''विवाह वैध रूप से समाप्त क्यों नहीं किया?: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी के कथित तौर पर छोड़कर जाने के बाद लिव-इन रिलेशन में रहने वाले व्यक्ति से पूछा सवाल
LiveLaw News Network
20 Jun 2021 3:45 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक व्यक्ति से सवाल किया कि उसने अपनी पत्नी से अपने वैवाहिक संबंध को वैध रूप से समाप्त क्यों नहीं किया? कोर्ट ने यह सवाल उस समय किया जब इस व्यक्ति (और उसकी महिला लिव-इन पार्टनर) ने एक सुरक्षा याचिका दायर की और दावा किया कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई है और उसे अपने बच्चों को मातृ देखभाल प्रदान करने के लिए मजबूर किया गया है।
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की खंडपीठ ने पाया कि अपने बच्चों की जैविक मां से अपने वैवाहिक संबंध को वैध रूप से समाप्त करने में उसकी निष्क्रियता ने उसकी ओर से नेकनीयती की कमी का संकेत दिया है।
हालांकि, महिला साथी को किसी भी अनावश्यक जोखिम में डालने और/या पुरुष द्वारा गुमराह किए जाने की किसी भी संभावना से बचने के लिए, कोर्ट ने महिला लिव-इन पार्टनर (याचिकाकर्ता संख्या 2/एक विधवा) को सुरक्षा देने का आदेश दिया है।
अदालत ने कहा, ''अगर उसे अपने जीवन और/या स्वतंत्रता के लिए कोई जोखिम उठाना पड़ता है तो यह न्याय का उपहास होगा और इसलिए, वह उस हद तक संरक्षित होने की हकदार है।''
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ताओं (लिव-इन-रिलेशनशिप में पुरुष-महिला) ने लिव-इन-रिलेशनशिप में होने का दावा किया और महिला साथी (याचिकाकर्ता नंबर 2) के माता-पिता और रिश्तेदारों से खतरे की आशंका के कारण अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दिशा-निर्देश मांगे। उन्होंने दावा किया कि महिला के परिजन उनके इस रिश्ते से खुश नहीं हैं।
याचिकाकर्ता नंबर 1 (पुरुष साथी) ने प्रस्तुत किया कि हालांकि वह शादीशुदा था, परंतु उसकी पत्नी उसे छोड़ गई और किसी अन्य पुरूष के साथ रहने लग गई है।
उसने यह भी कहा कि उनके विवाह से उनके दो बच्चे हैं यानी 19 साल का बेटा और 16 साल की बेटी, जो उसके साथ रहते हैं।
जबकि दूसरी ओर, महिला साथी (याचिकाकर्ता नंबर 2) ने प्रस्तुत किया कि वह एक विधवा है और उसके विवाह से उसे भी दो बच्चे अर्थात 12 वर्ष और 7 वर्ष की आयु के दो पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त है।
उनके वकील ने प्रस्तुत किया कि लिव-इन-रिलेशनशिप केवल चार बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए थी और इस प्रकार, दोनों याचिकाकर्ताओं ने उनको बेहतर सह-पालन प्रदान करने के लिए एक ही छत के नीचे रहने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि कोर्ट ने कहा किः
''दोनों याचिकाकर्ताओं की मंशा भले ही नेक रही हो, हालांकि इसके बारे में किसी को पता नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ता नंबर 1 की ओर से जो बात अनुपयुक्त लगती है, वह यह है कि उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत परित्याग और/या अन्यथा के आधार पर तलाक के लिए उपयुक्त वैवाहिक कार्यवाही शुरू करने के लिए आज तक कोई कदम नहीं उठाया है।''
इसलिए न्यायालय ने आदेश दिया कि मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया है।
हालांकि, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, श्री मुक्तसर साहिब, जिला श्री मुक्तसर साहिब को याचिकाकर्ता नंबर 2 (महिला साथी/विधवा) को मिल रही धमकियों पर विचार करने का आदेश दिया गया है।
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यदि ऐसा लगता है, तो उसे एक महिला पुलिस अधिकारी का मोबाइल नंबर प्रदान किया जाए, जिसे वह कोई भी अप्रिय घटना होने पर या अपनी जान को खतरा महूसस होने पर संपर्क कर पाए।
एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले महीने यह सवाल बड़ी पीठ को संदर्भित किया था कि क्या अदालत को एक साथ रहने वाले दो व्यक्तियों की वैवाहिक स्थिति और उस मामले की अन्य परिस्थितियों की जांच किए बिना उनको सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है?
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने यह भी कहा था, यदि उपरोक्त का उत्तर नकारात्मक है, तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमें न्यायालय उन्हें सुरक्षा से वंचित कर सकता है?
कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया था कि कोर्ट की समन्वय शक्ति वाली विभिन्न बेंच ने संबंधित मामले पर अलग-अलग राय दी है, जिनमें,कोर्ट के अनुसार,आसानी से सामंजस्य स्थापित नहीं जा सकता है।
केस का शीर्षक - निर्भय सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य
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