है तो उन्हें पारित करने का क्या मतलब है?"

    मेहरा ने आगे कहा कि कोर्ट के आदेश के अनुसार टैंकरों के परिवहन समय को कम करने के लिए सुझाव दिया था। केंद्रीय सरकार को इसे क्रियान्वित किया जाना था, लेकिन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना पर विचार किया गया है।

    मेहरा ने कहा कि वे जो भी कह रहे हैं वह शीर्ष नौकरशाही से आ रहा है। केंद्र सरकार ने दिल्ली और देश को विफल कर दिया है और अदालत द्वारा किसी भी विशिष्ट आदेशों की झड़ी लगा दी है और केंद्र इस पर केवल व्यक्तिगत आश्वासन के साथ कहता है कि वे इस पर गौर करेंगे।

    मेहरा ने कहा कि,

    "कृपया उन्हें लक्ष्य को स्थानांतरित करने की अनुमति न दें। मैंने कभी भी दिल्ली सरकार को जिम्मेदारी से पीछे हटते नहीं देखा है। जहां हम गलत हैं, वहां हमने मांफी मांगी है।"

    मेहरा ने तर्क दिया कि संवेदनशीलता का पूर्ण अभाव है। यह हवा से ऑक्सीजन प्राप्त करने के बारे में नहीं है। केंद्र सरकार को केवल कागज पर अपना आवंटन करना चाहिए। केंद्र को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि दिल्ली को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है।

    मेहरा ने कहा कि,

    "हम केवल मूकदर्शक नहीं बने रह सकते हैं और केंद्रीय सरकार हर रोज भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन कर रहा है।"

    केंद्र की ओर से पेश हुए एसजी मेहता ने बताया कि "ज्यादा घबराने का कोई मतलब नहीं है।"

    मेहरा ने कहा कि दिल्ली सरकार ने 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की थी और आज तक 490 मीट्रिक टन भी उन तक नहीं पहुंचा है। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि वे अगले सप्ताह तक 15000 और बेड बढ़ा रहे हैं और इसलिए उन्हें अन्य 280 मीट्रिक टन की आवश्यकता होगी।

    मेहरा ने अदालत से एक आदेश पारित करने का आग्रह किया और केंद्र सरकार को व्यक्तिगत आश्वासन से भागने की अनुमति नहीं देने की मांग की क्योंकि अकेला कानून अधिकारी इसे प्रबंधित नहीं कर सकता।

    मेहरा ने कहा कि,

    "हमें ऑक्सीजन की आवश्यकता है न कि कागजी आदेशों की। यह बयानबाजी नहीं है एक राज्य के रूप में गैर-विनिर्माण एक के रूप मे हमें सभी मदद की ज़रूरत है। वहां बहुत सारे अच्छे लोग हैं जो अपना हर वह काम कर सकते हैं जो वे उन लोगों के लिए कर सकते हैं, लेकिन अब राज्य को एक कदम आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।"

    मेहरा ने प्रस्तुत किया कि यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि केवल ऑक्सीजन कोविड रोगियों को बचा सकता है।

    मेहरा ने कहा कि निम्नलिखित तीन आंकड़ों की जरूरत है;

    1. भारत की ऑक्सीजन पैदा करने की क्षमता क्या कितनी है क्योंकि केंद्र ने इस महामारी से निपटने के लिए सभी चीजों पर कब्जा करके रखा है?

