मानसिक क्रूरता के कृत्यों का पता लगाते समय अदालतों को अलग-अलग घटनाओं को देखने के बजाय विवाहित जीवन को समग्र रूप से देखना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट

Manisha Khatri

5 Sep 2023 3:00 PM GMT

  • मानसिक क्रूरता के कृत्यों का पता लगाते समय अदालतों को अलग-अलग घटनाओं को देखने के बजाय विवाहित जीवन को समग्र रूप से देखना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court 

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘मानसिक क्रूरता’ के कृत्यों का पता लगाते समय, अदालतों को कपल के विवाहित जीवन की अलग-अलग घटनाओं को देखने के बजाय उनके वैवाहिक जीवन को समग्र रूप से देखना चाहिए।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने यह भी कहा कि ठोस सबूतों से साबित किए बिना पत्नी द्वारा केवल एफआईआर दर्ज करवाना क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

    हाईकोर्ट ने पत्नी की तरफ से फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणियां की है। फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता के आधार पर उसके और उसके पति के बीच विवाह को समाप्त कर दिया था।

    तलाक के फैसले को बरकरार रखते हुए, पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों ने 2015 में शादी की थी और पत्नी ने 2019 में वैवाहिक घर छोड़ दिया था। कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था और कुछ समय ससुराल पक्ष से दूर किराए के एक मकान में रहे, परंतु फिर भी उनके मतभेद दूर नहीं हो सके और वे अंततः 2019 में अलग हो गए।

    अदालत ने कहा कि पत्नी ने दहेज के कारण उत्पीड़न का आरोप लगाया था और यह भी कहा था कि पति व उसके परिवार के सदस्यों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। परंतु इनमें से कोई भी आरोप साक्ष्य द्वारा साबित नहीं किया जा सका।

    अदालत ने कहा, ‘‘इस संदर्भ में, यह माना जा सकता है कि यह शब्द केवल एहतियात के तौर पर समझौता विलेख में डाला गया है और किसी भी सबूत की कमी के कारण, दहेज के कारण उत्पीड़न साबित करने के लिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।’’

    पीठ ने कहा कि पत्नी ने आरोप लगाया कि एक दिन जब वह अकेली थी तो उसके देवर ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसके साथ छेड़छाड़ की,लेकिन उसने इस संबंध में कोई सबूत पेश नहीं किया।

    हाईकोर्ट ने कहा,“निष्कर्ष यह है कि न केवल दहेज की मांग के आधार पर प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत आपराधिक मामला दर्ज करवाया गया,बल्कि देवर के खिलाफ छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया गया है, जिसे वर्तमान मामले में प्रमाणित नहीं किया गया है।’’

    इसके अलावा, पीठ ने कहा कि भले ही यह माना जाए कि यह पति ही था जिसने पत्नी को उसके माता-पिता के घर के द्वार पर छोड़ दिया था, लेकिन यह स्पष्ट है कि पत्नी अपने कृत्यों के कारण पति के प्रति इस हद तक क्रूर थी कि उसके लिए उसके साथ रहना बेहद मुश्किल हो गया था।

    पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, इस तरह के परित्याग का एक कारण मौजूद है और परिणामस्वरूप, प्रतिवादी को परित्याग का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।’’

    केस टाइटल- प्रीति बनाम विकास

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