क्या एक मृत अविवाहित व्यक्ति के माता-पिता का उसके प्रिजवर्ड स्पर्म पर अधिकार है? दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

6 Feb 2022 8:30 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक दिलचस्प मामला सामने आया है। इस मामले में एक मृत अविवाहित युवक के माता-पिता ने गंगा राम अस्पताल को अपने दिवंगत बेटे के जमा स्पर्म सैंपल को उन्हें दिए जाने का निर्देश देने की मांग की है।

    मृत अविवाहित युवक के माता-पिता का मामला यह है कि उनके बेटे के निधन के बाद वे शारीरिक अवशेषों के "एकमात्र दावेदार" हैं। इस तरह अस्पताल का उन्हें स्पर्म सैंपल देने से इनकार करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।

    इस मामले में दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल को दिसंबर, 2021 में नोटिस जारी किया गया था।

    जस्टिस वी. कामेश्वर राव ने अब इसे 13 मई, 2022 को सुनवाई के लिए पोस्ट किया है।

    याचिका एक दिलचस्प सवाल उठाती है कि अविवाहित मृत व्यक्ति के स्पर्म सैंपल पर कानूनी अधिकार किसके पास है?

    मामले के तथ्य यह हैं कि याचिकाकर्ताओं का 30 वर्षीय बेटा सितंबर, 2020 में कैंसर से मर गया। याचिकाकर्ता के दिवंगत बेटे का जब गंगा राम अस्पताल में इलाज चल रहा था, तब अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें सूचित किया कि कैंसर के इलाज से नपुसंकता आ सकती है, इसलिए दिवंगत बेटे ने जून, 2020 में उसी अस्पताल के आईवीएफ लैब में अपने स्पर्म रिजर्व करने का फैसला किया।

    अपने बेटे की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ताओं ने अपने बेटे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने बेटे के स्पर्म हासिल करने के लिए अस्पताल का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अस्पताल ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस संबंध में राज्य की ओर से कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। इसलिए यह याचिका दायर की गई है।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश गोस्वामी ने संजीव गुलाटी बनाम गंगा राम अस्पताल 2005 एससीसी ऑनलाइन डेल 1334 के मामले पर भरोसा किया। इसमें कहा गया कि एक पीड़ित व्यक्ति सार्वजनिक कार्यों की प्रैक्टिस करने वाले निजी निकायों के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

    दूसरी ओर अधिवक्ता सुभाष कुमार ने प्रस्तुत किया कि अस्पतालों को एक जीवित व्यक्ति की अनुमति से स्पर्म एकत्र करने और रिजर्व करने की अनुमति है, लेकिन व्यक्ति की मृत्यु के बाद कानूनी अधिकार बदल जाते हैं। अशोक के. चटर्जी बनाम भारत संघ मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि इस मामले पर कोई दिशानिर्देश नहीं हैं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं को स्पर्म देने से इनकार किया है।

    अशोक के. चटर्जी बनाम भारत संघ मामले में यह माना कि याचिकाकर्ता (पिता) के पास इस तरह की अनुमति का कोई 'मौलिक अधिकार' नहीं है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने हालांकि मामले को अलग करने की मांग करते हुए कहा कि अशोक के. चटर्जी (सुप्रा) में मृतक विवाहित था, लेकिन वर्तमान मामले में मृतक अविवाहित है, जिसका कोई अन्य कानूनी उत्तराधिकारी नहीं है।

    केस शीर्षक: गुरविंदर सिंह और अन्य बनाम जीएनसीटीडी और अन्य, डब्ल्यूपी (सी) 15159/2021

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