    2. विभिन्न राज्यों को आवंटन राशि क्या है, यह केंद्र द्वारा आवंटित किया गया है और अभी कितनी राशि क्या आवंटित की गई है? हमें यह जानने की जरूरत है।

    3. ऐसा क्या है जो हर राज्य ने पूछा है और ऐसा क्यों है कि जितनी ऑक्सीजन आंवटित करने की मांग की गई है उन्हें आवंटित नहीं किया गया है।

    मेहरा ने कहा कि,

    "हम ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यह सिर्फ दिल्ली, पंजाब, हरियाणा की परेशानी है बल्कि यह पूरे देश की परेशानी है। हमें भारत के रूप में सोचने की जरूरत है। मुझे खेद है कि अगर मैंने किसी की भावनाओं को आहत किया है।"

    पीएसए प्लांट्स के संबंध में मेहरा ने कहा कि दो प्लांट पहले से ही चालू हैं और दो प्लांट 30 अप्रैल से चालू हो जाएंगे और बाकी के लिए सभी अनुमतियां दिल्ली सरकार की ओर से पहले ही दी जा चुकी है। हालांकि पीडब्ल्यूडी ने कहा कि उन्हें कुछ बदलावों की आवश्यकता है।

    मेहरा ने कहा कि,

    "आज हर किसी को ऑक्सीजन संयंत्रों की आवश्यकता है, बाद में उसे दूसरे राज्य में विस्थापित कर दिया जाना चाहिए। हमें इस पर एक साथ गौर करने की जरूरत है आज अगर दिल्ली को ऑक्सीजन की जरूरत है तो कृपया इस पर ध्यान दें और मदद करें।"

    राव ने कहा कि सिविल सोसायटी जो ऑक्सीजन पैदा करने वाले प्लांट लगाने के लिए तैयार हैं उन पर ध्यान दिया जा सकता है क्योंकि रिफिलिंग इतनी बड़ी समस्या नहीं है।

    उन्होंने कहा कि टेस्टिंग एक मुद्दा है, लेकिन उनके पास वास्तविक संख्या नहीं है। इसके अलावा कुछ लोगों को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं हो सकती है तो उनके लिए पर्याप्त उपलब्ध काराया जाए है और कुछ लोगों को ऑक्सीजन की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे बुनियादी देखभाल से ठीक हो जा रहे हैं।

    राव ने कहा कि,

    "हम ऑक्सीजन के लिए ऐसे लड़ सकते हैं, लेकिन इससे कुछ मदद नहीं मिलेगी, जब तक हम एक साथ अपना काम नहीं करेंगे।"

    राव ने कोर्ट को अवगत कराया कि जमीनी समस्याएं यह है कि सूचनाओं का नितांत अभाव है, इसलिए यदि अस्पताल के बेड, रेमेडीसविर आदि के बारे में सभी जानकारी एक जगह पर उपलब्ध कराई जाए तो इससे लोगों को कोने-कोने नहीं भटकना पड़ेगा। इसके अलावा अगर इस जानकारी को एक जगह जोन-वार में सारणीबद्ध किया जाए तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि गुड़गांव के लोगों को रोहिणी तक नहीं भटकना पड़ेगा।

    तुषार मेहता ने कहा कि,

    "हम एक संकट की स्थिति से गुजर रहे हैं, इसलिए विवादों से बचना चाहिए। यह मैं खुद को किसी और से ज्यादा बता रहा हूं।"

    केंद्र की ओर से पेश मेहता ने कहा कि जहां कहीं भी संभव है ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ा दी गई है और आगे अगर मामलों में वृद्धि हुई है और संकट बढ़ जाता है तो उससे भी निपटना होगा।

    केंद्रीय सरकार के अधिकारी पीयूष गोयल ने कहा कि कंटेनर के संबंध में समस्या का उल्लेख किया गया है और दिल्ली सरकार के अनुरोध पर केंद्र ने कंटेनर का आयात किया है। 27 अप्रैल को 4 बड़े कंटेनर लाया जाना था। गोयल ने आगे कहा कि वे खुद ही देखेंगे कि कंटेनर उतरे हैं या नहीं।

    बेंच ने कहा कि,

    "अस्पताल रोगियों को एडमिट नहीं कर रहे है और लोग मर रहे हैं। पहले से बहुत लोगों की जान जा चुकी है। हम नहीं पता कि आप इसे कैसे प्रबंधित कर रहे हैं लेकिन आपको करना होगा। हमें नहीं पता कि कौन-सा राज्य कितने ऑक्सीजन की मांग कर रहा है। "

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